बुद्धदेव भट्टाचार्य: एक प्रगतिशील नेता(1 मार्च 1944 -8 अगस्त 2024)

बुद्धदेव भट्टाचार्य: एक प्रगतिशील नेता

बुद्धदेव भट्टाचार्य भारतीय राजनीति के एक प्रमुख वामपंथी नेता हैं, जिन्होंने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में 2000 से 2011 तक सेवा की। वे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई-एम) के वरिष्ठ नेता रहे हैं और अपनी सादगी, विचारधारा और प्रशासनिक नीतियों के लिए जाने जाते हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म 1 मार्च 1944 को पश्चिम बंगाल में हुआ था। उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बंगाली साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। युवा अवस्था से ही वे वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हुए और छात्र जीवन में ही राजनीति में सक्रिय हो गए।

राजनीतिक जीवन

भट्टाचार्य 1966 में सीपीआई(एम) के सदस्य बने और 1977 में पहली बार पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए चुने गए। उन्होंने ज्योति बसु के नेतृत्व वाली सरकार में सूचना और संस्कृति मंत्री का पद संभाला। उनके नेतृत्व में बंगाली संस्कृति और सिनेमा को नई ऊंचाइयां मिलीं।

मुख्यमंत्री के रूप में योगदान

2000 में ज्योति बसु के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भट्टाचार्य ने पश्चिम बंगाल की बागडोर संभाली। उनके शासनकाल में कुछ महत्वपूर्ण पहलें इस प्रकार थीं:

  1. औद्योगिकीकरण नीति – पश्चिम बंगाल में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने टाटा और अन्य कंपनियों को आमंत्रित किया।
  2. सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र का विकास – कोलकाता को एक प्रमुख आईटी हब के रूप में विकसित करने की पहल की।
  3. नंदीग्राम और सिंगूर विवाद – उनकी औद्योगीकरण नीति का विरोध हुआ, खासकर टाटा के नैनो प्रोजेक्ट के कारण सिंगूर में और भूमि अधिग्रहण को लेकर नंदीग्राम में हिंसक संघर्ष हुआ।

राजनीतिक पतन और सेवानिवृत्ति

2011 के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने वाम मोर्चे को हराया, जिससे पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों से चला आ रहा वाम शासन समाप्त हो गया। इस हार के बाद भट्टाचार्य ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली।

8 अगस्त 2024 को इस महान राजनेता का निधन हुआ था

निष्कर्ष

बुद्धदेव भट्टाचार्य एक विचारशील और नीतिगत रूप से सशक्त नेता थे। उन्होंने औद्योगीकरण और आर्थिक विकास की दिशा में कई साहसिक फैसले लिए, लेकिन भूमि अधिग्रहण से जुड़े विवाद उनके लिए घातक साबित हुए। वे आज भी बंगाली राजनीति और वामपंथी आंदोलन का एक महत्वपूर्ण चेहरा माने जाते हैं।

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