श्री चंद्रशेखर: एक दृढ़निश्चयी नेता
कार्यकाल: 10 नवंबर 1990 – 21 जून 1991 (प्रधानमंत्री, जनता दल (एस))
श्री चंद्रशेखर का जन्म 17 अप्रैल 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपत्ती गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। वे भारतीय राजनीति में अपने दृढ़ संकल्प, साहसिक विचारों और समाजवादी मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध थे।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत
श्री चंद्रशेखर अपने छात्र जीवन से ही राजनीति की ओर आकर्षित थे। वे क्रांतिकारी जोश और गर्म स्वभाव वाले आदर्शवादी नेता के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर (1950-51) की डिग्री प्राप्त करने के बाद समाजवादी आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
उन्हें आचार्य नरेंद्र देव के निकट रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिससे उनके समाजवादी विचार और अधिक मजबूत हुए। वे बलिया जिला प्रजा समाजवादी पार्टी के सचिव चुने गए और जल्द ही उत्तर प्रदेश राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के संयुक्त सचिव बने। 1955-56 में वे उत्तर प्रदेश राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के महासचिव बने।
संसदीय राजनीति में प्रवेश
1962 में वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य चुने गए। जनवरी 1965 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बने। इस दौरान उन्होंने दलितों, वंचितों और समाज के शोषित वर्गों के हितों के लिए आवाज उठाई।
हालांकि, जब उन्होंने सामाजिक असमानता और उच्च वर्गों के एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई, तो उनका सत्ता में बैठे नेताओं से टकराव शुरू हो गया। वे ‘युवा तुर्क’ के रूप में प्रसिद्ध हुए और निर्भीकता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ संघर्ष किया।
पत्रकारिता और वैचारिक संघर्ष
1969 में उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘यंग इंडियन’ की स्थापना और संपादन किया। यह पत्रिका अपने विशिष्ट और प्रभावशाली संपादकीय के लिए जानी जाती थी। आपातकाल (1975-77) के दौरान इस पत्रिका को बंद कर दिया गया, लेकिन फरवरी 1989 में इसका पुनः प्रकाशन शुरू हुआ, और वे इसके संपादकीय सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष बने।
श्री चंद्रशेखर हमेशा व्यक्तिगत राजनीति के विरुद्ध थे और वैचारिक तथा सामाजिक परिवर्तन की राजनीति को महत्व देते थे। यही कारण था कि 1973-75 के दौरान श्री जयप्रकाश नारायण के विचारों से वे और अधिक प्रभावित हुए। इस कारण वे कांग्रेस पार्टी में असंतोष का केंद्र बन गए।
आपातकाल और संघर्ष
25 जून 1975 को जब देश में आपातकाल लागू किया गया, तब श्री चंद्रशेखर को आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि वे उस समय कांग्रेस कार्यसमिति एवं केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य थे।
वे उन कुछ सत्तारूढ़ दल के नेताओं में से थे, जिन्हें आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। इसी दौरान उन्होंने हिंदी में ‘मेरी जेल डायरी’ लिखी, जो बाद में एक महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई। इसके अलावा, ‘सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता’ उनके लेखों का एक प्रसिद्ध संकलन है।
भारत यात्रा और जनता के साथ संवाद
श्री चंद्रशेखर ने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक कन्याकुमारी से दिल्ली के राजघाट (महात्मा गांधी की समाधि) तक लगभग 4,260 किलोमीटर की पदयात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य था लोगों से सीधा संवाद करना और उनकी समस्याओं को समझना।
उन्होंने समाज एवं राजनीति में जागरूकता बढ़ाने के लिए केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा जैसे राज्यों में लगभग 15 ‘भारत यात्रा केंद्रों’ की स्थापना की, ताकि सामाजिक कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर लोगों को शिक्षित कर सकें।
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल
श्री चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। उनका कार्यकाल राजनीतिक अस्थिरता से घिरा रहा, लेकिन उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी देश को दिशा देने का प्रयास किया।
व्यक्तिगत जीवन
श्री चंद्रशेखर का विवाह श्रीमती दूजा देवी से हुआ था। उनके दो पुत्र – पंकज और नीरज हैं।
उपसंहार
श्री चंद्रशेखर भारतीय राजनीति में सिद्धांतों, समाजवादी मूल्यों और जनसंवाद के प्रतीक थे। उन्होंने सत्ता की राजनीति से दूर रहकर लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक परिवर्तन की राजनीति को अपनाया। वे एक निडर, ईमानदार और प्रतिबद्ध नेता थे, जिन्होंने सदैव आम जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
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