राजेंद्र यादव: साहित्य और समाज के एक साहसी योद्धा(28 अगस्त 1929- 28 अक्टूबर 2013)

राजेंद्र यादव: साहित्य और समाज के एक साहसी योद्धा(28 अगस्त 1929- 28 अक्टूबर 2013)
भूमिका 

हिंदी साहित्य में ऐसे बहुत कम लेखक हुए हैं, जिन्होंने अपनी कलम से न केवल कहानियाँ गढ़ीं, बल्कि समाज और साहित्य की दिशा भी बदल दी। इन्हीं में से एक थे राजेंद्र यादव। वे केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि एक विचार, एक आंदोलन थे, जिन्होंने अपनी लेखनी, संपादन और विचारों से हिंदी साहित्य में हलचल मचा दी। उनका जीवन और साहित्यिक सफर इस बात का प्रमाण है कि साहित्य को केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि एक हथियार भी बनाया जा सकता है, जिससे समाज में बदलाव लाया जा सके।

जन्म और प्रारंभिक जीवन: एक विचारक की नींव

28 अगस्त 1929 को उत्तर प्रदेश के इटावा में जन्मे राजेंद्र यादव का बचपन से ही साहित्य से गहरा रिश्ता था। उनके पिता एक शिक्षक थे, जिसका प्रभाव उनकी शिक्षा और व्यक्तित्व पर पड़ा। आगरा विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू की, जो आगे चलकर 'नई कहानी' आंदोलन की नींव बनी। उनकी रचनाओं में बचपन से देखे गए सामाजिक यथार्थ और मध्यवर्गीय जीवन की विसंगतियों की गहरी छाप दिखाई देती है।

साहित्यिक यात्रा और 'नई कहानी' का युग

1950 के दशक में जब हिंदी साहित्य प्रेमचंद के आदर्शवाद और रोमांटिक कहानियों के दायरे में सिमटा हुआ था, तब राजेंद्र यादव, कमलेश्वर और मोहन राकेश जैसे युवा लेखकों ने 'नई कहानी' आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य था, जीवन की सच्चाई को उसके वास्तविक रूप में प्रस्तुत करना। राजेंद्र यादव की पहली कहानी "प्रेत बोलते हैं" (1948) ने इस आंदोलन का रास्ता खोला। बाद में, यह कहानी "सारा आकाश" (1951) उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुई और 'नई कहानी' का एक मील का पत्थर बन गई। इस उपन्यास में उन्होंने भारतीय मध्यवर्ग के दांपत्य जीवन की जटिलताओं, आपसी तनावों और विसंगतियों को बेबाकी से दिखाया।

उनकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं में "उखड़े हुए लोग", "शह और मात", और "जुलूस" शामिल हैं। इन सभी कृतियों में उन्होंने समाज के बदलते स्वरूप, मानवीय संबंधों की टूटन और व्यक्ति के आंतरिक संघर्षों को गहराई से चित्रित किया। वे मानते थे कि कहानी केवल कल्पना नहीं, बल्कि जीवन का यथार्थ होती है।

संपादक के रूप में 'हंस' और एक नया विमर्श

राजेंद्र यादव का सबसे बड़ा योगदान उनकी लेखनी से भी कहीं ज्यादा, उनके संपादन में दिखाई देता है। 1986 में उन्होंने प्रेमचंद द्वारा स्थापित प्रतिष्ठित पत्रिका "हंस" का पुनर्प्रकाशन शुरू किया। यह सिर्फ एक पत्रिका नहीं थी, बल्कि एक ऐसा मंच बन गई, जहाँ समाज के हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज़ें गूँजीं। उन्होंने नारी विमर्श, दलित विमर्श, समलैंगिकता और जातिगत भेदभाव जैसे संवेदनशील विषयों पर खुलकर बहस की।
'हंस' के माध्यम से उन्होंने कई नए लेखकों और लेखिकाओं को मौका दिया। उन्होंने साहित्य को केवल साहित्यिक बहस तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे सामाजिक संघर्ष से जोड़ा। उनकी सोच थी कि जब तक साहित्य समाज के ज्वलंत मुद्दों से नहीं जुड़ेगा, तब तक वह अधूरा रहेगा। यही कारण है कि 'हंस' की गिनती उन पत्रिकाओं में होती है, जिसने हिंदी साहित्य में एक नई वैचारिक क्रांति ला दी।

विचारों के योद्धा: समाज को जगाने की मशाल

राजेंद्र यादव ने अपने लेखन और संपादन के अलावा, अपने विचारों से भी समाज को झकझोरा। वे बेबाक और निडर थे। उन्होंने स्त्री स्वतंत्रता और समानता पर खुलकर बात की। उन्होंने "एक दुनिया समानांतर" जैसी संकलित कहानियों के माध्यम से स्त्री-पुरुष संबंधों और उनकी जटिलताओं को सामने रखा। दलित साहित्य के आंदोलन को भी उन्होंने भरपूर समर्थन दिया और दलित लेखकों को मुख्यधारा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनके विचार अक्सर विवादों को जन्म देते थे, लेकिन यही उनकी सबसे बड़ी खूबी थी। वे परंपराओं को चुनौती देने और नए विचारों को स्थापित करने से कभी नहीं हिचकिचाए। वे मानते थे कि समाज को आगे ले जाने के लिए बहस और विचारों का टकराव ज़रूरी है।

निधन और विरासत: एक युग का अंत

28 अक्टूबर 2013 को राजेंद्र यादव का निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। उनके योगदान को केवल उनकी रचनाओं से नहीं, बल्कि उनके द्वारा शुरू किए गए विमर्शों से मापा जा सकता है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि एक लेखक की भूमिका केवल लिखने तक सीमित नहीं होती, बल्कि वह समाज का मार्गदर्शक भी होता है।
आज भी जब हम 'नई कहानी' आंदोलन, नारी विमर्श या सामाजिक सरोकारों की बात करते हैं, तो राजेंद्र यादव का नाम सबसे ऊपर आता है। वे साहित्य के ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने अपनी कलम को समाज की समस्याओं को दूर करने का एक माध्यम बनाया। उनकी मृत्यु से हिंदी साहित्य में एक बड़ा शून्य पैदा हुआ है, जिसे भरना मुश्किल है।

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