श्री चंद्रशेखर: एक दृढ़निश्चयी नेता(17 अप्रैल 1927- 8 जुलाई 2007)कार्यकाल: 10 नवंबर 1990 – 21 जून 1991 (प्रधानमंत्री, जनता दल (एस))(भारत के आठवें प्रधानमंत्री)

श्री चंद्रशेखर: एक दृढ़निश्चयी नेता(17 अप्रैल 1927- 8 जुलाई 2007)

कार्यकाल: 10 नवंबर 1990 – 21 जून 1991 (प्रधानमंत्री, जनता दल (एस))


भारतीय राजनीति के फलक पर कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं जिन्होंने अपने सिद्धांतों और दृढ़ निश्चय से अमिट छाप छोड़ी है. इन्हीं में से एक थे श्री चंद्रशेखर, जिन्होंने 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. जनता दल (सोशलिस्ट) से संबंध रखने वाले चंद्रशेखर जी को एक ऐसे नेता के रूप में याद किया जाता है जो सत्ता के बजाय जनसेवा और समाज सुधार को प्राथमिकता देते थे.

प्रारंभिक जीवन और राजनीतिक सफर की शुरुआत

17 अप्रैल 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपत्ती गाँव में एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे चंद्रशेखर का जीवन भारतीय राजनीति में एक सिद्धांतनिष्ठ समाजवादी की मिसाल है. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की, जहाँ वे छात्र बहसों और आंदोलनों में सक्रिय रहे. यहीं से उनके राजनीतिक रुझान को दिशा मिली. आचार्य नरेंद्र देव जैसे समाजवादी चिंतकों के संपर्क में आने से उनकी विचारधारा और पुख्ता हुई.

1950 के दशक में उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी के बलिया जिला सचिव और फिर उत्तर प्रदेश के महासचिव के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. 1962 में वे राज्यसभा सदस्य बने और 1965 में कांग्रेस में शामिल हो गए. 1967 से 1971 तक उन्होंने कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

युवा तुर्क’ और वैचारिक संघर्ष

चंद्रशेखर अपनी स्पष्टवादिता और निर्भीकता के लिए जाने जाते थे. वे सत्ताधारी वर्ग के दुरुपयोग और सामाजिक विषमता के खिलाफ मुखर रूप से आवाज उठाते थे, जिसने उन्हें 'युवा तुर्क' की पहचान दिलाई. 1969 में उन्होंने 'यंग इंडियन' नामक साप्ताहिक पत्रिका की स्थापना की, जिसके माध्यम से उन्होंने समाज और राजनीति पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कीं. आपातकाल (1975-77) के दौरान इस पत्रिका को बंद कर दिया गया था. जेल में रहते हुए लिखी गई उनकी डायरी 'मेरी जेल डायरी' भारतीय लोकतंत्र और वैचारिक संघर्ष का एक सजीव दस्तावेज है.

आपातकाल का विरोध और ‘भारत यात्रा’

25 जून 1975 को जब देश में आपातकाल लागू किया गया, तब चंद्रशेखर कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य थे. इसके बावजूद उन्होंने आपातकाल का डटकर विरोध किया, जिसके कारण उन्हें आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (MISA) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. यह घटना दर्शाती है कि वे नैतिकता और सिद्धांतों के साथ समझौता करने को तैयार नहीं थे.

जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक कन्याकुमारी से राजघाट (दिल्ली) तक 4,260 किमी की ऐतिहासिक पदयात्रा की, जिसे 'भारत यात्रा' के नाम से जाना जाता है. इस यात्रा का उद्देश्य आम जनता की समस्याओं को समझना, राजनीतिक-सामाजिक संवाद स्थापित करना और राष्ट्र निर्माण में जनभागीदारी को बढ़ावा देना था. उन्होंने इस यात्रा के दौरान कई राज्यों में 'भारत यात्रा केंद्र' स्थापित किए, जो सामाजिक शिक्षा और संवाद के मंच बने.

प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1990-91)

10 नवंबर 1990 को श्री चंद्रशेखर भारत के 8वें प्रधानमंत्री बने. हालांकि उनका कार्यकाल केवल सात महीने का रहा, यह काल राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी समर्थन की जटिलताओं से भरा था. इस दौरान उन्होंने आर्थिक संकट से जूझ रहे देश को IMF और विश्व बैंक के सामने आत्मनिर्भर बनाकर खड़ा करने का प्रयास किया. उन्होंने संवाद और सादगी की राजनीति को प्राथमिकता दी और प्रशासन में कटौती व न्यूनतम सरकार का दृष्टिकोण अपनाया.

व्यक्तिगत जीवन और विरासत

चंद्रशेखर एक साधारण जीवन जीते थे. वे सादे वस्त्र पहनते थे, निजी वाहन का उपयोग नहीं करते थे, और जनता से निरंतर संपर्क में रहते थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती दूजा देवी और दो पुत्र पंकज चंद्रशेखर व नीरज चंद्रशेखर (जो वर्तमान में राजनीति में सक्रिय हैं) थे.

8 जुलाई 2007 को लंबी बीमारी के बाद नई दिल्ली के एम्स में उनका निधन हो गया. उनके पैतृक गाँव इब्राहिमपत्ती में राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया.

उपसंहार

श्री चंद्रशेखर भारतीय राजनीति के उन दुर्लभ नेताओं में से थे जो सिद्धांत, साहस और समाजवादी मूल्यों के प्रतीक थे. वे सच्चे अर्थों में जननेता थे, जिनकी राजनीति सत्ता के लिए नहीं, बल्कि जनसंवाद, न्याय और सामाजिक परिवर्तन के लिए थी. उनका जीवन यह संदेश देता है कि राजनीति केवल एक करियर नहीं, बल्कि एक आदर्श और उत्तरदायित्व है. चंद्रशेखर जी का दृढ़निश्चयी व्यक्तित्व और जनसेवा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता उन्हें भारतीय इतिहास में एक विशिष्ट स्थान दिलाती है.

Post a Comment

0 Comments