भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गाथा केवल 1857 के प्रथम संग्राम से आरंभ नहीं होती, बल्कि इससे पहले भी अनेक जननायकों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष किया। इन संघर्षशील वीरों में महाराष्ट्र के क्रांतिकारी उमाजी नायक का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उन्होंने किसानों, मजदूरों और आम जन की पीड़ा को अपना समझकर अंग्रेज़ों और उनके सहयोगी जमींदारों के खिलाफ शस्त्र उठाए
जन्म और प्रारंभिक जीवन
उमाजी नायक का जन्म 7 सितम्बर 1791 को महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के भीमठाण गाँव में हुआ था। वे एक साधारण मराठा किसान परिवार से संबंधित थे। बचपन से ही उनमें साहस, पराक्रम और नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। उनका हृदय न्यायप्रिय था और वे सदैव गरीबों तथा कमजोरों की सहायता करने के लिए तत्पर रहते थे। गाँव के किसान परिवारों की दयनीय स्थिति और अंग्रेज़ों की कठोर कर प्रणाली को देखकर उनके मन में विद्रोह की भावना अंकुरित हुई।
अंग्रेज़ी शोषण और विद्रोह की पृष्ठभूमि
18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 19वीं शताब्दी के आरंभ में मराठा साम्राज्य का पतन हो चुका था। अंग्रेज़ों ने कर और लगान बढ़ाकर किसानों की स्थिति दयनीय बना दी थी।
किसान कर्ज़ में डूबते जा रहे थे। अंग्रेज़ी अधिकारी और स्थानीय जमींदार कठोर वसूली करते थे। जनता को न्याय और सुरक्षा दोनों से वंचित होना पड़ रहा था। इन परिस्थितियों ने उमाजी नायक को संगठित प्रतिरोध का मार्ग अपनाने को प्रेरित किया।
विद्रोह और संघर्ष की शुरुआत
उमाजी नायक ने किसानों, गड़रियों, चरवाहों और वंचित वर्गों को संगठित किया। उन्होंने अंग्रेज़ों और ज़मींदारों के खिलाफ लड़ाई छेड़ी।
किसानों के मसीहा
उन्होंने किसानों को अन्यायपूर्ण कर न देने के लिए प्रोत्साहित किया। अत्याचारी जमींदारों से कर जबरन छुड़ाकर गरीब किसानों की मदद की।
गुरिल्ला युद्ध शैली
उमाजी नायक अपने दस्तों के साथ पश्चिमी घाट के जंगलों और पहाड़ों में छिपकर अचानक आक्रमण करते। यह युद्धशैली अंग्रेज़ों के लिए बड़ी चुनौती बन गई।
जननायक और 'भारतीय रॉबिनहुड'
अंग्रेज़ और ज़मींदार उन्हें डाकू कहते थे, किंतु जनता उन्हें जननायक मानती थी। वे अमीरों से धन लेकर गरीबों की सहायता करते थे, इसलिए उन्हें "भारतीय रॉबिनहुड" कहा गया।
अंग्रेज़ों से टक्कर
अंग्रेज़ सरकार उनकी बढ़ती शक्ति और लोकप्रियता से घबरा गई। उनके सिर पर इनाम रखा गया। अनेक बार अंग्रेज़ी सेना ने उन्हें पकड़ने का प्रयास किया, परंतु उनकी गुरिल्ला शैली ने उन्हें विफल किया। उनके आंदोलन ने अंग्रेज़ों की प्रशासनिक व्यवस्था को हिला दिया।
गिरफ्तारी और बलिदान
आख़िरकार अंग्रेज़ों ने अपने गुप्तचरों की मदद से उन्हें धोखे से पकड़ लिया। उमाजी नायक को कैद कर पुणे लाया गया। 3 अप्रैल 1832 को उन्हें फाँसी देकर वीरगति प्राप्त हुई। बलिदान के समय उनकी आयु मात्र 41 वर्ष थी।
योगदान और महत्व
प्रारंभिक स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत – 1857 से पहले ही उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता को खुली चुनौती दी।
गुरिल्ला युद्ध के प्रवर्तक – उन्होंने युद्ध की ऐसी शैली अपनाई जिसे आगे चलकर कई क्रांतिकारियों ने अपनाया।
किसानों के रक्षक – उन्होंने किसानों को शोषण के विरुद्ध खड़ा होने का साहस दिया।
जननायक की विरासत – महाराष्ट्र के लोकगीतों, लोककथाओं और स्मृतियों में वे आज भी जीवित हैं।
निष्कर्ष
उमाजी नायक का जीवन इस बात का प्रमाण है कि स्वतंत्रता केवल बड़े राजनेताओं और सेनापतियों की देन नहीं है, बल्कि गाँव-गाँव में पनपे जननायक भी इसके लिए अपनी जान न्यौछावर करते रहे। उनका जन्मदिन 7 सितम्बर 1791 और बलिदान दिवस 3 अप्रैल 1832 भारतीय इतिहास में अमर स्मृतियों के रूप में दर्ज हैं। उन्होंने यह संदेश दिया कि यदि जनता संगठित होकर अन्याय का विरोध करे, तो किसी भी साम्राज्य की नींव हिल सकती है।

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