अमर्त्य सेन : आधुनिक भारत के महान अर्थशास्त्री और मानवतावादी चिंतक(जन्म - 3 नवम्बर 1933)
परिचय :
अमर्त्य कुमार सेन आधुनिक युग के ऐसे भारतीय अर्थशास्त्री और दार्शनिक हैं, जिन्होंने अर्थशास्त्र को केवल संख्याओं और नीतियों का विज्ञान न मानकर मानवता और नैतिकता से जोड़ा। उन्होंने आर्थिक विकास को ‘मानव विकास’ से जोड़ा और यह सिद्ध किया कि किसी राष्ट्र की प्रगति का सही मापदंड केवल उत्पादन या आय नहीं, बल्कि उसके नागरिकों के स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वतंत्रता की स्थिति है। उन्हें वर्ष 1998 में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया, जिससे भारत का नाम विश्व पटल पर गौरवान्वित हुआ।
जीवन परिचय :
अमर्त्य सेन का जन्म 3 नवम्बर 1933 को भारत के शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) में हुआ था। उनके पिता अशुतोष सेन ढाका विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र के प्राध्यापक थे और माता अमिता सेन भी शिक्षाविद थीं। बाल्यकाल से ही वे ज्ञान और तर्क के वातावरण में पले-बढ़े।
उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा शांतिनिकेतन के पथभवन विद्यालय में प्राप्त की। आगे की पढ़ाई उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता से की और तत्पश्चात कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (ट्रिनिटी कॉलेज) से अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
शैक्षणिक और अध्यापन जीवन :
अमर्त्य सेन ने अपने जीवन का अधिकांश समय शिक्षण और अनुसंधान में लगाया। उन्होंने कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में अध्यापन किया, जिनमें प्रमुख हैं –
जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली विश्वविद्यालय
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (ब्रिटेन)
हार्वर्ड विश्वविद्यालय (अमेरिका)
उन्होंने कुछ समय के लिए ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज के मास्टर के रूप में भी कार्य किया।
अर्थशास्त्र में योगदान :
अमर्त्य सेन का अर्थशास्त्र में योगदान अत्यंत व्यापक और मानवीय दृष्टिकोण से प्रेरित है। उनके कुछ प्रमुख योगदान निम्नलिखित हैं—
कल्याण अर्थशास्त्र (Welfare Economics):सेन ने यह सिद्ध किया कि आर्थिक नीतियों की सफलता केवल राष्ट्रीय आय में वृद्धि से नहीं, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग की स्थिति में सुधार से आँकी जानी चाहिए।
क्षमता दृष्टिकोण (Capability Approach):यह उनकी सबसे प्रसिद्ध अवधारणा है। इसके अनुसार, विकास का अर्थ है — व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता और क्षमता प्रदान करना। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, अवसर और सामाजिक न्याय को केंद्र में रखा गया।
गरीबी और अकाल (Poverty and Famines):उनकी पुस्तक “Poverty and Famines: An Essay on Entitlement and Deprivation” (1981) में उन्होंने यह सिद्ध किया कि अकाल केवल भोजन की कमी से नहीं, बल्कि वितरण प्रणाली की असमानता और सामाजिक अन्याय से उत्पन्न होता है।
सामाजिक न्याय और समानता पर विचार:अमर्त्य सेन ने ‘The Idea of Justice’ जैसी पुस्तकों में न्याय, नैतिकता और मानव स्वतंत्रता के नए प्रतिमान प्रस्तुत किए।
प्रमुख ग्रंथ :
Poverty and Famines (1981)
Development as Freedom (1999)
The Idea of Justice (2009)
Identity and Violence (2006)
Collective Choice and Social Welfare (1970)
On Ethics and Economics (1987)
पुरस्कार और सम्मान :
नोबेल पुरस्कार (1998) — अर्थशास्त्र में मानवीय दृष्टिकोण के लिए
भारत रत्न (1999) — भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
लेजन ऑफ ऑनर (फ्रांस)
आनंद पुरस्कार तथा अनेक अंतरराष्ट्रीय मानद उपाधियाँ
दार्शनिक दृष्टिकोण और मानवता का संदेश :
अमर्त्य सेन केवल अर्थशास्त्री नहीं, बल्कि मानवता के दार्शनिक भी हैं। वे तर्क, संवाद और सहिष्णुता के पक्षधर हैं। उन्होंने बार-बार कहा कि “विकास का वास्तविक उद्देश्य मनुष्य की स्वतंत्रता का विस्तार है।”
उनके विचारों में रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा, गांधीजी का नैतिक दर्शन और बुद्ध का मध्यम मार्ग – तीनों का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।
वर्तमान जीवन और कार्य :
अमर्त्य सेन वर्तमान में भी शिक्षा और सार्वजनिक विमर्श से जुड़े हुए हैं। वे भारत और विश्व के अनेक सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार रखते हैं और मानते हैं कि शिक्षा, स्वास्थ्य और समान अवसर ही किसी राष्ट्र के सच्चे विकास के आधार हैं।उपसंहार :
अमर्त्य सेन ने अर्थशास्त्र को मानवता का दर्पण बना दिया। उन्होंने हमें यह सिखाया कि राष्ट्र की प्रगति केवल पूँजी और उत्पादकता में नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की गरिमा और स्वतंत्रता में निहित है। वे आज भी सामाजिक न्याय, नैतिकता और समानता के वैश्विक प्रतीक हैं।
उनका जीवन संदेश है —
“विकास तभी सार्थक है जब हर व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को जीने की स्वतंत्रता मिले।”

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