पंडित विष्णु कांत झा का जीवन भारतीय ज्ञान परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का एक अनुपम उदाहरण है। वे न केवल एक असाधारण ज्योतिषाचार्य थे, बल्कि एक संस्कृत कवि, शिक्षाविद् और ऐसे भविष्यवक्ता भी थे, जिनकी गणनाओं ने भारत के इतिहास की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन और योगदान हमें यह सिखाता है कि कैसे ज्ञान, समर्पण और दूरदृष्टि से व्यक्ति समाज और राष्ट्र के लिए एक अमिट छाप छोड़ सकता है।
प्रारंभिक जीवन, पारिवारिक जड़ें और विरासत
पंडित विष्णु कांत झा का जन्म 10 अक्टूबर 1912 को बिहार के पटना जिले के बैकुंठपुर ग्राम में हुआ था। उनका पैतृक स्थान यद्यपि दरभंगा जिले के तमौड़िया ग्राम में था, लेकिन उनके परिवार को नवाब सिराजुद्दौला द्वारा ज्योतिष विद्या में उनकी असाधारण निपुणता के लिए एक लाख से अधिक की जमींदारी दान में मिली थी। इसी कारण उनके पूर्वज बैकुंठपुर में आकर बस गए, जिसने उनके परिवार को एक नई पहचान दी। उनके पिता, उग्रनाथ झा, स्वयं एक प्रख्यात ज्योतिषाचार्य थे, और उनकी माता का नाम गंगा देवी था। इस प्रकार, ज्योतिष का ज्ञान उन्हें विरासत में मिला, जिसने उनके भविष्य की नींव रखी।
बैकुंठपुर का यह ग्राम केवल उनकी जन्मभूमि नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक महत्व का स्थान भी है। यहाँ स्थित प्राचीन गौरी शंकर मंदिर अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की प्रतिमा भी विराजमान है, और शिवलिंग पर 108 छोटे-छोटे शिवलिंग अंकित हैं, जो इसे अत्यंत विशेष और पूजनीय बनाते हैं। यह परिवेश, जहाँ धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का संगम था, निश्चित रूप से बालक विष्णु कांत के मन पर गहरा प्रभाव डाला होगा।
शिक्षा, विद्वत्ता और उपाधियाँ
बचपन से ही पंडित विष्णु कांत झा ने संस्कृत और ज्योतिष में गहरी रुचि दिखाई। उनकी प्रतिभा असाधारण थी, और उन्होंने वेद, ज्योतिष, दर्शन और साहित्य के गहन अध्ययन में स्वयं को समर्पित कर दिया। उनकी विद्वत्ता इतनी विलक्षण थी कि काशी के प्रकांड महापंडितों ने उन्हें 'देव शिरोमणि' की उपाधि से सम्मानित किया, जो उनकी मेधा और ज्ञान की पराकाष्ठा का प्रमाण था। उनकी उत्कृष्ट अकादमिक उपलब्धियों को देखते हुए, कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा ने उन्हें 'वाचस्पति' एवं 'डी. लिट्' जैसी मानद उपाधियाँ प्रदान कीं, जिससे उनकी विद्वत्ता को संस्थागत मान्यता मिली।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान: 'पद्मश्री' से 'वाचस्पति' तक
पंडित विष्णु कांत झा को उनकी विद्वत्ता और ज्योतिषीय योगदान के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया गया। 1961 में, भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें 'पद्मश्री' पुरस्कार से सम्मानित किया। यह सम्मान न केवल उनके व्यक्तिगत योगदान का प्रमाण था, बल्कि यह भी दर्शाता था कि कैसे तत्कालीन भारत सरकार ने प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा और उसके संरक्षकों को महत्व दिया।
इसके अतिरिक्त, उन्हें विभिन्न संस्कृत संस्थानों द्वारा ज्योतिषाचार्य, ज्योतिषरत्न, ज्योतिषालंकार, देवशिरोमणि, साहित्यालंकार, महामहिमोपाध्याय, विद्यावाचस्पति जैसे अनेक अलंकरणों से विभूषित किया गया। ये सभी उपाधियाँ और सम्मान उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और विभिन्न क्षेत्रों में उनकी गहरी पैठ को दर्शाते हैं।
संस्कृत भाषा और ज्योतिष में अतुलनीय योगदान
पंडित विष्णु कांत झा केवल एक ज्योतिषाचार्य ही नहीं थे, बल्कि वे एक संस्कृत कवि भी थे, जिन्होंने अपनी लेखनी से भारतीय साहित्य को समृद्ध किया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें उनकी साहित्यिक और दार्शनिक गहरी समझ परिलक्षित होती है:
* श्री वैद्यनाथ प्रशस्ति: यह कृति संभवतः किसी धार्मिक या पौराणिक महत्व के विषय पर केंद्रित थी, जो उनकी भक्ति और साहित्यिक कौशल को दर्शाती है।
* बुद्धचरित और बुद्धोपाख्यानम: इन कृतियों से स्पष्ट होता है कि वे बौद्ध दर्शन और भगवान बुद्ध के जीवन से भी गहराई से प्रभावित थे, जो उनकी व्यापक वैचारिक दृष्टि का परिचायक है।
* डॉ. राजेंद्र प्रसाद वंश प्रशस्ति: यह उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है। इस कृति को लिखने पर स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि संस्कृत में भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का जीवन चरित्र लिखकर पंडित झा ने भारत के गौरवशाली इतिहास को संजोने का एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने संस्कृत भाषा में आधुनिक भारत की घटनाओं को लिपिबद्ध करने के इस प्रयास को अत्यंत सराहनीय बताया, क्योंकि यह संस्कृत को समकालीन प्रासंगिकता प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण कदम था।
प्रशासनिक एवं शैक्षणिक भूमिका: ज्ञान के प्रसारक
पंडित विष्णु कांत झा शिक्षा एवं प्रशासनिक गतिविधियों में भी सक्रिय रूप से संलग्न रहे, जिससे उन्होंने ज्ञान के प्रसार और शैक्षिक संस्थानों को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अनेक वर्षों तक विभिन्न प्रतिष्ठित पदों पर कार्य किया:
* वे बिहार राज्य संस्कृत समिति की परीक्षाओं के प्रश्न निर्माता एवं परीक्षक रहे, जिससे संस्कृत शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित हुई।
* बिहार राज्य संस्कृत समिति के प्रश्न संशोधन समिति में ज्योतिष विषय के विशेषज्ञ सदस्य के रूप में, उन्होंने ज्योतिष पाठ्यक्रम के मानकीकरण और सुधार में योगदान दिया।
* बिहार राज्य संस्कृत परिषद के लिए सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य के रूप में, उन्होंने राज्य स्तर पर संस्कृत भाषा के विकास और संरक्षण हेतु नीतिगत निर्णय लेने में सक्रिय भूमिका निभाई।
* पटना के राजकीय संस्कृत महाविद्यालय की प्रबंध समिति एवं राजकीय संस्कृत उच्च विद्यालय, पटना की प्रबंध समिति में वे सरकार द्वारा नामित/नियुक्त सदस्य रहे, जहाँ उन्होंने इन संस्थानों के सुचारु संचालन और उन्नति में योगदान दिया।
* वे बिहार राज्य संस्कृत साहित्य सम्मेलन के सदस्य एवं उपाध्यक्ष भी रहे, जो संस्कृत साहित्य के संवर्धन के लिए एक महत्वपूर्ण मंच था।
* बिहार संस्कृत साहित्य संघ के मानद परामर्शदाता के रूप में, उन्होंने संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में विद्वानों और शोधकर्ताओं का मार्गदर्शन किया।
इन भूमिकाओं के माध्यम से उन्होंने न केवल संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा दिया, बल्कि ज्योतिष विज्ञान को भी अकादमिक और प्रशासनिक स्तर पर उचित सम्मान और पहचान दिलाई।
ज्योतिष एवं ऐतिहासिक भविष्यवाणियाँ: नियति के ज्ञाता
पंडित विष्णु कांत झा की भविष्यवाणियाँ इतनी सटीक थीं कि उन्होंने भारतीय राजनीति और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं पर भी गहरा प्रभाव डाला। उनकी दूरदृष्टि ने उन्हें 'नियति के ज्ञाता' के रूप में स्थापित किया।
* भारत की स्वतंत्रता तिथि का निर्धारण: जब अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया चल रही थी, और 15 अगस्त को भारत की स्वतंत्रता का दिन तय किया गया था, तब पंडित विष्णु कांत झा ने अपनी गहन ज्योतिषीय गणना के आधार पर 14 अगस्त की मध्यरात्रि को शुभ मुहूर्त बताया। उनकी इस गणना को तत्कालीन नेताओं ने मान्यता दी, और इसी के अनुसार 15 अगस्त 1947 की रात 12 बजे भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसमें उनकी ज्योतिषीय अंतर्दृष्टि ने निर्णायक भूमिका निभाई।
* डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पुनर्निर्वाचना: जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने की चर्चा थी, तो पंडित विष्णु कांत झा ने स्पष्ट रूप से भविष्यवाणी की थी कि जिस ग्रह-योग में वे पहली बार राष्ट्रपति बने थे, वही ग्रह-योग पुनः उपस्थित है, और इसलिए वे निर्विरोध चुने जाएँगे। यह भविष्यवाणी भी सत्य सिद्ध हुई, और राजेंद्र प्रसाद बिना किसी विरोध के दूसरी बार भारत के राष्ट्रपति बने।
* बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक उत्थान की भविष्यवाणी: उन्होंने बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक भविष्य के बारे में भी एक महत्वपूर्ण भविष्यवाणी की थी। उन्होंने कहा था कि बाबू जगजीवन राम लगातार 42 वर्षों तक मंत्री पद सुशोभित करेंगे और अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी बनेंगे। यह भविष्यवाणी भी पूरी तरह से सत्य सिद्ध हुई, जिससे उनकी ज्योतिषीय क्षमता की व्यापकता प्रमाणित हुई।
इन भविष्यवाणियों ने पंडित विष्णु कांत झा को एक असाधारण ज्योतिषाचार्य के रूप में स्थापित किया, जिनकी गणनाओं पर देश के शीर्ष नेता भी विश्वास करते थे।
महान हस्तियों से संबंध और दूरगामी प्रभाव
पंडित विष्णु कांत झा की विद्वत्ता, उनकी सरलता और उनकी अद्भुत ज्योतिषीय क्षमताओं के कारण वे अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के राजनेताओं एवं गणमान्य व्यक्तियों के निकट संबंधी बन गए थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. जाकिर हुसैन, वी. वी. गिरि, बाबू जगजीवन राम, श्रीकृष्ण सिंह, ललित नारायण मिश्र, बलिराम भगत जैसे दिग्गजों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे। उनकी सलाह और ज्योतिषीय मार्गदर्शन को कई बड़े नेताओं ने न केवल सुना, बल्कि स्वीकार भी किया, जो उनकी प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता का प्रमाण है। वे केवल भविष्यवक्ता नहीं थे, बल्कि एक ऐसे मार्गदर्शक थे, जिनकी सलाह ने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय निर्णयों को प्रभावित किया।
महान विद्वान का निधन और उनकी शाश्वत विरासत
पंडित विष्णु कांत झा का निधन 20 फरवरी 1980 को हुआ, लेकिन उनका योगदान आज भी भारतीय समाज में अमर है। उन्होंने संस्कृत भाषा के उत्थान, ज्योतिष विज्ञान के प्रचार और भारतीय संस्कृति के संरक्षण में अतुलनीय योगदान दिया। उनकी भविष्यवाणियाँ और साहित्यिक कृतियाँ आज भी भारतीय समाज में ज्योतिष और संस्कृत के महत्व को दर्शाती हैं। उनके प्रयासों ने न केवल ज्योतिष विज्ञान को एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेज कर रखा और उसे आधुनिक संदर्भों से जोड़ा।
निष्कर्ष: एक युगदृष्टा का सम्मान
पंडित विष्णु कांत झा केवल एक ज्योतिषाचार्य नहीं थे, बल्कि वे एक संस्कृत भाषा के संरक्षक, लेखक, कवि और शिक्षाविद् भी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में भारत की संस्कृति, इतिहास और ज्ञान परंपरा को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन और कार्य हमें याद दिलाता है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी विशेषज्ञता और समर्पण से समाज और राष्ट्र के लिए एक अद्वितीय विरासत छोड़ सकता है। उनके योगदानों को युगों-युगों तक याद रखा जाएगा, और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।

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