आधुनिक युग में गाँधी की प्रासंगिकता

आधुनिक युग में गांधी की प्रासंगिकता

गांधी एक ऐसा नाम है जो हमारे देश की पहचान, वैश्विक स्तर पर हमारे देश की पहचान का प्रतिबिंब है; गांधी जी के बिना हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य से किसी भी दुनिया की कल्पना अधूरी है। गांधी जी के विचार और विचार केवल एक दार्शनिक की कल्पना नहीं हैं, बल्कि उनकी व्यावहारिक उपयोगिता है, जो आज भी प्रासंगिक है। आधुनिक युग में गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता को उनके विचारों के अनुसार ही समझा जा सकता है। गांधी जी सर्वोदय समाज के पक्षधर थे। गांधी जी समाज में प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता की बात करते थे, जिससे समाज में अधिक से अधिक समानता आए। आज हमारे समाज में बाजार व्यवस्था और पश्चिमी कुसंस्कृति नई पीढ़ी पर पूरी तरह हावी हो रही है। नैतिकता शब्द का अर्थ बदल गया है; जहां देश की नौकरशाही और राजनीतिक दुनिया का हस्तक्षेप विकास की राह में बाधाएं पैदा कर रहा है, वहां गांधी जी के सिद्धांतों और विचारों की प्रासंगिकता अपने आप सामने आने लगती है।  गांधी स्वदेशी पर जोर देते थे और औद्योगीकरण के खिलाफ थे, लेकिन उन्होंने स्वयं लिखा था कि मैं कल्पना करता हूं कि बिजली, जहाज निर्माण, लौह कारखाने, मशीनरी निर्माण और ऐसे अन्य उद्योगों का अस्तित्व ग्रामीण शिल्प के साथ-साथ होना चाहिए। नौकरशाह और राजनेता अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कोई भी जघन्य कृत्य करने से नहीं हिचकिचाते। ऐसी स्थिति में साधन और साध्य की पवित्रता के बारे में गांधी के विचारों को समझने और समाज के हर स्तर पर व्यावहारिक रूप देने की आवश्यकता है। गांधी एक सच्चे सत्याग्रही थे। वे न केवल सत्य और अहिंसा के कट्टर समर्थक थे, बल्कि उन्होंने इसे अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से अपनाया। आत्म-संयम उनकी ताकत थी और सत्य और अहिंसा उनके मूल हथियार थे, जिसके कारण हम आज एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं। हो सकता है कि गांधी के बिना हमें यह मिल जाता, लेकिन वह आजादी अधूरी होती। आज अगर दुनिया हमारे देश को गांधी के देश के रूप में पहचानती है, तो यह गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा की ताकत है।  आतंकवाद से त्रस्त दुनिया में आज अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी गांधी के विचारों को अपनाने की अपील कर रहा है। गांधी एक विरासत और परम्परा का नाम है, जिसकी वजह से आज दुनिया हमारे देश को एक बेहतर देश के रूप में पहचानती है। अलग पहचान बनाती है। आज हमारे देश के विघटनकारी लोग गांधी जी के बारे में उल्टी-सीधी बातें करते हैं। वे नकारात्मक बातें करते हैं। इससे गांधी का कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन हम अपने देश का नुकसान करेंगे। अपनी पहचान खो देंगे। आज दुनिया की सबसे बड़ी संस्था यूएन ने गांधी की प्रासंगिकता को बखूबी दर्शाया है। गांधीवाद से ज्यादा गांधी की आत्मा की जरूरत है, जहां गांधी के विचार मौजूद होंगे। यही गांधी जी की आत्मा को हमारी श्रद्धांजलि होगी।

डॉ० संतोष आनंद मिश्र
डी ० ए ० वी ० पब्लिक स्कूल
मानपुर, गया, बिहार। 

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