सर बेनीगल नरसिंह राव (B. N. Rau): भारतीय संविधान के बौद्धिक शिल्पकार और विश्व-विख्यात विधिवेत्ता(26 फरवरी 1887- 30 नवंबर 1953)
परिचय: नींव का पत्थर
भारतीय संविधान को अक्सर डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति की देन माना जाता है। हालाँकि, इस विराट और दूरदर्शी दस्तावेज़ की बौद्धिक नींव रखने का श्रेय एक ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व को जाता है, जो पर्दे के पीछे रहकर कार्य करते रहे—सर बेनीगल नरसिंह राव (B. N. Rau)। वे मात्र एक संवैधानिक सलाहकार नहीं थे, बल्कि एक उच्च कोटि के विधिवेत्ता, प्रशासक, न्यायविद और अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संवैधानिक विशेषज्ञ थे, जिन्होंने तुलनात्मक अध्ययन और मौलिक चिंतन के बल पर भारतीय संविधान के मसौदे की बुनियादी संरचना तैयार की। उनका योगदान भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अत्यंत मौलिक और निर्णायक अध्याय है।
प्रारंभिक जीवन, मेधा और उत्कृष्टता
बेनीगल नरसिंह राव का जन्म 26 फरवरी 1887 को मैंगलोर, कर्नाटक (तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी) में हुआ था। उनका परिवार शुरू से ही विद्या और प्रशासनिक सेवा की परंपरा से जुड़ा रहा। उनके पिता, बेनीगल रंगा राव, एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् थे, और राव परिवार में बुद्धिमत्ता और उत्कृष्टता का माहौल था।
बी. एन. राव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मैंगलोर में प्राप्त करने के बाद मैड्रास विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अपनी तीव्र मेधा के कारण वे उच्च अध्ययन के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) गए, जहाँ उन्होंने विधि (Law) में उच्च शिक्षा प्राप्त की। उनकी विद्वत्ता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि वे Indian Civil Service (ICS) परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले प्रारंभिक भारतीयों में से एक थे, जो उस दौर में मेधा और प्रशासनिक क्षमता का चरम मानक था।
प्रशासनिक, न्यायिक और विधिक सफर
आई.सी.एस. में प्रवेश के बाद बी. एन. राव ने भारतीय सिविल सेवा में विभिन्न उच्च पदों पर कार्य किया। उनकी कार्यशैली दक्षता, सत्यनिष्ठा और गहन विधिक समझ से परिपूर्ण थी। प्रशासन में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के बाद, उन्होंने न्यायपालिका की ओर रुख किया और कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
न्यायिक पद से मुक्त होने के बाद, वे भारत सरकार के विधि सचिव (Legal Adviser) के रूप में नियुक्त हुए। 1940 के दशक में, जब भारतीय स्वशासन की मांग तीव्र थी, राव ने ब्रिटिश शासन के ढांचे के भीतर रहते हुए भी भारत के भावी राजनीतिक ढांचे की रूपरेखा पर गहन अध्ययन शुरू कर दिया था। उनका ध्यान हमेशा कानून के शासन (Rule of Law) और एक संवैधानिक मर्यादा पर केंद्रित रहा।
भारतीय संविधान के 'अदृश्य शिल्पकार'
1946 में, जब स्वतंत्र भारत के संविधान को आकार देने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ, तो बी. एन. राव को संवैधानिक सलाहकार (Constitutional Adviser) के रूप में नियुक्त किया गया। यह भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उन्हें बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के, शुद्ध कानूनी और संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर एक मसौदा तैयार करना था।
उनके योगदान को निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं में समझा जा सकता है:
विश्व संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन
राव ने अपनी विद्वत्ता का उपयोग करते हुए, विश्व के लगभग 60 प्रमुख संविधानों—ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सोवियत संघ, वीमर जर्मनी आदि—का गहन तुलनात्मक अध्ययन किया। उन्होंने प्रत्येक संविधान की सर्वोत्तम विशेषताओं को छानकर भारतीय सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के अनुरूप उनका सुसंगत समन्वय किया।
प्रथम संवैधानिक मसौदे का निर्माण
राव ने ही अक्टूबर 1947 में संविधान सभा के विचार के लिए एक प्रारंभिक ‘संवैधानिक मसौदा’ तैयार किया। यह मसौदा 243 अनुच्छेदों और 13 अनुसूचियों से मिलकर बना था। यह मसौदा भारतीय संविधान का आधारभूत ढाँचा सिद्ध हुआ, जिसे बाद में डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने गहन विचार-विमर्श और संशोधन के बाद अंतिम रूप दिया।
मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक सिद्धांतों का विभाजन
बी. एन. राव ने ही सबसे पहले अधिकारों को दो श्रेणियों में विभाजित करने का सुझाव दिया:
न्यायोचित अधिकार (Justiciable Rights): जिन्हें न्यायालय द्वारा लागू कराया जा सकता है (जैसे: मौलिक अधिकार)।
गैर-न्यायोचित अधिकार (Non-Justiciable Rights): जिन्हें राज्य के लिए एक 'नैतिक कर्तव्य' के रूप में रखा जाए (जैसे: नीति-निर्देशक सिद्धांत)।
यह द्विभाजन आज भी भारतीय संविधान की एक मौलिक विशेषता है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित करता है।
अंतरराष्ट्रीय परामर्श
मसौदा तैयार करने के दौरान, राव ने ब्रिटेन, अमेरिका और आयरलैंड की यात्राएँ कीं। उन्होंने आयरलैंड के संवैधानिक विशेषज्ञों से नीति-निर्देशक सिद्धांतों पर चर्चा की और अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित न्यायाधीश फेलिक्स फ्रैंकफर्टर (Felix Frankfurter) से परामर्श लिया। इन यात्राओं ने उनके विचारों को और परिष्कृत किया और उन्हें भारत के लिए एक सर्वाधिक उपयुक्त संवैधानिक मॉडल तैयार करने में मदद मिली।
राव का दृष्टिकोण स्पष्ट था:
“भारत को अपने सामाजिक ढांचे और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं के अनुरूप एक ऐसा संविधान चाहिए जो नकल नहीं, बल्कि मौलिक सृजन हो, जो समय की कसौटी पर खरा उतर सके।”
संविधान में राव की दूरदर्शिता
भारतीय संविधान में कई ऐसी विशेषताएँ हैं, जो बी. एन. राव की दूरदर्शिता और मेधा का सीधा परिणाम हैं:
संसदीय प्रणाली: ब्रिटिश पद्धति पर आधारित मजबूत संसदीय शासन प्रणाली का चुनाव।
मजबूत केंद्र के साथ संघीय ढाँचा: केंद्र को मजबूत करने का प्रावधान, ताकि देश की एकता और अखंडता सुरक्षित रहे।
न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review): अमेरिकी तर्ज पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार की बौद्धिक नींव।
आपातकालीन प्रावधान: देश की संप्रभुता और एकता को बनाए रखने के लिए आपातकालीन शक्तियों का समावेश।
अंतरराष्ट्रीय करियर और वैश्विक सम्मान
संविधान निर्माण का कार्य पूरा होने के बाद, बी. एन. राव ने भारतीय संविधान को अंतिम रूप देने का श्रेय प्रारूप समिति को देते हुए, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व किया।
उन्हें संयुक्त राष्ट्र (UNO) में भारत के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।
उनके करियर का सर्वोच्च सम्मान तब मिला, जब वे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice - ICJ), हेग में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत रहे।
अपनी गहन विधिक दृष्टि, निष्पक्षता और अंतरराष्ट्रीय समझ के कारण वे विश्व भर के कानूनी समुदाय में सर्वोच्च सम्मान के पात्र बने। उनके योगदान के लिए 1952 में उन्हें नाइटहुड (Sir) की उपाधि से सम्मानित किया गया।
विरासत और निष्कर्ष
सर बेनीगल नरसिंह राव का निधन 30 नवंबर 1953 को हुआ। वे अपने पीछे केवल एक संवैधानिक मसौदा नहीं, बल्कि विधिशास्त्र और संवैधानिक चिंतन की एक सशक्त विरासत छोड़ गए।
बी. एन. राव को इतिहासकार और कानूनी विद्वान अक्सर “भारत के संविधान के वास्तुकारों में अग्रणी” मानते हैं। जहाँ डॉ. अंबेडकर ने संविधान को उसका अंतिम, कलात्मक और बहस-आधारित रूप दिया, वहीं बी. एन. राव ने संविधान की बौद्धिक और संरचनात्मक रूपरेखा को तैयार किया।
उनका जीवन और कार्य इस बात का प्रमाण है कि विनम्रता, विद्वत्ता और निष्पक्षता के साथ भी देश की सबसे बड़ी नियति को आकार दिया जा सकता है। राव भारतीय संविधान के अदृश्य शिल्पकार थे—एक ऐसा मजबूत और दूरदर्शी आधार, जिस पर आज भी भारत का लोकतंत्र अडिग खड़ा है।
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