कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी: एक बहुआयामी व्यक्तित्व(8फरवरी निर्वाण दिवस)


कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी: एक बहुआयामी व्यक्तित्व

परिचय
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (29 दिसंबर, 1887 - 8 फरवरी, 1971) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, शिक्षाविद और प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उन्होंने साहित्य, शिक्षा, संस्कृति और राजनीति के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। भारतीय विद्या भवन की स्थापना, सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण और हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता जैसे कार्य उनके उल्लेखनीय योगदान हैं।

जीवन परिचय

मुंशी जी का जन्म बॉम्बे राज्य (वर्तमान गुजरात) के एक प्रतिष्ठित भागर्व ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे और शिक्षा में विशेष रुचि रखते थे। उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई में वकालत शुरू की। वे केवल एक सफल अधिवक्ता ही नहीं थे, बल्कि एक कुशल पत्रकार भी थे।

1915 में, वे महात्मा गांधी के साथ यंग इंडिया पत्रिका के सह-संपादक बने। उन्होंने कई अन्य मासिक पत्रिकाओं का संपादन किया और गुजराती साहित्य परिषद में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। 1938 में उन्होंने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीय संस्कृति, साहित्य और शिक्षा का संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार करना था।

मुंशी जी ने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई। वे बंबई प्रांत और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री रहे। 1952 से 1957 तक उन्होंने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। इसके अलावा, वे वकील, मंत्री, कुलपति और राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे।

साहित्यिक योगदान

कन्हैयालाल मुंशी का साहित्यिक योगदान अतुलनीय है। वे ऐतिहासिक और पौराणिक उपन्यासों के अलावा नाटक, कहानियाँ और निबंध भी लिखते थे। प्रेमचंद के साथ उन्होंने हंस पत्रिका के संपादन का कार्य भी किया। उनकी रचनाएँ भारतीय इतिहास और संस्कृति से गहराई से जुड़ी हुई हैं। वे मानते थे कि भारतीय संस्कृति कोई स्थिर तत्व नहीं है, बल्कि यह सतत प्रवाहमान है।

उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:

  • कृष्णकथा – श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित एक अद्भुत रचना।
  • जय सोमनाथ – सोमनाथ मंदिर के इतिहास और संघर्ष की गाथा।
  • पृथ्वी वल्लभ – ऐतिहासिक उपन्यास, जिस पर फिल्म भी बनी।
  • भगवान परशुराम – महर्षि परशुराम के जीवन पर आधारित कथा।
  • लोपामुद्रा – ऋषि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा के जीवन पर आधारित कहानी।
  • द्रुपस्वामिनी – महाभारत से प्रेरित नाटक।
  • ऐतिहासिक निबंध – भारतीय इतिहास पर आधारित विचारपूर्ण लेखों का संकलन।

भारतीय विद्या भवन की स्थापना

7 नवंबर, 1938 को कन्हैयालाल मुंशी ने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। उनका उद्देश्य एक ऐसे केंद्र की स्थापना करना था जहाँ प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक बौद्धिक आकांक्षाएँ मिलकर नए साहित्य, इतिहास और संस्कृति को जन्म दे सकें। आज भारतीय विद्या भवन भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति, शिक्षा और परंपरा के प्रचार-प्रसार का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है।

सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण

कन्हैयालाल मुंशी जी का एक अन्य महत्वपूर्ण योगदान सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण था। इस मंदिर को महमूद गज़नी ने ध्वस्त कर दिया था। स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने सरदार वल्लभभाई पटेल के सहयोग से इस मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य प्रारंभ किया। 1951 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा इस मंदिर का उद्घाटन किया गया।

हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता

हिंदी भाषा और साहित्य के उत्थान के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। उन्होंने 50 से अधिक बार अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की। वे गुजराती और अंग्रेजी भाषा में भी लिखते थे, लेकिन हिंदी के प्रचार-प्रसार में उनका विशेष योगदान रहा।

निष्कर्ष

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे। वे स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, शिक्षाविद और महान साहित्यकार के रूप में भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनका योगदान न केवल साहित्य और संस्कृति तक सीमित रहा, बल्कि शिक्षा और राष्ट्रीय चेतना को भी उन्होंने नई दिशा दी। उनकी रचनाएँ और विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। वे एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने जीवनभर भारतीय संस्कृति, इतिहास और साहित्य को समृद्ध करने में अपना योगदान दिया।

डॉo संतोष आनन्द मिश्रा 

डी o ए o वी o पब्लिक स्कूल 

मानपुर, गया, बिहार 

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