मीरा बेन(Madeleine Slade)( 22 नवम्बर 1892 - 20 जुलाई 1982 )

मीरा बेन(Madeleine Slade)( 22 नवम्बर 1892 - 20 जुलाई 1982 )


महात्मा गांधी की आधुनिक युग की मीरा

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में कुछ व्यक्तित्व ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपने जीवन, संस्कृति और सुख-सुविधाओं का त्याग करके भारत के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। मीरा बेन (1892–1982) ऐसा ही एक विलक्षण नाम है। इंग्लैंड में जन्मी मैडेलीन स्लेड ने गांधीजी के विचारों से प्रेरित होकर अपना संपूर्ण जीवन भारत की सेवा को समर्पित कर दिया। वह गांधीजी की घनिष्ठ शिष्या, आश्रम की महत्वपूर्ण सदस्य तथा पर्यावरण संरक्षण और ग्रामोदय की अग्रदूत मानी जाती हैं।

प्रारंभिक जीवन

मीरा बेन का जन्म 22 नवम्बर 1892 को इंग्लैंड के एक समृद्ध परिवार में हुआ। उनके पिता एडमिरल सर एडमंड स्लेड ब्रिटिश नौसेना के उच्च अधिकारी थे। विलासिता, संगीत और उच्च वर्गीय वातावरण में पली बढ़ी मैडेलीन स्लेड को बचपन से ही आध्यात्मिकता और गंभीर साहित्य में रुचि थी।

उनके जीवन में निर्णायक मोड़ तब आया जब उन्होंने लियो टॉलस्टॉय की रचनाएँ पढ़ीं और सादगी तथा अहिंसा के सिद्धांतों ने उन्हें गहरे रूप से प्रभावित किया।

गांधीजी से प्रेरणा और भारत आगमन

सन् 1925 में जब उन्होंने रोमैन रोलां द्वारा लिखित गांधीजी की जीवनी पढ़ी, तो उन्हें लगा कि जिस महापुरुष का वर्णन इसमें है, उसी की तलाश उन्हें वर्षों से थी।

गांधीजी से मिलने की तीव्र इच्छा ने उन्हें भारत की ओर आकर्षित किया और 1925 में वह भारत आ गईं। गांधीजी ने उन्हें अपनी ‘मीरा’ नाम से बुलाया—यह नाम उन्हें आध्यात्मिक समर्पण के कारण दिया गया।

आश्रम जीवन और सेवाकार्य

मीरा बेन ने साबरमती आश्रम में रहकर गांधीजी के कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने चरखा, खादी, स्वच्छता, आत्मनिर्भरता तथा ग्रामीण पुनर्निर्माण के कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

महत्वपूर्ण कार्य

चरखा आंदोलन में सक्रिय भूमिका

महिलाओं के उत्थान के लिए विशेष प्रयास

स्वावलंबन, शिक्षा और स्वच्छता से जुड़े अभियानों में नेतृत्व

गांधीजी के सचिवालय और विदेशी संपर्कों के प्रबंधन में सहयोग

स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका

मीरा बेन केवल आश्रम की सदस्य ही नहीं, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन की सक्रिय कार्यकर्ता भी थीं।

उन्होंने—

सविनय अवज्ञा आंदोलन

भारत छोड़ो आंदोलन

में भाग लिया और कई बार जेल भी गईं। उनका संघर्ष यह दर्शाता है कि देशभक्ति केवल जन्मभूमि से उत्पन्न भाव नहीं, बल्कि मानवीय विचारों और अन्याय के विरोध की भावना भी हो सकती है।

 प्रकृति संरक्षण और ग्रामोदय

स्वतंत्रता के बाद मीरा बेन ने भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षरण और जनजीवन की कठिनाइयों को गहराई से समझा। उन्होंने उत्तराखंड में कई संस्थाएँ स्थापित कीं और जंगल संरक्षण, वृक्षारोपण तथा ग्रामोदय पर जोर दिया।

उनकी पर्यावरणीय चेतना इतनी गहरी थी कि आधुनिक पर्यावरणवाद के कई पहलुओं का संकेत उनके लेखन में मिलता है।

साहित्यिक योगदान

मीरा बेन ने अपने अनुभवों, गांधीजी के साथ किए गए कार्यों तथा भारतीय समाज पर विस्तृत लेखन किया। उनकी पुस्तक “The Spirit’s Pilgrimage” आत्मकथा के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

सम्मान और अंतिम जीवन

भारत ने उन्हें Padma Vibhushan (1981) से सम्मानित किया।

उन्होंने अपने अंतिम वर्ष वियना में बिताए।

20 जुलाई 1982 को उनका निधन हुआ।

उन्होंने न केवल भारत, बल्कि मानवता के लिए सेवा, सत्य, अहिंसा और सादगी के मार्ग को प्रेरणा के रूप में स्थापित किया।

उपसंहार

मीरा बेन का जीवन त्याग, समर्पण और आध्यात्मिक दृढ़ता का अद्वितीय उदाहरण है। उन्होंने पश्चिम से आकर केवल गांधीजी का अनुसरण ही नहीं किया, बल्कि भारतीय संस्कृति के मूल्यों को आत्मसात करके उसके उत्थान में अमूल्य योगदान दिया।

उनका जीवन संदेश देता है कि—

“सच्ची देशभक्ति सीमाओं से परे होती है; वह मानवता के कल्याण में निहित होती  है।

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