आर. के. नारायण: मालगुडी का कथाकार(10 अक्टूबर 1906 – 13 मई 2001)
भूमिका
आर. के. नारायण (रासीपुरम कृष्णास्वामी अय्यर नारायणस्वामी, 10 अक्टूबर 1906 – 13 मई 2001) भारतीय अंग्रेजी साहित्य के उन तीन महान उपन्यासकारों में से एक हैं, जिन्होंने विश्व पटल पर भारतीय लेखन को एक विशिष्ट पहचान दिलाई। मुल्कराज आनंद और राजा राव के साथ उन्हें 'बृहत्त्रयी' का हिस्सा माना जाता है। उनकी सबसे बड़ी साहित्यिक देन है मालगुडी, एक काल्पनिक दक्षिण भारतीय शहर, जिसे उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों का केंद्र बनाया और जो आज भी पाठकों के मन में एक जीवंत स्थान रखता है।
जीवन परिचय
आर. के. नारायण का जन्म 10 अक्टूबर 1906 को मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था। उनके पिता एक अध्यापक थे, जिसके कारण उनका बचपन ज्यादातर उनकी दादी के पास मैसूर में बीता। उनकी दादी द्वारा सुनाई गई कहानियों ने संभवतः बचपन में ही उनमें कहानी कहने की कला के प्रति रुचि पैदा कर दी थी। उन्होंने मैसूर के महाराजा कॉलेज से स्नातक (ग्रेजुएशन) की उपाधि प्राप्त की। कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में अंग्रेजी में असफल होने के बावजूद, बाद में उन्होंने इसी भाषा में विश्व-स्तरीय साहित्य की रचना की।
शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया, लेकिन जल्द ही पूर्ण रूप से लेखन में जुट जाने का निर्णय लिया। उनकी लेखन यात्रा की शुरुआत 'द हिंदू' अखबार के लिए लघु कथाएँ लिखने से हुई।
साहित्यिक योगदान और 'मालगुडी'
नारायण की लेखन शैली सरल, सहज और हास्य-व्यंग्य से भरी है। उनके लेखन की सबसे बड़ी विशेषता है साधारण जीवन की घटनाओं में निहित मानवीय भावनाओं, विडंबनाओं और संघर्षों का सूक्ष्म चित्रण। वह अपने पात्रों के माध्यम से भारतीय समाज, संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों पर पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव को बड़ी संवेदनशीलता से दर्शाते हैं।
मालगुडी (Malgudi)
मालगुडी उनकी रचनाओं का ध्रुव तारा है। यह एक ऐसा काल्पनिक शहर है जो किसी भी दक्षिण भारतीय छोटे शहर जैसा लगता है। यहीं पर उनके अधिकांश पात्र—जैसे स्वामीनाथन (स्वामी और उसके दोस्त का मासूम स्कूली बच्चा), राजू (द गाइड का पथ-प्रदर्शक) और चंद्रा (द बैचलर ऑफ आर्ट्स का संवेदनशील युवा)—जीवन की सच्चाइयों से जूझते हैं। मालगुडी सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि भारतीय मध्यवर्गीय जीवन का एक दर्पण है, जहाँ आशा, निराशा, अंधविश्वास, आधुनिकता और परंपरा का ताना-बाना बुना जाता है।
प्रमुख कृतियाँ
स्वामी और उसके दोस्त (Swami and Friends, 1935): उनका पहला उपन्यास, जो बाल मनोविज्ञान पर आधारित है और जिसे महान ब्रिटिश लेखक ग्राहम ग्रीन की अनुशंसा पर प्रकाशित किया गया।
द बैचलर ऑफ आर्ट्स (The Bachelor of Arts, 1937): कॉलेज के दिनों और युवावस्था के द्वंद्व को दर्शाता है।
द इंग्लिश टीचर (The English Teacher, 1945): उनकी पत्नी के निधन के बाद लिखा गया, यह उपन्यास निजी दुःख और आध्यात्मिक खोज को व्यक्त करता है।
द गाइड (The Guide, 1958): यह उनकी सबसे चर्चित कृति है, जिसके लिए उन्हें 1960 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पर इसी नाम से एक कालजयी फिल्म भी बनी, जिसने उन्हें अपार लोकप्रियता दिलाई।
मालगुडी डेज़ (Malgudi Days): लघु कथाओं का संग्रह, जिस पर दूरदर्शन पर एक अत्यंत लोकप्रिय धारावाहिक भी प्रसारित हुआ।
सम्मान और विरासत
आर. के. नारायण को साहित्य के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया।
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960) उपन्यास द गाइड के लिए।
पद्म भूषण (1964)
पद्म विभूषण (2000)
1989 में उन्हें राज्यसभा का मानद सदस्य भी नामित किया गया, जहाँ उन्होंने शिक्षा व्यवस्था और समाज से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाए।
आर. के. नारायण की विरासत भारतीय साहित्य में अमूल्य है। उनकी कहानियाँ हमें दिखाती हैं कि कैसे साधारण जीवन की छोटी-छोटी घटनाएँ भी गहरे मानवीय सत्य को उजागर कर सकती हैं। उनकी रचनाओं ने भारतीय अंग्रेजी लेखन को एक नई दिशा दी और विश्वभर के पाठकों को भारतीय जीवन की सरलता और जटिलता दोनों से परिचित कराया।
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