शांति घोष : बंगाल की निर्भीक क्रांतिकारी वीरांगना(22 नवंबर 1916- 14 दिसंबर 1931 )
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अनेक ऐसी युवतियाँ हुईं जिन्होंने अपने अदम्य साहस, अद्वितीय राष्ट्रभक्ति और बलिदान से स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। शांति घोष (Shanti Ghosh) भी ऐसी ही एक क्रांतिकारी वीरांगना थीं, जिन्होंने मात्र 14–15 वर्ष की आयु में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध विद्रोह की ज्वाला धधका दी। उनकी कहानी न केवल साहस और संकल्प की मिसाल है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि स्वतंत्रता का संघर्ष केवल पुरुषों तक सीमित नहीं था, बल्कि भारत की बेटियों ने भी अद्भुत पराक्रम दिखाया था।
प्रारम्भिक जीवन एवं पृष्ठभूमि
शांति घोष का जन्म 22 नवंबर 1916 को वांगनुंडी, मयमनसिंह (अब बांग्लादेश) में हुआ। उनका परिवार शिक्षित, जागरूक और देशभक्त था। बचपन से ही शांति पर राष्ट्रीय आंदोलन का प्रभाव पड़ा। बंगाल में स्वदेशी आंदोलन, अनुशीलन समिति और युगांतर जैसी क्रांतिकारी गतिविधियों की लहर युवाओं को प्रेरित कर रही थी। शांति भी इन्हीं विचारों से प्रभावित हुईं।
वे पढ़ाई में तेज थीं, परंतु शिक्षा के साथ-साथ देशभक्ति की भावना उनके भीतर और अधिक प्रबल होती गई। विद्यालय में उन्होंने छात्राओं के बीच जागरूकता फैलाने का कार्य शुरू किया। उन्हें नारी शक्ति के उत्थान और देश की स्वतंत्रता के लिए कुछ बड़ा करने की तीव्र आकांक्षा थी।
क्रांतिकारी गतिविधियों में प्रवेश
शांति घोष ने ‘दिव्य-भारत दल’ (Dibyabarat Dal) नामक क्रांतिकारी संगठन से जुड़कर औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध सक्रिय भागीदारी आरंभ की। यह संगठन मुख्यतः छात्रों और छात्राओं के बीच देशभक्ति की भावना जगाने, गुप्त संदेशों का आदान–प्रदान करने तथा ब्रिटिश सत्ता की संवेदनशील गतिविधियों पर नजर रखने का कार्य करता था।
शांति के साथ उनकी सहपाठी सुनिति चौधरी भी इस समूह की सक्रिय सदस्य थीं। दोनों ने न केवल देशभक्ति का संकल्प लिया, बल्कि क्रांतिकारी प्रशिक्षण भी प्राप्त किया—जिसमें आत्मरक्षा, शस्त्र प्रयोग, गुप्त संदेश लेखन और संगठनात्मक कार्य शामिल थे।
गवर्नर की हत्या की योजना
मयमनसिंह में तानाशाही प्रवृत्ति के कारण ब्रिटिश अधिकारी और कलेक्टर चार्ल्स बक (Charles Buck) को जनता अत्याचार का प्रतीक मानती थी। वे छात्र आंदोलनों को दबाने, क्रांतिकारी गतिविधियों पर कठोर दमन और भारतीयों के प्रति अपमानजनक व्यवहार के लिए कुख्यात थे।
शांति और सुनिति ने यह निर्णय लिया कि ऐसे दमनकारी अधिकारी को समाप्त करना आवश्यक है, ताकि जनता में साहस उत्पन्न हो और ब्रिटिश शासन को स्पष्ट संदेश मिले कि भारतीय युवा अब अन्याय सहन नहीं करेंगे।
ऐतिहासिक घटना (14 दिसंबर 1931)
14 दिसंबर 1931 को, मात्र 14–15 वर्ष की दो किशोरियों—शांति घोष और सुनिति चौधरी—ने अपने स्कूल के ‘रीसेप्शन समारोह’ में शामिल होने के बहाने कलेक्टर बक से मिलने का अवसर प्राप्त किया।
दोनों ने अपनी वर्दी और पुस्तकों में पिस्टल छुपा रखी थी। जैसे ही बक उन दोनों से मिलने के लिए निकला, शांति और सुनिति ने निकट दूरी से उस पर गोलियां चला दीं।
यह घटना तत्कालीन बंगाल में ब्रिटिश प्रशासन को हिलाकर रख देने वाली थी। दो बालिकाओं द्वारा इतनी साहसिक कार्रवाई पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई। यह स्वतंत्रता के इतिहास का अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है।
गिरफ्तारी और कारावास
घटना के तुरंत बाद शांति और सुनिति गिरफ्तार कर ली गईं। ब्रिटिश न्यायालय ने उनकी आयु को देखते हुए उन्हें मृत्युदंड नहीं दिया, परंतु आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
जेल में शांति ने अमानवीय परिस्थितियों के बावजूद साहस नहीं खोया। उन्होंने अन्य महिला कैदियों को शिक्षा देना, जागरूक करना और संघर्ष के लिए प्रेरित करना जारी रखा। उनकी दृढ़ता देख जेल अधिकारियों तक को आश्चर्य होता था।
रिहाई और आगे का जीवन
शांति घोष को 1939 में आम माफी के तहत रिहा किया गया। जेल से बाहर आने के बाद भी उन्होंने सामाजिक और राष्ट्रवादी कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई। वे महिलाओं की शिक्षा, स्वावलंबन और समाज सुधार के कार्यों से जुड़ी रहीं। उनका संपूर्ण जीवन साहस, त्याग और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक रहा।
10 मई 1989 को वे परलोक सिधार गईं, पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान सदैव अमर रहेगा।
शांति घोष का महत्व
वे भारत की सबसे कम आयु की क्रांतिकारी हत्यारिन (political assassin) के रूप में इतिहास में दर्ज हैं।
उन्होंने यह सिद्ध किया कि स्वतंत्रता की लौ किसी भी उम्र में प्रज्वलित हो सकती है।
उनका साहस पूरे बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन को ऊर्जा प्रदान करता रहा।
महिला शक्ति और बाल क्रांतिकारियों की भूमिका को नई दिशा मिली।
निष्कर्ष
शांति घोष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वे अमर ज्योति हैं, जिन्होंने कम उम्र में ही ब्रिटिश शासन को यह संदेश दे दिया कि भारत की बेटियाँ भी राष्ट्र के लिए मर–मिटने को तैयार हैं। उनका साहस, समर्पण और बलिदान हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा।
वे केवल एक नाम नहीं, बल्कि भारतीय युवाओं के लिए अदम्य साहस और अटूट देशभक्ति की प्रतीक हैं।

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