स्वतंत्रता सेनानी महाराणा बख्तावर सिंह
महाराणा बख्तावर सिंह मध्य प्रदेश के धार जिले के अमझेरा कस्बे के शासक थे, जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म 14 दिसंबर 1824 को हुआ था, और मात्र 7 वर्ष की आयु में उन्होंने शासन की बागडोर संभाली। बचपन से ही उनमें राष्ट्रभक्ति की भावना थी, और अंग्रेजों से देश को मुक्त कराना उनका प्रमुख लक्ष्य था।
अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष
3 जुलाई 1857 को महाराणा बख्तावर सिंह ने भोपावर छावनी पर हमला किया, जिससे अंग्रेजी सेना भागने पर मजबूर हो गई। इस विजय के बाद उन्होंने सरदारपुर, मानपुर-गुजरी, महू, आगर, नीमच, महिदपुर और मंडलेश्वर की छावनियों पर भी सफल आक्रमण किए। उनके इन अभियानों से अंग्रेजों को भारी नुकसान हुआ और उनकी सेना को कई बार पराजित होना पड़ा।
गिरफ्तारी और बलिदान
अंग्रेजों ने कुटिल नीति अपनाते हुए संधि वार्ता के बहाने महाराणा बख्तावर सिंह को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें महू जेल में रखा गया, जहां उन्हें घोर यातनाएं दी गईं। अंततः 10 फरवरी 1858 को इंदौर के एम.टी.एच. कम्पाउंड में एक नीम के पेड़ पर उन्हें फांसी दे दी गई। कहा जाता है कि फांसी के दौरान रस्सी टूट गई थी, लेकिन अंग्रेजों ने अपने ही नियमों को तोड़ते हुए उन्हें दोबारा फांसी पर लटका दिया।
यादगार और प्रेरणा
महाराणा बख्तावर सिंह की वीरता और बलिदान को आज भी याद किया जाता है। इंदौर में वह नीम का पेड़ आज भी हरा-भरा है, जहां उन्हें फांसी दी गई थी, और यह स्थान देशभक्तों के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है। उनकी पत्नी, रानी दौलत कुँवर, ने भी अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा और वीरगति को प्राप्त हुईं।
महाराणा बख्तावर सिंह का जीवन और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक गौरवशाली अध्याय है, जो आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।
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