कय्यार किन्हन्ना राय: स्वतंत्रता, साहित्य और समाज सेवा के प्रतीक(8 जून 1915- 8 अगस्त 2015)


कय्यार किन्हन्ना राय: स्वतंत्रता, साहित्य और समाज सेवा के प्रतीक(8 जून 1915- 8 अगस्त 2015)

परिचय 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति-धारा, सामाजिक न्याय की भावना और साहित्यिक चेतना की त्रिवेणी के प्रतीक कय्यार किन्हन्ना राय एक असाधारण व्यक्तित्व थे। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रखर पत्रकार, शिक्षाविद और बहुभाषाविद लेखक थे, जिन्होंने अपने जीवन के 100 वर्षों से भी अधिक समय में कर्नाटक और दक्षिण भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना को दिशा दी।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

कय्यार किन्हन्ना राय का जन्म 8 जून 1915 को तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के कसारगोड स्थित कय्यार ग्राम में हुआ था, जो अब कर्नाटक और केरल की सीमा पर स्थित है। वे एक तुलु भाषी परिवार से थे और मूल रूप से तुलु और कन्नड़ भाषाओं में पारंगत थे। हालांकि, उन्होंने मलयालम, संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं पर भी महारत हासिल की, जो उनकी अद्भुत भाषाई क्षमता का प्रमाण है।

शिक्षा और वैचारिक विकास

उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। युवावस्था में ही वे महात्मा गांधी के विचारों से गहराई से प्रभावित हुए और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण औपचारिक शिक्षा को त्याग दिया। उन्होंने आत्मशिक्षा के माध्यम से ज्ञानार्जन किया और एक उत्कृष्ट लेखक व पत्रकार बने। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भले ही सीमित रही हो, लेकिन उनका ज्ञानार्जन का उत्साह और देशप्रेम की भावना ने उन्हें एक प्रबुद्ध विचारक और कुशल लेखक बना दिया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

कय्यार किन्हन्ना राय ने 1934 के आसपास स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया। उन्होंने नमक सत्याग्रह, व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे प्रमुख आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। ब्रिटिश शासन के खिलाफ युवाओं को संगठित करने और उनमें राष्ट्रवाद की भावना जगाने में उनकी भूमिका अहम थी। इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। कासरगोड और दक्षिणी कर्नाटक क्षेत्र में उनका योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा, जहाँ उन्होंने जन-जागरण का महत्वपूर्ण कार्य किया।

पत्रकारिता और लेखन का सशक्त माध्यम

राय जी एक सशक्त लेखक और पत्रकार थे। उन्होंने 'स्वराज्य', 'जनवाणी' और 'नवभारत टाइम्स' जैसे कई प्रतिष्ठित पत्रों में नियमित रूप से लेखन किया। उन्होंने कन्नड़, हिंदी, मलयालम और अंग्रेजी में सामाजिक मुद्दों, राष्ट्रीय आंदोलन, सांस्कृतिक चेतना और साहित्य पर अनगिनत लेख लिखे। वे शांति, धर्मनिरपेक्षता, भाषाई एकता और मानव अधिकारों के प्रबल समर्थक थे और अपनी लेखनी के माध्यम से इन मूल्यों को जन-जन तक पहुँचाया।

साहित्यिक योगदान और तुलु साहित्य का उत्थान

उन्होंने कन्नड़ और तुलु भाषा में कविताएँ, निबंध और लेख लिखे। उनके प्रमुख काव्य संग्रहों और साहित्यिक रचनाओं में सामाजिक न्याय, ग्रामीण जीवन, स्वतंत्रता संग्राम और मानवीय मूल्यों की छवि स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उन्हें 'तुलु साहित्य' को आधुनिक चेतना और पहचान देने वाले प्रमुख लेखकों में से एक माना जाता है। तुलु भाषा में उनकी रचनाएँ भाषा-संरक्षण और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के सशक्त स्तंभ बनीं, जिससे इस समृद्ध भाषा को नई पहचान मिली।

सामाजिक कार्य और विचारधारा

राय जी ने दलितों, आदिवासियों और गरीब तबकों के अधिकारों की हमेशा वकालत की। वे गांधीवादी, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी मूल्यों के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने भाषाई सौहार्द, भारत की एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए अथक कार्य किया। वे मानते थे कि देश की सच्ची प्रगति तभी संभव है जब समाज के सभी वर्गों को समानता और न्याय मिले।

सम्मान और पुरस्कार

कय्यार किन्हन्ना राय को उनके अतुलनीय कार्यों के लिए अनेक सम्मानों से नवाजा गया, जिनमें प्रमुख हैं:
 * राज्योत्सव पुरस्कार (कर्नाटक सरकार द्वारा)
 * केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार
 * टी. एन. शेषन पुरस्कार (लोकतंत्र के संवर्धन के लिए)
 * स्वतंत्रता सेनानी सम्मान
 * कई साहित्यिक और पत्रकारिता पुरस्कार

ये सम्मान उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और समाज के प्रति उनके समर्पण को दर्शाते हैं।

जीवन का अंतिम चरण और निधन

अपने जीवन के अंतिम वर्षों तक भी वे सामाजिक कार्यों, भाषाई अधिकारों और शांति के लिए सक्रिय रहे। उन्होंने 2015 में 100 वर्ष की उम्र में अंतिम साँस ली। उनका निधन 8 अगस्त 2015 को उनके गृह गाँव कय्यार, कसारगोड में हुआ। उनकी मृत्यु पर कर्नाटक और केरल की राज्य सरकारों सहित अनेक साहित्यिक, सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

निष्कर्ष

कय्यार किन्हन्ना राय एक ऐसे क्रांतिकारी युगद्रष्टा थे जिन्होंने अपने विचारों, कार्यों और लेखनी से भारत की आज़ादी, सामाजिक समता, भाषाई सौहार्द और मानवीय मूल्यों को एक नई दिशा दी। वे न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक मानवता के सच्चे प्रहरी, एक विचारशील साहित्यकार और नैतिक मूल्यों के अनन्य रक्षक भी थे। उनका जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का एक अमूल्य स्रोत है।

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