फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों: वीरता, शौर्य और बलिदान की अमर गाथा(17 जुलाई 1943- 14 दिसंबर 1971)
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों भारतीय वायुसेना के एक ऐसे अदम्य योद्धा थे, जिन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अपने अद्वितीय साहस और सर्वोच्च बलिदान से भारतीय सैन्य इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित कराया। वे भारतीय वायुसेना के एकमात्र अधिकारी हैं, जिन्हें देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया है। उनका जीवन न केवल अदम्य साहस का प्रतीक है, बल्कि देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा की पराकाष्ठा को भी दर्शाता है।
प्रारंभिक जीवन और सैन्य यात्रा
निर्मल जीत सिंह सेखों का जन्म 17 जुलाई 1943 को पंजाब के लुधियाना जिले के इंद्रा नगर में हुआ था। उनके पिता, तारा सिंह सेखों, भारतीय सेना में एक अधिकारी थे, और शायद यही कारण था कि निर्मल सिंह में बचपन से ही देश सेवा का जज्बा कूट-कूट कर भरा था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब में हुई, जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA), पुणे से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया।
जून 1967 में, निर्मल सिंह सेखों ने फ्लाइंग ऑफिसर के रूप में भारतीय वायुसेना में कमीशन प्राप्त किया। उन्हें मिग-21 फाइटर जेट के पायलट के रूप में प्रशिक्षित किया गया और उनकी तैनाती श्रीनगर एयरबेस पर की गई। उनकी विशेषज्ञता उच्च ऊंचाई वाले और कठिन इलाकों में उड़ान भरने में थी, जो आगे चलकर उनकी असाधारण वीरता का आधार बनी।
1971 का भारत-पाक युद्ध और अद्वितीय शौर्य
दिसंबर 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। 14 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तानी वायुसेना ने श्रीनगर एयरबेस पर हमला करने के लिए छह F-86 सबरे जेट भेजे। उस समय एयरबेस पर केवल फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल सिंह सेखों ही अपने मिग-21 विमान के साथ मौजूद थे। मौसम भी अत्यंत प्रतिकूल था—बर्फबारी और खराब दृश्यता के कारण उड़ान भरना लगभग असंभव लग रहा था।
इसके बावजूद, सेखों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने मिग-21 विमान में उड़ान भरी। वे अकेले ही छह पाकिस्तानी विमानों से भिड़ गए। यह एक अविश्वसनीय रूप से विषम युद्ध था, जहाँ एक अकेला पायलट छह प्रशिक्षित दुश्मनों का सामना कर रहा था।
उनकी वीरता के प्रमुख बिंदु:
* उन्होंने अपनी असाधारण पायलट कौशल का प्रदर्शन करते हुए दो पाकिस्तानी विमानों को गंभीर क्षति पहुंचाई।
* अत्यंत विषम परिस्थितियों में भी वे डटे रहे और दुश्मन की रणनीति को विफल करने में सफल रहे।
* अंततः दुश्मन की गोलियों से उनका विमान क्षतिग्रस्त हो गया और वे शहीद हो गए।
उनकी यह साहसी लड़ाई श्रीनगर एयरबेस और कश्मीर घाटी की सुरक्षा के लिए निर्णायक सिद्ध हुई। उन्होंने अकेले ही दुश्मन के मंसूबों को नाकाम कर दिया और मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया।
परम वीर चक्र सम्मान
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने वाले वे भारतीय वायुसेना के एकमात्र अधिकारी हैं। यह पुरस्कार इस बात का प्रतीक है कि कैसे एक अकेला सैनिक भी अपने अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प से शत्रु की बड़ी से बड़ी योजना को ध्वस्त कर सकता है। उनका यह सम्मान भारतीय सेना के इतिहास में एक मील का पत्थर है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
स्मृति और प्रेरणा
निर्मल सिंह सेखों की याद में देश भर में अनेक स्मारक स्थापित किए गए हैं, जो उनकी वीरता और बलिदान की गाथा कहते हैं:
* सेखों वार मेमोरियल, श्रीनगर
* सेखों स्टेडियम, लुधियाना
* भारतीय वायुसेना की कई इकाइयाँ उनकी वीरता का स्मरण करती हैं और उन्हें अपना आदर्श मानती हैं।
* उनकी प्रतिमा दिल्ली के इंडिया गेट परिसर में परमवीर चक्र विजेताओं की मूर्तियों में गर्व से स्थापित है।
सेखों न केवल एक साहसी पायलट थे, बल्कि एक सच्चे देशभक्त, कर्तव्यपरायण योद्धा और लाखों युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत भी थे। उनके व्यक्तित्व में साहस, अनुशासन और समर्पण जैसे गुणों का अद्वितीय संगम था। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा बलिदान वह होता है जो बिना किसी स्वार्थ के, मातृभूमि के लिए दिया जाए। उनका शौर्य और बलिदान भारतीय इतिहास में अमर रहेगा। वे हमें यह प्रेरणा देते हैं कि देश के लिए कुछ भी कर गुजरना ही सच्ची देशभक्ति है।
"एक योद्धा मरता है, किंतु उसका शौर्य सदियों तक जीवित रहता है।"
निर्मल सिंह सेखों – भारत माँ के सच्चे सपूत। 🇮🇳
0 Comments
Thank you