पेशवा बाजीराव प्रथम: अपराजित योद्धा और मराठा साम्राज्य के निर्माता (18 अगस्त 1700 - 28 अप्रैल 1740)



पेशवा बाजीराव प्रथम: अपराजित योद्धा और मराठा साम्राज्य के निर्माता (18 अगस्त 1700 - 28 अप्रैल 1740)

प्रस्तावना

भारत के इतिहास में असंख्य वीरों ने अपनी चमक बिखेरी है, परंतु उनमें से कुछ ही ऐसे हैं जो पेशवा बाजीराव प्रथम की भांति सदैव अमर रह गए। एक अद्भुत सैन्य नेता, दूरदर्शी शासक और हिंदवी स्वराज्य के प्रति समर्पित राष्ट्रभक्त, बाजीराव ने मराठा साम्राज्य को एक शक्तिशाली अखिल भारतीय शक्ति में परिवर्तित कर दिया। उनके नेतृत्व, युद्धकौशल और अटूट साहस ने भारतीय इतिहास में उन्हें एक अमिट स्थान दिलाया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

18 अगस्त 1700 को बाजीराव बल्लाल भट्ट का जन्म दक्कन क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता बालाजी विश्वनाथ मराठा साम्राज्य के प्रथम पेशवा और छत्रपति शाहू महाराज के विश्वस्त सलाहकार थे।
बचपन से ही बाजीराव ने युद्धकला, राजनीति, तलवारबाजी, घुड़सवारी और धनुर्विद्या में प्रशिक्षण प्राप्त किया। उनकी तीव्र बुद्धि, शारीरिक दक्षता और नेतृत्व क्षमता बचपन में ही प्रकट हो गई थी। उनका एकमात्र लक्ष्य था — भारत को मुग़ल आधिपत्य से मुक्त कराना और मराठा ध्वज को सम्पूर्ण भारत में फैलाना।

पेशवा नियुक्ति

अप्रैल 1720 में बालाजी विश्वनाथ के निधन के बाद, मात्र 20 वर्ष की आयु में बाजीराव को छत्रपति शाहू महाराज द्वारा पेशवा (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया गया। यह निर्णय साहसी था, क्योंकि बाजीराव युवा और अपेक्षाकृत अनुभवहीन थे। किंतु शाहू महाराज ने उनमें महानता की चिंगारी देखी थी, जिसे इतिहास ने शीघ्र ही प्रमाणित कर दिया।
बाजीराव ने हिंदवी स्वराज्य की शपथ ली और तुरंत आक्रामक सैन्य अभियानों का नेतृत्व करना आरंभ किया।

प्रमुख सैन्य अभियान और विजय

पालखेड़ का युद्ध (1728)

हैदराबाद के शक्तिशाली शासक निज़ाम-उल-मुल्क से मुकाबला करते हुए, बाजीराव ने अद्भुत रणनीतिक प्रतिभा का परिचय दिया। फरवरी 1728 में पालखेड़ के युद्ध में उन्होंने तेज़ी से सेना की गतियाँ बदलते हुए निज़ाम की आपूर्ति लाइनों को काट दिया और उसे आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। आधुनिक सैन्य इतिहासकार इस युद्ध को मोबाइल कैवेलरी युद्धकला का उत्कृष्ट उदाहरण मानते हैं।

दिल्ली अभियान (1737)

अकल्पनीय साहस दिखाते हुए बाजीराव ने मार्च 1737 में मुग़ल राजधानी दिल्ली की ओर तीव्र गति से चढ़ाई की और मुग़ल सेना को पराजित किया। इससे मुग़ल सम्राट मोहम्मद शाह को शांति संधि के लिए विवश होना पड़ा। इस विजय ने दिल्ली में मराठों की धाक जमा दी और मुग़ल सत्ता की जड़ों को हिला दिया।

बुंदेलखंड अभियान और छत्रसाल से गठबंधन

बुंदेला राजा छत्रसाल ने मुग़लों के अत्याचार से त्रस्त होकर बाजीराव से सहायता मांगी। बाजीराव ने शीघ्रता से प्रतिक्रिया दी और 1731 में बुंदेलखंड को मुग़ल नियंत्रण से मुक्त करा दिया। कृतज्ञता स्वरूप छत्रसाल ने बाजीराव को अपने राज्य का एक बड़ा भाग और अपनी पुत्री मस्तानी का विवाह प्रस्ताव भेंट किया।

वसई किला विजय (1739)

1739 में बाजीराव ने पश्चिमी तट पर पुर्तगालियों के ठिकानों की ओर रुख किया। उन्होंने महत्वपूर्ण वसई किले पर अधिकार कर पुर्तगाली साम्राज्य को करारी शिकस्त दी और भारतीय समुद्र तटों पर मराठा प्रभाव को सुदृढ़ किया।

सैन्य रणनीति और प्रतिभा

बाजीराव युद्धकला के महान उस्ताद थे। उनकी प्रमुख रणनीतियाँ थीं:

  • तेज़ गति से सैन्य अभियान: हल्की घुड़सवार टुकड़ियों का तीव्र संचालन।
  • गुरिल्ला युद्ध: अचानक आक्रमण और तत्पश्चात त्वरित वापसी।
  • आपूर्ति लाइनों पर वार: शत्रु की रसद और संचार साधनों को काटना।
  • मनोवैज्ञानिक युद्ध: अप्रत्याशित आक्रमणों द्वारा दुश्मन का मनोबल तोड़ना।

बाजीराव की सेनाएँ असाधारण गति से सैकड़ों मील की दूरी तय करती थीं और अक्सर संख्या और संसाधनों में बड़ी सेनाओं को भी मात देती थीं।
विशेष बात यह है कि बाजीराव ने 41 बड़े युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारे — जो विश्व इतिहास में दुर्लभ उपलब्धि है।

व्यक्तिगत जीवन: काशीबाई और मस्तानी

बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई एक प्रतिष्ठित परिवार से थीं और उनसे अत्यंत प्रेम करती थीं। बाद में बाजीराव को मस्तानी से प्रेम हो गया, जो सौंदर्य, वीरता और संस्कृति की प्रतीक थीं — राजा छत्रसाल की पुत्री। बाजीराव और मस्तानी के संबंध ने मराठा समाज के रूढ़िवादी वर्गों में विवाद उत्पन्न किया, किंतु बाजीराव ने अपने प्रेम और मस्तानी के प्रति निष्ठा में कभी भी पीछे नहीं हटे।

निधन

लगातार सैन्य अभियानों, व्यक्तिगत तनावों और बीमारियों ने बाजीराव के स्वास्थ्य को कमजोर कर दिया। एक अभियान के दौरान वे गंभीर रूप से बीमार हो गए और 28 अप्रैल 1740 को नर्मदा नदी के निकट रावेरखेड़ी में उनका निधन हो गया।
उनकी समाधि बाजीराव समाधि आज भी एक श्रद्धा स्थल के रूप में विद्यमान है।

विरासत

बाजीराव प्रथम की उपलब्धियाँ मराठा साम्राज्य के भविष्य को गढ़ने वाली सिद्ध हुईं:

  • उन्होंने मराठा प्रभाव को उत्तर भारत तक व्यापक रूप से फैलाया।
  • पुणे को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया।
  • उनके बाद के मराठा नेताओं ने अंग्रेजों और मुग़लों को चुनौती दी।
  • उनका जीवन देशभक्ति, निष्ठा, वीरता और रणनीतिक प्रतिभा का प्रतीक बना।

इतिहासकार बाजीराव को विश्व इतिहास के सर्वश्रेष्ठ घुड़सवार सेनानायकों में स्थान देते हैं।

निष्कर्ष

पेशवा बाजीराव प्रथम केवल एक योद्धा नहीं थे; वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, दूरदर्शी नेता और सच्चे राष्ट्रभक्त थे।
उनका हिंदवी स्वराज्य का स्वप्न आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना।
आज भी उनका जीवन यह सिखाता है कि साहस, दूरदृष्टि और नेतृत्व से इतिहास को बदला जा सकता है।

"बाजीराव केवल एक व्यक्ति नहीं थे — वे एक तूफान थे, मराठा गौरव का प्रतीक और भारतीय वीरता की अमर आत्मा।"


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