सिस्टर निवेदिता: भारत को समर्पित विदेशी आत्मा (28 अक्टूबर 1867 – 13 अक्टूबर 1911)
भूमिका
सिस्टर निवेदिता, जिनका मूल नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल था (28 अक्टूबर 1867 – 13 अक्टूबर 1911), एक ऐसी स्कोट्स-आयरिश महिला थीं जिन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया और देश की शिक्षा, संस्कृति और स्वतंत्रता के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। वह न केवल स्वामी विवेकानंद की परम शिष्या थीं, बल्कि एक महान समाज सुधारक, शिक्षिका और ओजस्वी वक्ता भी थीं, जिन्हें भारतीयता की ओजमयी वाणी माना जाता है।
भारत आने की प्रेरणा
मार्गरेट नोबल का जन्म आयरलैंड में हुआ था और वह इंग्लैंड में एक शिक्षिका और पत्रकार के रूप में कार्यरत थीं। 1895 में लंदन में उनकी मुलाकात स्वामी विवेकानंद से हुई। स्वामी जी के आकर्षक व्यक्तित्व, भारतीय दर्शन और भारत के पुनरुत्थान के विचारों से वह इतनी गहराई से प्रभावित हुईं कि उन्हें अपने जीवन का उद्देश्य मिल गया।
स्वामी विवेकानंद ने उन्हें भारत आकर महिलाओं की शिक्षा के लिए काम करने का आह्वान किया। मार्गरेट ने 28 जनवरी 1898 को भारत की यात्रा की। 25 मार्च 1898 को, स्वामी विवेकानंद ने उन्हें विधिवत 'ब्रह्मचारिणी' की दीक्षा दी और उन्हें नया नाम दिया: 'निवेदिता', जिसका अर्थ है 'समर्पित'। इस प्रकार मार्गरेट नोबल ने अपना पुराना जीवन छोड़कर भारत की सेवा के लिए खुद को पूर्णतः समर्पित कर दिया।
शिक्षा और समाज सेवा में अद्वितीय योगदान
सिस्टर निवेदिता ने भारतीय महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण को अपना मुख्य लक्ष्य बनाया।
कन्या विद्यालय की स्थापना: 1898 में, उन्होंने कलकत्ता के बागबाज़ार में लड़कियों के लिए 'निवेदिता बालिका विद्यालय' की स्थापना की। उस समय के रूढ़िवादी समाज में लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए उनके माता-पिता को प्रेरित करना एक बड़ी चुनौती थी। निवेदिता का मानना था कि शिक्षा ही बाल विवाह जैसी कुरीतियों से लड़ने का एकमात्र हथियार है। इस विद्यालय का उद्घाटन माँ शारदा देवी (श्री रामकृष्ण परमहंस की पत्नी) ने किया था।
आपदा राहत कार्य: निवेदिता केवल सैद्धांतिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक समाजसेविका थीं। 1899 में कलकत्ता में जब प्लेग की महामारी फैली, तो उन्होंने निडर होकर मरीजों की सेवा की और लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया। 1906 के बंगाल अकाल के दौरान भी उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए राहत कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई।
कला और संस्कृति: उन्होंने भारतीय कला, संस्कृति और धर्म के मूल्यों को पश्चिमी दुनिया के सामने मजबूती से रखा। उन्होंने कला और हस्तशिल्प को शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने का समर्थन किया। उन्होंने प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस और कवि रवींद्रनाथ टैगोर जैसे कई प्रमुख भारतीय हस्तियों को भी प्रेरित किया।
भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति समर्पण
सिस्टर निवेदिता ने भारत को केवल अपनी कर्मभूमि ही नहीं, बल्कि अपना राष्ट्र माना।
राष्ट्रीयता का केंद्र: उन्होंने अपने विद्यालय को भारतीय राष्ट्रवाद का केंद्र बनाया। उनके स्कूल में प्रतिदिन सरस्वती वंदना के साथ बंकिमचन्द्र का गीत 'वंदेमातरम' गाया जाता था, जिसे उस समय ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक क्रांतिकारी मंत्र माना जाता था।
क्रांतिकारियों की प्रेरक: उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से किसी राजनीतिक आंदोलन में भाग नहीं लिया, लेकिन वह अरविंदो घोष सरीखे कई युवा क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणास्रोत और आश्रय स्थल थीं। उन्होंने भारतीय युवाओं में राष्ट्रीय गौरव और एकता की भावना जगाई।
निष्कर्ष
44 वर्ष की अल्पायु में 13 अक्टूबर 1911 को दार्जिलिंग में मलेरिया के कारण उनका निधन हो गया। अपनी मृत्यु से पहले, उन्होंने अपनी संपत्ति भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए समर्पित कर दी थी। सिस्टर निवेदिता का जीवन एक ज्वलंत उदाहरण है कि कैसे प्रेम, सेवा और समर्पण की भावना भौगोलिक सीमाओं और सांस्कृतिक मतभेदों से परे जाकर एक विदेशी आत्मा को भारतीयता के सर्वोच्च आदर्शों से जोड़ सकती है।
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