श्री लाल बहादुर शास्त्री
श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मुगलसराय नामक छोटे से रेलवे नगर में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे, लेकिन जब वे केवल डेढ़ वर्ष के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया। इसके बाद उनकी मां अपने तीनों बच्चों को लेकर अपने पिता के घर चली गईं।
लाल बहादुर शास्त्री का बचपन गरीबी में बीता, लेकिन उन्होंने विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना किया। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपने गांव में ही प्राप्त की, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए उन्हें वाराणसी में अपने चाचा के पास भेजा गया। यहां वे नंगे पांव ही स्कूल जाते थे, चाहे गर्मी कितनी भी तीव्र क्यों न हो।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
बचपन से ही शास्त्री जी के मन में राष्ट्रभक्ति की भावना थी। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने 16 वर्ष की आयु में अपनी पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। इसके लिए उन्हें अपने परिवार के विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपने निर्णय पर अडिग रहे।
उन्होंने वाराणसी के काशी विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त की, जहां उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि मिली, जो आगे चलकर उनके नाम का हिस्सा बन गई। 1927 में उनका विवाह ललिता देवी से हुआ, जिसमें दहेज के रूप में केवल एक चरखा और कुछ हाथ से बुने हुए कपड़े लिए गए।
1930 में महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा कर ब्रिटिश शासन के नमक कानून को तोड़ा। इस आंदोलन से प्रेरित होकर लाल बहादुर शास्त्री भी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल हो गए। वे कई बार जेल गए और कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश शासन की जेलों में रहे।
राजनीतिक जीवन
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, लाल बहादुर शास्त्री भारतीय राजनीति में तेजी से उभरे। 1946 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और बाद में वे गृह मंत्री बने। 1951 में वे दिल्ली आ गए और केंद्रीय मंत्रिमंडल में विभिन्न मंत्रालयों का कार्यभार संभाला। वे रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री तथा गृह मंत्री के रूप में कार्यरत रहे।
रेल मंत्री के रूप में, जब एक ट्रेन दुर्घटना में कई लोगों की मृत्यु हो गई, तो उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस कृत्य की प्रधानमंत्री पंडित नेहरू सहित पूरे देश ने सराहना की।
प्रधानमंत्री के रूप में योगदान
पंडित नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने। उनके कार्यकाल के दौरान भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें 1965 का भारत-पाक युद्ध प्रमुख था। इस युद्ध के दौरान उन्होंने "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया, जो आज भी प्रेरणादायक बना हुआ है।
11 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते के बाद रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनका संपूर्ण जीवन सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का अनुपम उदाहरण था। वे महात्मा गांधी के आदर्शों से अत्यंत प्रभावित थे और उनका मानना था कि "मेहनत करना प्रार्थना करने के समान है।"
श्री लाल बहादुर शास्त्री भारतीय राजनीति के उन महान नेताओं में से एक थे, जिन्होंने अपने सरल जीवन और उच्च विचारों से देश की सेवा की। उनका योगदान भारतीय समाज और राजनीति में सदैव याद किया जाएगा।
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