सरदार वल्लभभाई पटेल : भारत के लौह पुरुष और एकता के शिल्पकार(31 अक्टूबर 1875- 15 दिसंबर 1950)
भूमिका
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कई महान नेता हुए जिन्होंने अपने त्याग, साहस और दूरदर्शिता से राष्ट्र के निर्माण में योगदान दिया। परंतु यदि किसी एक व्यक्ति ने “विखंडित भारत को एकसूत्र में पिरोने” का कार्य किया, तो वह थे सरदार वल्लभभाई पटेल। उन्हें इतिहास ने “भारत का लौह पुरुष” (Iron Man of India) की उपाधि दी क्योंकि उन्होंने दृढ़ संकल्प, अदम्य इच्छाशक्ति और संगठन कौशल के बल पर असंभव प्रतीत होने वाले कार्य — भारत के राजनीतिक एकीकरण — को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया।
उनका जीवन केवल एक राजनेता का नहीं, बल्कि एक सच्चे कर्मयोगी, राष्ट्रभक्त और प्रशासक का भी था। उन्होंने अपने कार्यों से यह सिद्ध किया कि सच्चा नेतृत्व वाणी से नहीं, कर्म से पहचाना जाता है।
जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात राज्य के खेड़ा जिले के नाडियाड नामक गाँव में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता झवेरभाई पटेल एक वीर, देशभक्त और आर्य समाज के अनुयायी थे। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था। माता लाडबाई धार्मिक प्रवृत्ति की, परंतु अत्यंत दृढ़ इच्छाशक्ति वाली महिला थीं। इन दोनों के संस्कारों ने वल्लभभाई के व्यक्तित्व को गढ़ा।
बालक वल्लभभाई स्वभाव से शांत, परंतु आत्मनिर्भर और साहसी थे। कहा जाता है कि बचपन में उन्होंने एक बार अपनी छाती पर फोड़ा खुद ही गर्म लोहे की छड़ से फोड़ा था — यह घटना उनके दृढ़ निश्चय और निर्भीकता का प्रतीक है।
शिक्षा और वकालत का जीवन
वल्लभभाई पटेल ने प्रारंभिक शिक्षा करमसद और नाडियाड में प्राप्त की। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने कानून की पढ़ाई अहमदाबाद से की और बाद में 1905 में इंग्लैंड जाकर Middle Temple Inn, London से बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की।
1909 में भारत लौटकर उन्होंने अहमदाबाद में वकालत प्रारंभ की। वे शीघ्र ही शहर के प्रसिद्ध वकीलों में गिने जाने लगे। उनका वकालती जीवन अनुशासन, ईमानदारी और निडरता से परिपूर्ण था। वे अंग्रेज अधिकारियों के सामने भी सच्चाई से अपनी बात रखते थे।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत
सरदार पटेल का राजनीतिक जीवन 1917 में शुरू हुआ जब उन्होंने गांधीजी के नेतृत्व में खेड़ा सत्याग्रह में भाग लिया। उस समय गुजरात के खेड़ा जिले में अकाल पड़ा था और किसान कर माफी की माँग कर रहे थे। अंग्रेज सरकार ने यह माँग ठुकरा दी। तब वल्लभभाई पटेल ने किसानों का नेतृत्व करते हुए ऐसा सत्याग्रह चलाया कि ब्रिटिश प्रशासन को झुकना पड़ा।
इस आंदोलन के बाद पटेल गांधीजी के निकट आए और उनके ‘सत्याग्रह’ और ‘अहिंसा’ के सिद्धांतों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए।
बारदौली और ‘सरदार’ की उपाधि
1928 में बारदौली तहसील में किसानों पर भूमि राजस्व में 30% की वृद्धि की गई। किसानों ने विरोध किया, परंतु अंग्रेज सरकार ने उनकी बात नहीं मानी। तब वल्लभभाई पटेल ने गांधीजी की प्रेरणा से आंदोलन का नेतृत्व संभाला। उन्होंने किसानों को संगठित किया, अनुशासन बनाए रखा और सत्याग्रह के माध्यम से सरकार को झुकने पर विवश किया।
आख़िरकार सरकार को कर वृद्धि वापस लेनी पड़ी। इस ऐतिहासिक सफलता के बाद बर्दोली की महिलाओं ने उन्हें सम्मानपूर्वक “सरदार” की उपाधि दी। यह उपाधि जीवनभर उनके नाम के साथ जुड़ी रही।
कांग्रेस और राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका
वल्लभभाई पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता बने। उन्होंने पार्टी के संगठन को मज़बूत किया और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कांग्रेस के ढांचे को सुदृढ़ किया। वे कांग्रेस के अनुशासनप्रिय, व्यवहारिक और निर्णायक नेता थे।
उन्होंने असहयोग आंदोलन (1920), नमक सत्याग्रह (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में सक्रिय भूमिका निभाई। वे कई बार जेल गए, परंतु उनके उत्साह में कभी कमी नहीं आई। वे गांधीजी के ‘आध्यात्मिक अनुशासन’ और ‘राजनीतिक यथार्थवाद’ दोनों के प्रतीक थे।
स्वतंत्रता के बाद भारत का एकीकरण — उनका सबसे बड़ा कार्य
15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब देश के सामने सबसे गंभीर समस्या थी — 562 रियासतों का एकीकरण। ब्रिटिश शासन ने भारतीय राज्यों को यह स्वतंत्रता दी थी कि वे चाहें तो भारत या पाकिस्तान में विलय कर लें या स्वतंत्र रह जाएँ। यह स्थिति भारत की एकता के लिए अत्यंत खतरनाक थी।
उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने और सरदार वल्लभभाई पटेल को उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री का दायित्व सौंपा गया। उन्होंने तुरंत रियासतों के एकीकरण का कार्य अपने हाथ में लिया।
पटेल की नीति और रणनीति
पटेल ने इस कार्य के लिए दो प्रमुख साधनों का प्रयोग किया —
1. कूटनीति (Diplomacy) — उन्होंने अधिकांश रियासतों के शासकों से संवाद, तर्क और समझौते के माध्यम से उन्हें भारत में मिलाया।
2. दृढ़ता (Firmness) — जहाँ आवश्यक हुआ, वहाँ उन्होंने कठोर कदम उठाने में भी संकोच नहीं किया।
उनके सहयोगी वी.पी. मेनन, जो एक योग्य प्रशासक थे, ने इस कार्य में उनकी सहायता की।
प्रमुख रियासतों का विलय
जूनागढ़ : पाकिस्तान में विलय की घोषणा के बाद वहाँ के लोगों ने विद्रोह किया। पटेल ने जनमत के दबाव और सैनिक कार्रवाई से जूनागढ़ को भारत में मिलाया।
हैदराबाद : निज़ाम हैदराबाद स्वतंत्र रहना चाहता था। पटेल ने “ऑपरेशन पोलो” चलाकर हैदराबाद को भारत का हिस्सा बनाया।
कश्मीर : महाराजा हरिसिंह के आग्रह पर और कबायली आक्रमण की स्थिति में कश्मीर के भारत में विलय का मार्ग प्रशस्त हुआ।
पटेल ने कुछ ही महीनों में 500 से अधिक रियासतों को भारत में मिला दिया। यह उनकी सबसे बड़ी प्रशासनिक और राजनीतिक सफलता थी।
भारत के प्रशासनिक ढांचे का निर्माण
पटेल केवल राजनीतिक एकीकरण तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने नवस्वतंत्र भारत के प्रशासनिक ढांचे को भी मजबूत किया।
उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) को पुनर्संगठित किया।
उन्होंने कहा था —
“यह सेवाएँ भारत की रीढ़ हैं। यदि ये सेवाएँ सशक्त और निष्पक्ष रहेंगी तो भारत की एकता और अखंडता सदा बनी रहेगी।”
उनकी दूरदर्शिता के कारण आज भी भारत की नौकरशाही व्यवस्था राष्ट्र की स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
व्यक्तित्व और विचारधारा
सरदार पटेल व्यवहार में जितने कठोर दिखते थे, हृदय से उतने ही सरल और संवेदनशील थे। उनका जीवन सादगी, अनुशासन और कर्मठता का प्रतीक था। वे गांधीजी के विचारों से प्रेरित थे, परंतु निर्णय लेने में पूर्णतः यथार्थवादी थे।
उनका मानना था कि राष्ट्र को केवल भावनाओं से नहीं, बल्कि कर्तव्य, संगठन और अनुशासन से चलाया जा सकता है। उनके प्रसिद्ध कथन —
“हमारे जीवन का उद्देश्य केवल स्वतंत्रता प्राप्त करना नहीं, बल्कि उसे सशक्त और स्थायी बनाना है।”
वे साम्प्रदायिक सौहार्द के पक्षधर थे और चाहते थे कि भारत एक संगठित, आधुनिक और आत्मनिर्भर राष्ट्र बने।
निधन और विरासत
15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल का निधन मुंबई में हुआ। उनके जाने के बाद देश ने अपने सच्चे मार्गदर्शक और रक्षक को खो दिया।
परंतु उनकी विरासत आज भी जीवित है —
उनके नाम पर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (गुजरात के केवड़िया में) बनाई गई, जिसकी ऊँचाई 182 मीटर है — यह विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है।
2014 से भारत सरकार ने उनके जन्मदिन 31 अक्टूबर को “राष्ट्रीय एकता दिवस (National Unity Day)” के रूप में मनाने की घोषणा की।
सरदार पटेल के विचार
1. “राष्ट्र की सेवा करने के लिए एकता और अनुशासन का होना अनिवार्य है।”
2. “स्वतंत्रता का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्वावलंबन भी है।”
3. “जो व्यक्ति अपने कर्तव्य से भागता है, वह राष्ट्र से भी धोखा करता है।”
निष्कर्ष
सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन भारतीय इतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय है। उन्होंने जिस एकता का सपना देखा था, वही आज भारत की पहचान है। यदि उन्होंने उस समय रियासतों को एकसूत्र में न पिरोया होता, तो शायद आज भारत इतने विशाल और संगठित रूप में अस्तित्व में न होता।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व केवल भाषणों से नहीं, बल्कि कर्म, निष्ठा और दृढ़ संकल्प से बनता है।
भारत की एकता, अखंडता और प्रशासनिक सुदृढ़ता — इन तीनों का श्रेय यदि किसी एक व्यक्ति को दिया जाए, तो वह निस्संदेह सरदार वल्लभभाई पटेल हैं —
भारत के लौह पुरुष, राष्ट्र निर्माता और एकता के अमर शिल्पकार।
“हमारा यह कर्तव्य है कि हम एकजुट रहें, क्योंकि एकता ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।”
— सरदार वल्लभभाई पटेल

0 Comments
Thank you