मदन लाल ढींगरा : अमर शहीद क्रांतिकारी( 18 सितंबर 1883- 17 अगस्त 1909 )

मदन लाल ढींगरा : अमर शहीद क्रांतिकारी( 18 सितंबर 1883- 17 अगस्त 1909 )

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अनेक ऐसे वीर क्रांतिकारी हुए जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। इन क्रांतिकारियों में मदन लाल ढींगरा का नाम विशेष गौरव और सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने अंग्रेज़ साम्राज्यवाद के विरुद्ध क्रांतिकारी मार्ग अपनाया और मात्र 26 वर्ष की आयु में हँसते-हँसते फाँसी का वरण कर लिया।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब प्रांत के अमृतसर में एक संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनके पिता डॉ. दुलीचंद ढींगरा प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक थे तथा अमृतसर सिविल अस्पताल में सर्जन के पद पर कार्यरत थे। ढींगरा का परिवार अंग्रेज़ों के निकट और अंग्रेज़ी शिक्षा-सभ्यता से प्रभावित था।

शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों में ही ढींगरा के भीतर अंग्रेज़ी शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों और भारतीय जनता की दयनीय स्थिति के प्रति विद्रोह की भावना जाग उठी।

शिक्षा और इंग्लैंड प्रवास

1906 में उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड गए और वहाँ के प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन से इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। इसी दौरान उनका संपर्क भारत के क्रांतिकारी संगठन ‘इंडिया हाउस’ से हुआ, जिसकी स्थापना श्यामजी कृष्ण वर्मा ने की थी और जिसे बाद में वीर सावरकर ने क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बना दिया था।

इंडिया हाउस में रहते हुए ढींगरा का परिचय उन राष्ट्रवादी विचारों से हुआ जो उन्हें मातृभूमि की आज़ादी के लिए कुछ भी करने की प्रेरणा देते थे।


क्रांतिकारी गतिविधियाँ

इंग्लैंड में रहते हुए उन्होंने यूरोप के अन्य क्रांतिकारियों से संपर्क साधा और हथियार चलाने की विधि सीखी। वे दृढ़ निश्चयी थे कि भारत की स्वतंत्रता केवल संघर्ष और बलिदान से ही संभव है।

1909 में उन्होंने इंग्लैंड में भारतीय छात्रों और स्वतंत्रता सेनानियों पर होने वाले अत्याचारों का प्रत्यक्ष अनुभव किया। इसी समय उन्होंने अंग्रेज़ अधिकारियों से प्रतिशोध लेने का निश्चय किया।

विलियम कर्ज़न वायली की हत्या

1 जुलाई 1909 को लंदन में “इंडियन नेशनल एसोसिएशन” के एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में ब्रिटिश सरकार के अधिकारी कर्नल विलियम कर्ज़न वायली भी उपस्थित थे। ढींगरा ने उस अवसर पर गोली मारकर वायली की हत्या कर दी।

यह घटना ब्रिटेन की धरती पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गूँज थी। अंग्रेज़ शासकों के लिए यह एक गहरा झटका था, वहीं भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह साहस और बलिदान का प्रतीक बन गया।

गिरफ्तारी और मुकदमा

ढींगरा को घटना स्थल पर ही गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया। अदालत में उन्होंने बड़ी निर्भीकता और स्पष्ट शब्दों में अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा:

“मैंने यह काम किसी व्यक्तिगत द्वेष के कारण नहीं किया है। यह एक राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए किया गया कृत्य है।”

उनकी इस निर्भीक गवाही ने उन्हें भारतीय युवकों के लिए आदर्श बना दिया।

फाँसी और बलिदान

मदन लाल ढींगरा को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। 17 अगस्त 1909 को लंदन की पेंटनविल जेल में उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

फाँसी के समय भी उनके चेहरे पर आत्मविश्वास और देशभक्ति की आभा झलक रही थी। वे मात्र 26 वर्ष की आयु में शहीद हो गए, किंतु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दे गए।


महत्व और विरासत

मदन लाल ढींगरा का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में मील का पत्थर सिद्ध हुआ।

  • उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय युवा मातृभूमि के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने को तत्पर हैं।
  • उनके बलिदान से वीर सावरकर, लाला हरदयाल, रास बिहारी बोस जैसे अनेक क्रांतिकारी प्रेरित हुए।
  • उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी धार को और प्रखर बना दिया।

आज भी ढींगरा को भारत के उन महान बलिदानियों में गिना जाता है जिन्होंने पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।

निष्कर्ष

मदन लाल ढींगरा का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चे देशभक्त के लिए जीवन का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत सुख-सुविधाएँ नहीं, बल्कि मातृभूमि की स्वतंत्रता और सम्मान होता है। उनका बलिदान भारतीय युवाओं को सदा यह प्रेरणा देता रहेगा कि जब भी मातृभूमि पर संकट आए, तब साहसपूर्वक आगे बढ़कर उसकी रक्षा करनी चाहिए।


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