महान क्रांतिकारी उज्ज्वला मजूमदार ( 21 नवंबर 1914- 24 अप्रैल 1992 )

महान क्रांतिकारी उज्ज्वला मजूमदार ( 21 नवंबर 1914- 24 अप्रैल 1992 )


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसी वीरांगनाएं थीं जिन्होंने न केवल साहसिक कार्य किए, बल्कि देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति तक देने में संकोच नहीं किया। ऐसी ही एक महान क्रांतिकारी थीं उज्ज्वला मजूमदार, जिनका जीवन बलिदान, देशभक्ति और अदम्य साहस की मिसाल है। बंगाल की इस वीरांगना ने ब्रिटिश साम्राज्य को खुली चुनौती दी और क्रांतिकारी गतिविधियों में अहम भूमिका निभाई।

प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि:

उज्ज्वला मजूमदार का जन्म 21 नवंबर 1914 को तत्कालीन अविभाजित भारत के ढाका (अब बांग्लादेश) में हुआ था। उनका परिवार राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़ा हुआ था और इस कारण उन्होंने बचपन से ही देशभक्ति और क्रांति के संस्कार पाए। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में प्राप्त की और किशोरावस्था में ही स्वतंत्रता आंदोलन की घटनाओं से प्रेरित होकर क्रांतिकारी गतिविधियों में कूद पड़ीं।

उनका झुकाव जुगांतर दल और दीपाली संघ जैसी संस्थाओं की ओर हुआ, जो सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत को स्वतंत्र कराने का प्रयास कर रही थीं।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ:

उज्ज्वला मजूमदार ने बंगाल वोलंटियर्स और दीपाली संघ की सक्रिय सदस्य के रूप में कई भूमिगत आंदोलनों में भाग लिया। वे महिला क्रांतिकारी संगठन की प्रमुख सदस्य थीं। उन्होंने हथियारों की तस्करी, गुप्त संदेशों का आदान-प्रदान, बम निर्माण व प्रशिक्षण जैसे जोखिमपूर्ण कार्यों को निडरता से अंजाम दिया।

8 मई 1934 को बंगाल के गवर्नर एंडरसन पर बम फेंकने की योजना में उनका अप्रत्यक्ष सहयोग रहा। यद्यपि वे उस समय सिलीगुड़ी में थीं, परंतु पुलिस ने उन्हें इस षड्यंत्र में सहयोगी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया।

गिरफ़्तारी और कारावास:

18 मई 1934 को उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार किया गया और विशेष ट्रिब्यूनल द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें प्रेसिडेंसी जेल और बाद में अन्य जेलों में रखा गया, जहाँ उन्होंने जेल में अन्य महिला बंदियों को शिक्षित किया और उनमें देशभक्ति की भावना जाग्रत की।

जेल में उन पर अमानवीय अत्याचार किए गए, लेकिन उन्होंने कभी अपने साथियों के नाम नहीं उजागर किए और न ही अपने विचारों से विचलित हुईं।

स्वतंत्रता के बाद का जीवन:

1939 में महात्मा गांधी और अन्य नेताओं के प्रयास से वे जेल से रिहा हुईं। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बनाए रखी लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और समाजसेवा में सक्रिय रहीं।

1948 में उन्होंने क्रांतिकारी और लेखक भूपेन्द्र किशोर राय से विवाह किया। उनका जीवन सादगी और सेवा की मिसाल बनकर बीता।

सम्मान और स्मृति:

हालाँकि उज्ज्वला मजूमदार को व्यापक राष्ट्रीय पहचान नहीं मिली, लेकिन बंगाल और क्रांतिकारी संगठनों में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके योगदान की स्मृति में कई स्थानों पर संस्थान और सामाजिक कार्य चल रहे हैं। बंगाल के क्रांतिकारी इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

निधन:

24 अप्रैल 1992 को इस महान क्रांतिकारी का देहांत हुआ। वे अंतिम समय तक राष्ट्र और समाज के प्रति समर्पित रहीं। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जीवंत प्रेरणा है।

निष्कर्ष:

उज्ज्वला मजूमदार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनसुनी किंतु अत्यंत तेजस्वी नायिका थीं। उन्होंने अपने साहस, समर्पण और बलिदान से यह सिद्ध कर दिया कि क्रांति केवल हथियारों से नहीं, बल्कि अदम्य साहस, आत्मबलिदान और दृढ़ संकल्प से भी लड़ी जाती है।

हमें उनके योगदान को याद रखना चाहिए, उन्हें इतिहास के पन्नों में उचित स्थान देना चाहिए और उनके विचारों व मूल्यों को जीवित रखना चाहिए। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


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