न्यायमूर्ति लीला सेठ: न्याय की राह की पथप्रदर्शक(20 अक्टूबर 1930 – 5 मई 2017)
परिचय
न्यायमूर्ति लीला सेठ (20 अक्टूबर 1930 – 5 मई 2017) भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक ऐसा गौरवशाली नाम हैं, जिन्होंने कई मायनों में "ग्लास सीलिंग" (पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में महिलाओं की उन्नति की अदृश्य बाधा) को तोड़ा। वे भारत में किसी उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश बनने वाली पहली महिला थीं। दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश और लंदन बार परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त करने वाली पहली महिला के रूप में उनके नाम कई ऐतिहासिक कीर्तिमान दर्ज हैं। लीला सेठ का जीवन मेहनत, दृढ़ संकल्प और लैंगिक समानता के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
लीला सेठ का जन्म 20 अक्टूबर 1930 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। जब वह मात्र 11 वर्ष की थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया, जिसके कारण उनके परिवार को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनकी माता ने कठिनाइयों के बावजूद उनकी शिक्षा पूरी करवाई। उन्होंने दार्जिलिंग के लोरेटो कॉन्वेंट से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की।
20 वर्ष की आयु में उनकी शादी प्रेम सेठ से हुई और वे लंदन चली गईं। लंदन में, उन्होंने विधि (Law) का अध्ययन करने का फैसला किया। उनकी इस यात्रा का निर्णायक मोड़ वर्ष 1958 में आया, जब उन्होंने लंदन बार परीक्षा में न केवल सफलता हासिल की, बल्कि शीर्ष स्थान प्राप्त किया। यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह पहली महिला थीं। लंदन के एक समाचार पत्र ने उनकी इस सफलता को "Mother-in-Law" (कानून में माँ) शीर्षक से प्रकाशित किया, जो उनके दोहरे जीवन—एक माँ और एक मेधावी कानूनी छात्र—को दर्शाता था।
न्यायिक करियर की ऐतिहासिक यात्रा
भारत लौटने के बाद, लीला सेठ ने 1959 में पटना उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। उस समय, अदालत में वह अकेली महिला वकील हुआ करती थीं, लेकिन उन्होंने अपनी दक्षता से जल्द ही अपनी अलग पहचान बना ली। उन्होंने लगभग दस वर्षों तक पटना उच्च न्यायालय में कर मामलों (Tax Matters), दीवानी (Civil) और फौजदारी (Criminal) मामलों सहित विभिन्न प्रकार के केस संभाले।
उनके करियर के मुख्य पड़ाव निम्नलिखित हैं:
दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश (1978): उन्हें 1978 में दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया, जो इस पद को संभालने वाली पहली महिला थीं।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (1991): वर्ष 1991 में, उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। यह पद संभालने वाली वह भारत के किसी भी राज्य उच्च न्यायालय की पहली महिला बनीं।
वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate): उन्हें 1977 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया था।
न्यायमूर्ति लीला सेठ 1992 में मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुईं।
सेवानिवृत्ति के बाद महत्वपूर्ण योगदान
सेवानिवृत्ति के बाद भी, लीला सेठ का सार्वजनिक और कानूनी जीवन सक्रिय रहा। उन्होंने कई महत्वपूर्ण समितियों और आयोगों में अपनी विशेषज्ञता दी:
15वें विधि आयोग की सदस्य (1997-2000): इस दौरान, उन्होंने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में संशोधन की अगुवाई की। उनके प्रयासों से ही संयुक्त परिवार की संपत्ति में बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार प्राप्त हुए।
जस्टिस वर्मा समिति: 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले के बाद देश के बलात्कार कानूनों की समीक्षा के लिए गठित जस्टिस वर्मा समिति की तीन सदस्यीय बेंच का वह हिस्सा थीं।
जाँच आयोग: उन्होंने 'बिस्किट किंग' राजन पिल्लै की पुलिस हिरासत में हुई मौत की जाँच के लिए गठित एक सदस्यीय आयोग की जिम्मेदारी भी संभाली थी।
मानवाधिकारों की पक्षधर: वह समलैंगिकों (LGBTQIA+) के अधिकारों की मुखर समर्थक थीं और उन्होंने इन अधिकारों के लिए कानूनी और सामाजिक मंचों पर अपनी आवाज़ बुलंद की।
साहित्य और विरासत
न्यायमूर्ति लीला सेठ एक उत्कृष्ट लेखिका भी थीं। उन्होंने अपनी आत्मकथा 'ऑन बैलेंस' (On Balance, 2003) में अपने जीवन, करियर और परिवार के बीच संतुलन की कहानी को बखूबी बयाँ किया। बच्चों के लिए उन्होंने 'वी, द चिल्ड्रन ऑफ इंडिया' (We, The Children of India) नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने भारत के संविधान को सरल भाषा में समझाया।
लीला सेठ ने एक करियर वुमन, एक माँ, एक पत्नी और एक न्यायाधीश की भूमिकाओं के बीच एक अद्भुत संतुलन स्थापित किया। उनका जीवन और कार्य भारतीय न्यायपालिका में महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत है, जिन्होंने न केवल कानून के क्षेत्र में सफलता अर्जित की, बल्कि सामाजिक न्याय और लैंगिक समानता के सिद्धांतों को भी मजबूती प्रदान की।
“न्यायमूर्ति लीला सेठ—वह न्याय की मूर्त्ति, जिन्होंने अपने कार्य से भारतीय समाज को समानता की नई परिभाषा दी।” ⚖️
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