उमा शंकर जोशी: आधुनिक गुजराती साहित्य का एक उज्ज्वल नक्षत्र(21 जुलाई 1911- 19 दिसंबर 1988)

उमा शंकर जोशी: आधुनिक गुजराती साहित्य का एक उज्ज्वल नक्षत्र(21 जुलाई 1911- 19 दिसंबर 1988)

उमा शंकर जोशी (1911-1988) आधुनिक गुजराती साहित्य के एक ऐसे प्रख्यात व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से साहित्य, चिंतन और शिक्षा के क्षेत्रों में गहरा प्रभाव छोड़ा। वे न केवल एक रचनात्मक साहित्यकार थे, बल्कि एक संवेदनशील समाजचिंतक, भाषाविद् और शिक्षाविद् भी थे। उनकी रचनाएँ भारतीय संस्कृति के गहन सरोकारों और आधुनिकता के बौद्धिक विमर्शों का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती हैं, जिसने गुजराती कविता को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया और उसमें आत्मबोध, सामाजिक जागरूकता तथा दार्शनिक दृष्टिकोण का समावेश किया।

जीवन परिचय और शिक्षा

उमा शंकर जशभाई जोशी का जन्म 21 जुलाई 1911 को गुजरात के मेहसाणा जिले के बामणा गाँव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपने गाँव में ही प्राप्त की, जहाँ से उनके भीतर साहित्य और दर्शन के प्रति गहरी रुचि का अंकुरण हुआ। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से गुजराती और संस्कृत में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जिसके बाद संस्कृत में एम.ए. किया। भाषाओं के प्रति उनकी लगन यहीं नहीं रुकी; उन्होंने संस्कृत, प्राकृत, पालि, अंग्रेजी और जर्मन भाषाओं का भी गहन अध्ययन किया। बाद में, बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी से उन्हें डी.लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया, जो उनकी विद्वत्ता का परिचायक है। 19 दिसंबर 1988 को इस महान साहित्यकार का निधन हो गया।

साहित्यिक योगदान: बहुआयामी प्रतिभा का धनी

उमा शंकर जोशी की साहित्यिक यात्रा कविता से प्रारंभ हुई, लेकिन उनकी अभिव्यक्ति की सीमा केवल कविता तक सीमित नहीं रही। उन्होंने निबंध, नाटक, भाषाशास्त्र, समीक्षा और अनुवाद के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया, अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया।

काव्य रचनाएँ

उनकी कविताएँ अपनी गहरी दार्शनिकता, संवेदनशीलता और भाषा की सौंदर्यशीलता के लिए जानी जाती हैं। वे प्रतीकात्मकता और आधुनिक बिम्बों का कुशल प्रयोग करते थे, जिससे उनकी रचनाओं को एक विशिष्ट पहचान मिली। उनके प्रमुख काव्य संग्रह इस प्रकार हैं:

 * निशीथ (Nishith): यह उनकी प्रारंभिक कविताओं का संग्रह है, जिसने उन्हें एक युवा और प्रतिभावान कवि के रूप में स्थापित किया।

 * मोची (Mochi): यह संग्रह सामाजिक यथार्थ और मानव गरिमा पर आधारित कविताओं को समेटे हुए है।

 * छिन्नरक्ष (Chinnaraksha)

 * प्राचीना (Prachina)

 * अधार (Adhar)

 * निरंजन (Niranjan)

 * अश्वत्था (Ashwattha): इसे उनकी दार्शनिक दृष्टि का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।
इन काव्य रचनाओं में दर्शन, सामाजिक अन्याय, मानव चेतना, इतिहास और संस्कृति की परतें गहराई से दिखाई देती हैं, जो उनकी कविताओं को केवल भावप्रवणता से निकालकर चिंतन और बौद्धिकता का आयाम देती हैं।

नाट्य साहित्य

उमा शंकर जोशी ने आधुनिक गुजराती नाट्य साहित्य में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। उनके नाटक सामाजिक और नैतिक प्रश्नों को केंद्र में रखते हुए गहन बौद्धिक मंथन प्रस्तुत करते हैं। उनके प्रमुख नाटक हैं:

 * सूर्यपुत्र कर्ण (Suryaputra Karna): यह महाभारत के कर्ण के चरित्र पर आधारित एक महत्वपूर्ण नाट्य कृति है, जिसमें चरित्र की जटिलताओं और नैतिक दुविधाओं को दर्शाया गया है।

 * संध्या (Sandhya)

 * सप्तपदी (Saptapadi)

भाषाविज्ञान और समीक्षा कार्य

उन्होंने गुजराती भाषा के व्याकरण, व्युत्पत्ति और व्याख्या में गहरी रुचि ली और इस क्षेत्र में कई विद्वतापूर्ण निबंध और शोध कार्य किए। भारतीय भाषाओं की तुलनात्मक समीक्षा और भाषाओं के सामाजिक संदर्भों पर भी उनका विश्लेषण उल्लेखनीय रहा, जो उनकी भाषाई विशेषज्ञता को दर्शाता है।

दर्शन और चिंतन

उमा शंकर जोशी की रचनाओं में भारतीय दर्शन, विशेषतः वेदांत, उपनिषद, जैन और बौद्ध चिंतन की स्पष्ट झलक मिलती है। उनका दृष्टिकोण न तो पूर्णतः परंपरावादी था और न ही अंधाधुंध आधुनिकतावादी। इसके बजाय, वे परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करते थे, दोनों के सर्वश्रेष्ठ तत्वों को अपनी सोच और लेखन में समाहित करते थे। उनकी दार्शनिक अंतर्दृष्टि ने उनके साहित्य को एक गहरा और सार्वभौमिक आयाम प्रदान किया।

समाज और शिक्षा में योगदान

उमा शंकर जोशी ने साहित्य को केवल सौंदर्य और मनोरंजन का साधन नहीं माना, बल्कि उसे सामाजिक परिवर्तन और नैतिक चेतना का माध्यम बनाया। वे स्वतंत्रता संग्राम के दौर में भी सक्रिय रहे, और उनकी कविताओं में देशभक्ति, अस्मिता और जनचेतना की भावनाएँ मुखर होती हैं। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बड़ौदा तथा अन्य संस्थाओं में प्रोफेसर, कुलपति और साहित्य अकादमी सदस्य जैसे पदों पर कार्य करते हुए शैक्षणिक और साहित्यिक विकास में योगदान दिया।

पुरस्कार और सम्मान

उनके असाधारण साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया:
 * साहित्य अकादमी पुरस्कार (1967): उनके काव्य संग्रह 'निशीथ' के लिए।

 * पद्मश्री: भारत सरकार द्वारा।

 * राष्ट्रभाषा प्रचार समिति सम्मान।

 * रंजन साहित्य पुरस्कार, राणुचंद्र पुरस्कार, साहित्य परिषद सम्मान, आदि।

व्यक्तित्व और प्रभाव

उमा शंकर जोशी एक संतुलित विचारक, शांतचित्त अध्येता और दृढ़ नैतिक मूल्यों के समर्थक थे। उनकी उपस्थिति गुजराती साहित्य में एक ज्ञानदीप की तरह थी, जिसकी रोशनी आज भी साहित्यप्रेमियों का मार्गदर्शन करती है। उनकी कविताओं ने आधुनिक गुजराती कविता को केवल भावप्रवणता से निकालकर उसमें चिंतन, विद्रोह, बौद्धिकता और आत्मसंधान का समावेश किया, जिससे यह अधिक समृद्ध और विविध बनी।
उनकी एक काव्य-पंक्ति (अनुवाद सहित) उनकी कविता की आत्मा को प्रकट करती है – जो अकेलेपन में भी समष्टि से जुड़ी है:

"બેસી રહું છું એકલવાયે, ભીતરમાં ધરતીના ગીતો વાગે..."
 "मैं अकेला बैठा हूँ, भीतर पृथ्वी के गीत गूंजते हैं..."

निष्कर्ष

उमा शंकर जोशी गुजराती साहित्य के उन मूर्धन्य व्यक्तित्वों में से हैं जिन्होंने अपने साहित्य, चिंतन और भाषा-प्रेम के माध्यम से एक समृद्ध परंपरा को नई दिशा प्रदान की। वे एक ऐसे साहित्यकार थे जो केवल समय के नहीं, युगों के कवि थे। उनकी रचनाएँ आज भी विचारशीलता, संवेदना और आत्मचिंतन की प्रेरणा देती हैं, और वे आधुनिक गुजराती साहित्य के एक सच्चे "उज्ज्वल नक्षत्र" के रूप में सदैव याद किए जाएँगे।


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