भारतीय सिनेमा का 'दबंग' सितारा: विनोद खन्ना(6 अक्टूबर, 1946 - 27 अप्रैल, 2017)

भारतीय सिनेमा का 'दबंग' सितारा: विनोद खन्ना(6 अक्टूबर, 1946 - 27 अप्रैल, 2017)

भूमिका 

विनोद खन्ना (6 अक्टूबर, 1946 - 27 अप्रैल, 2017) भारतीय सिनेमा के इतिहास के सबसे प्रतिभाशाली और आकर्षक अभिनेताओं में से एक थे। अपने शानदार लुक, दमदार अभिनय और बहुमुखी प्रतिभा के दम पर उन्होंने न केवल दर्शकों के दिलों पर राज किया, बल्कि एक सफल राजनेता के रूप में भी अपनी एक अलग छाप छोड़ी। उनका फिल्मी सफर खलनायक के रूप में शुरू हुआ और फिर मुख्य नायक के रूप में ऊँचाइयों को छुआ, जो अपने आप में एक प्रेरणादायक कहानी है।

प्रारंभिक जीवन और फिल्मी करियर की शुरुआत

विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर, 1946 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया और मुंबई में बस गया। उन्होंने सिध्हम कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया।
विनोद खन्ना ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1968 में आई फिल्म 'मन का मीत' से एक खलनायक के तौर पर की। उनकी शुरुआती फिल्मों में उनके नेगेटिव रोल को भी काफी सराहा गया, खासकर 'मेरा गाँव मेरा देश' (1971) में उनके डाकू के किरदार ने उन्हें पहचान दिलाई।

नायक के रूप में सफलता और शीर्ष पर स्थान

खलनायक के बाद उन्होंने जल्द ही मुख्य भूमिकाओं में कदम रखा। 1971 में आई फिल्म 'हम तुम और वो' में उन्होंने पहली बार एकल हीरो की भूमिका निभाई। उनकी अदाकारी, विशेष रूप से उनकी आँखों की तीव्रता और शांत, गंभीर व्यक्तित्व, ने उन्हें शीघ्र ही एक स्थापित स्टार बना दिया।
उनकी कुछ सबसे यादगार और सफल फिल्में इस प्रकार हैं:
  मेरे अपने (1971)

 अचानक (1973) - इस फिल्म में बिना किसी गाने के उनका अभिनय बेमिसाल था।

 हाथ की सफाई (1974) - जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

 हेरा फेरी (1976)

 अमर अकबर एंथनी (1977)

 मुकद्दर का सिकंदर (1978)

 कुर्बानी (1980) - यह उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में से एक थी।

  दयावान (1988)

विनोद खन्ना को 70 और 80 के दशक में अमिताभ बच्चन का प्रबल प्रतिद्वंद्वी माना जाता था। मल्टी-स्टारर फिल्मों में भी उनकी उपस्थिति अक्सर दूसरे अभिनेताओं पर भारी पड़ती थी।

अध्यात्म की ओर रुझान और वापसी

अपने करियर के चरम पर, 1982 में, विनोद खन्ना ने अचानक फिल्मों से संन्यास लेने का फैसला किया और अपने आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश के आश्रम में चले गए। उन्होंने लगभग पाँच साल तक फिल्मों से दूरी बनाए रखी।
1987 में, उन्होंने फिल्म 'इंसाफ' से धमाकेदार वापसी की। अपनी दूसरी पारी में भी उन्होंने सफलता का स्वाद चखा और बाद में 'वांटेड' (2009), 'दबंग' (2010), और 'दबंग 2' (2012) जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों में यादगार सहायक भूमिकाएँ निभाईं।

राजनीतिक करियर

अभिनय के अलावा, विनोद खन्ना ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमाई और वहाँ भी सफल रहे।
 
वह 1997 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हुए।
 
वह 1998, 1999, 2004 और 2014 में पंजाब के गुरदासपुर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद चुने गए।

 जुलाई 2002 में, उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री बनाया गया, और बाद में वह विदेश राज्य मंत्री भी बने।

सम्मान और पुरस्कार

उन्हें सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
 
फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार (1974) - फिल्म 'हाथ की सफाई' के लिए।

 फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (1999)।

 भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2017) (मरणोपरांत)।

निधन

विनोद खन्ना का लंबी बीमारी के बाद 27 अप्रैल, 2017 को मुंबई में निधन हो गया।
विनोद खन्ना एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने अपनी शर्तों पर काम किया और जीवन के हर क्षेत्र—अभिनय, अध्यात्म और राजनीति—में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। उनका करियर भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है।

Post a Comment

0 Comments