लोकनायक जयप्रकाश नारायण: स्वतंत्रता सेनानी से 'संपूर्ण क्रांति' के जनक तक (जन्म: 11 अक्टूबर, 1902; मृत्यु: 8 अक्टूबर, 1979)

लोकनायक जयप्रकाश नारायण: स्वतंत्रता सेनानी से 'संपूर्ण क्रांति' के जनक तक (जन्म: 11 अक्टूबर, 1902; मृत्यु: 8 अक्टूबर, 1979) 

भूमिका 

जयप्रकाश नारायण, जिन्हें लोकप्रिय रूप से 'जेपी' या 'लोकनायक' (जनता के नेता) के नाम से जाना जाता है, भारतीय राजनीति के उन विरले व्यक्तित्वों में से एक थे जिन्होंने सत्ता की राजनीति से ऊपर उठकर जन-सेवा और सामाजिक परिवर्तन को अपना ध्येय बनाया। उनका जीवन (जन्म: 11 अक्टूबर, 1902; मृत्यु: 8 अक्टूबर, 1979) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, समाजवादी चिंतन, और लोकतंत्र की रक्षा के लिए आजीवन संघर्ष की एक अमर गाथा है।

प्रारंभिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को बिहार के सिताब दियारा गाँव में हुआ था। उनकी उच्च शिक्षा अमेरिका में हुई, जहाँ वे मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित हुए। 1929 में भारत लौटने के बाद, वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और महात्मा गाँधी उनके राजनीतिक गुरु बने।

 कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP): 1934 में, उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव और अन्य नेताओं के साथ मिलकर कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना की। वे भारतीय समाजवाद के प्रमुख प्रवक्ता और प्रचारक बने।

 भारत छोड़ो आंदोलन (1942): यह आंदोलन जेपी के क्रांतिकारी साहस का प्रतीक बना। आंदोलन के दौरान, वे हजारीबाग केंद्रीय कारागार से भाग निकले और भूमिगत रहकर स्वतंत्रता संग्राम का संगठन किया, जिससे उन्हें 'राष्ट्रीय संघर्षकर्ता' के रूप में वीरोचित ख्याति मिली।

स्वतंत्रता के बाद की यात्रा: समाजवाद से सर्वोदय तक
आज़ादी के बाद, जेपी ने चुनावी राजनीति से दूरी बना ली और अपना ध्यान समाज-सेवा और ग्राम-स्वराज की ओर केंद्रित किया।

सर्वोदय और भूदान आंदोलन: 1950 और 1960 के दशक में, वे विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से गहराई से जुड़े। उन्होंने भूमिहीनों के लिए ज़मीन के पुनर्वितरण और ग्रामीण उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने महसूस किया कि सच्चा परिवर्तन केवल 'हृदय परिवर्तन' और अहिंसक सामाजिक सुधार से ही संभव है, न कि केवल राजनीतिक सत्ता से। इस काल में उन्होंने लोकनीति के पक्ष में दलगत राजनीति को त्याग दिया।

'संपूर्ण क्रांति' का आह्वान और लोकतंत्र की रक्षा

जयप्रकाश नारायण के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चरण 1970 के दशक में आया। देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, और अलोकतांत्रिक प्रवृत्तियों ने उन्हें एक बार फिर सक्रिय राजनीति में आने को प्रेरित किया।

  संपूर्ण क्रांति: 5 जून 1975 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में, जेपी ने 'सम्पूर्ण क्रांति' का आह्वान किया। उनका नारा था: "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।" उनका मत था कि व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन आवश्यक है।

 आपातकाल: 1975 में, जब तत्कालीन सरकार ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की और जेपी सहित अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, तब जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र की रक्षा के लिए विपक्ष के सर्वमान्य नेता बनकर उभरे। उनका संघर्ष ही 1977 में आपातकाल की समाप्ति और देश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन का आधार बना।

जीवन का अंत और विरासत

लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 8 अक्टूबर, 1979 को पटना में अंतिम साँस ली। उनकी मृत्यु भारतीय राजनीति के एक युग का अंत थी, लेकिन उनका विचार अमर रहा।

 उन्हें समाज सेवा के लिए 1965 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1999 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया।

 जेपी का 'संपूर्ण क्रांति' का आह्वान आज भी लोकतंत्र में जनता की शक्ति और भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक बना हुआ है। उनका जीवन त्याग, साहस और लोकतंत्र के प्रति अटूट आस्था का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसने देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया।

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