पी. वी. नरसिम्हा राव: भारतीय राजनीति के उदारीकरण युग के शिल्पकार(28 जून 1921- 23 दिसंबर 2004 )(भारत के नौवें प्रधानमंत्री)

भारत रत्न पी. वी. नरसिम्हा राव: भारतीय राजनीति के उदारीकरण युग के शिल्पकार(28 जून 1921- 23 दिसंबर 2004 )


भूमिका

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो अपने दूरदृष्टिपूर्ण निर्णयों और शांत लेकिन प्रभावी नेतृत्व से राष्ट्र के भविष्य की दिशा बदल देते हैं। श्री पामुलपर्ति वेंकट नरसिंह राव, जिन्हें प्रायः भारत के "आर्थिक उदारीकरण के जनक" के रूप में जाना जाता है, उन्हीं महान नेताओं में से एक थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, विद्वान, भाषाविद, लेखक और कुशल राजनयिक थे। उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति में परिवर्तन और नवीनीकरण का प्रतीक रहा।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

पी. वी. नरसिंह राव का जन्म 28 जून 1921 को तत्कालीन हैदराबाद राज्य (अब तेलंगाना) के करीमनगर जिले के लक्ष्मणगुड़ा गांव में हुआ। उनके पिता का नाम श्री पी. रंगा राव था। बाल्यकाल से ही अध्ययनशील प्रवृत्ति के नरसिंह राव ने उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय और नागपुर विश्वविद्यालय से विधि की शिक्षा प्राप्त की। वे एक प्रशिक्षित वकील के साथ-साथ कृषि विज्ञान में भी विशेष रुचि रखते थे।

राजनीतिक जीवन का आरंभ और राज्यस्तरीय योगदान

नरसिंह राव का राजनीतिक सफर आंध्र प्रदेश की राजनीति से प्रारंभ हुआ। उन्होंने 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया और राज्य सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे:

 * 1962–64: कानून एवं सूचना मंत्री

 * 1964–67: कानून एवं विधि मंत्री

 * 1967: स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री

 * 1968–71: शिक्षा मंत्री

 * 1971–73: आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने भूमि सुधारों, प्राथमिक शिक्षा के विस्तार और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किए।

केंद्र सरकार में प्रमुख पद

1977 में वे लोकसभा सदस्य बने और जल्द ही केंद्र की राजनीति में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में उभरे। वे कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों के प्रभारी रहे:

 * 1975–76: कांग्रेस महासचिव

 * 1980–84: विदेश मंत्री

 * 1984: गृह मंत्री

 * 1984–85: रक्षा मंत्री

 * 1985–89: मानव संसाधन विकास मंत्री

मानव संसाधन विकास मंत्रालय में रहते हुए उन्होंने नई शिक्षा नीति की आधारशिला रखी, जिसने देश की शिक्षा प्रणाली को नया दृष्टिकोण प्रदान किया।

प्रधानमंत्री के रूप में ऐतिहासिक कार्यकाल (1991–1996)

21 जून 1991 को, जब भारत एक गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा था, नरसिंह राव देश के नौवें प्रधानमंत्री बने। इस समय देश में विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुका था, और आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी। ऐसे संकटपूर्ण समय में उन्होंने साहसिक निर्णय लेकर देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी।

मुख्य उपलब्धियाँ:

 * आर्थिक उदारीकरण: उन्होंने वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ मिलकर आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) की प्रक्रिया आरंभ की। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक बाज़ार में प्रवेश संभव हुआ।

 * औद्योगिक नीतियों में सुधार: लाइसेंस राज में ढील, विदेशी निवेश को बढ़ावा और सार्वजनिक क्षेत्र में सुधार जैसे अनेक कदम उनके नेतृत्व में उठाए गए।

 * राजनीतिक स्थिरता: बहुमत से वंचित सरकार होने के बावजूद उन्होंने पूर्ण कालावधि तक सफल नेतृत्व किया। यह उनकी राजनीतिक कुशलता और संतुलित दृष्टिकोण का प्रमाण है।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में योगदान

विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में नरसिंह राव ने भारत की विदेश नीति को नई दिशा दी। उन्होंने निम्नलिखित प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया:

 * संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) का सम्मेलन, 1980

 * जी-77 की बैठक (न्यूयॉर्क, 1980)

 * गुट निरपेक्ष आंदोलन के सातवें सम्मेलन (1983)

 * NAM के विशेष मिशन के तहत फिलिस्तीन मुद्दे पर प्रयास

 * अमेरिका, रूस, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, वियतनाम आदि देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ताएँ

उनकी कूटनीति संतुलित और भारतीय हितों के अनुरूप थी, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति सशक्त हुई।

बौद्धिक और साहित्यिक व्यक्तित्व

पी. वी. नरसिंह राव एक बहुभाषाविद और साहित्य प्रेमी थे। उन्हें हिंदी, तेलुगू, मराठी, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, अरबी और फारसी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने कई साहित्यिक कृतियों का अनुवाद किया:

 * तेलुगू उपन्यास 'वेई पदगालु' का हिंदी में 'सहस्रफन' के नाम से अनुवाद

 * मराठी उपन्यास 'पान लक्षत कोण घेते' का तेलुगू में 'अंबाला जीवितम' के रूप में अनुवाद

उनके लेख विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।

विरासत और निष्कर्ष

23 दिसंबर 2004 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी राजनीतिक दृष्टि और प्रशासनिक सूझबूझ आज भी भारतीय राजनीति को दिशा देती है। वे ऐसे पहले गैर-गांधी प्रधानमंत्री थे जिन्होंने पाँच वर्षों का कार्यकाल पूर्ण किया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने भारत को आर्थिक आत्मनिर्भरता की राह पर डाला और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ दिया।

पी. वी. नरसिंह राव की विरासत:

 * भारत के आर्थिक चक्रव्यूह को तोड़ने वाले नेता

 * एक संतुलित राजनयिक और नीतिज्ञ

 * बहुभाषाविद, लेखक और दार्शनिक प्रधानमंत्री

 * भारतीय राजनीति में एक मूक लेकिन परिवर्तनकारी व्यक्तित्व

वर्ष 2024 में भारत सरकार ने उनके योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया|

उनका जीवन इस बात का सशक्त उदाहरण है कि धैर्य, बुद्धिमत्ता और विवेकशील नेतृत्व से किसी भी संकट से उबरा जा सकता है।

"नरसिंह राव ने भारत को केवल नई आर्थिक दिशा ही नहीं दी, बल्कि एक आत्मविश्वास से भरे राष्ट्र का निर्माण किया।"


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