सरोजिनी नायडू: भारतीय कोकिला (द नाइटिंगेल ऑफ इंडिया)
भारत के स्वतंत्रता संग्राम की ऊर्जावान और ओजस्विनी आवाज़, सरोजिनी नायडू को "भारतीय कोकिला" के नाम से जाना जाता है। अपनी कविताओं में संगीत की मधुरता और भाषणों में जोश की लहर भरने वाली इस महान स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उनके जन्मदिन को भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो उनके योगदान और महिला सशक्तिकरण में उनकी भूमिका का प्रतीक है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सरोजिनी नायडू के पिता, अघोरनाथ चट्टोपाध्याय, एक वैज्ञानिक और शिक्षाविद थे, जबकि उनकी माँ वरदा सुंदरी एक कवयित्री थीं। साहित्य और कला का यह माहौल उनके व्यक्तित्व में कविता और संवेदनशीलता का बीज रोपित करने में सहायक रहा। मात्र बारह वर्ष की आयु में उन्होंने 'लेडी ऑफ दी लेक' नामक लंबी कविता लिखी, जो उनकी अद्भुत प्रतिभा का परिचायक थी। उन्होंने मद्रास में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड के किंग्स कॉलेज, लंदन और गिर्टन कॉलेज, कैंब्रिज में अध्ययन किया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सरोजिनी नायडू ने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया। अपनी ओजस्वी वाणी और सशक्त लेखनी के माध्यम से उन्होंने जनता में जागरूकता फैलाई।
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष:
1925 में कानपुर सत्र में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष चुना गया। उनसे पहले एनी बेसेंट ने 1917 में कांग्रेस की अध्यक्षता की थी। -
असहयोग आंदोलन:
महात्मा गांधी द्वारा 1920 में शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया और कई बार गिरफ्तार भी हुईं। -
नमक सत्याग्रह का नेतृत्त्व:
1930 में, महात्मा गांधी ने उन्हें नमक सत्याग्रह का नेतृत्त्व सौंपा। उन्होंने महिलाओं को संगठित किया और ब्रिटिश एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई। -
भारत छोड़ो आंदोलन:
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई और महात्मा गांधी के साथ 21 महीने तक जेल में रहीं। -
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्त्व:
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई देशों का दौरा किया।
एक राजनेता के रूप में योगदान
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दूसरा गोलमेज सम्मेलन (1931):
भारतीय-ब्रिटिश सहयोग के लिए महात्मा गांधी के साथ लंदन गईं और भारतीय पक्ष की मज़बूत वकालत की। -
उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल:
स्वतंत्रता के बाद, उन्हें उत्तर प्रदेश की राज्यपाल नियुक्त किया गया, जिससे वे भारत की पहली महिला राज्यपाल बनीं।
कवयित्री के रूप में योगदान
सरोजिनी नायडू केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक महान कवयित्री भी थीं। उनके साहित्य में भारतीय संस्कृति, प्रेम, प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं की गहन अभिव्यक्ति मिलती है।
- प्रमुख काव्य संग्रह:
- "द गोल्डन थ्रेशोल्ड" (1905)
- "द बर्ड ऑफ टाइम" (1912)
- "द ब्रोकन विंग" (1917)
- लोकप्रिय कविता:
- "इन द बाज़ार्स ऑफ हैदराबाद" – इस कविता में भारतीय बाज़ारों की जीवंतता और सांस्कृतिक विविधता का सजीव चित्रण है।
महिला सशक्तिकरण में योगदान
सरोजिनी नायडू महिलाओं के अधिकारों और समानता की प्रबल समर्थक थीं। उन्होंने अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में सक्रिय भूमिका निभाई और महिलाओं की शिक्षा, राजनीतिक भागीदारी और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
सम्मान और उपाधियाँ
- ब्रिटिश सरकार ने उन्हें "कैसर-ए-हिंद" पदक से सम्मानित किया, जो प्लेग महामारी के दौरान उनकी सेवा के लिए दिया गया था।
- भारतीय कोकिला (नाइटिंगेल ऑफ इंडिया) की उपाधि उन्हें उनकी काव्यात्मक प्रतिभा और ओजस्वी वाणी के कारण मिली।
निधन और विरासत
2 मार्च, 1949 को लखनऊ में उनका निधन हुआ। लेकिन उनका जीवन और कार्य आज भी प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। उनकी कविताएँ, भाषण और उनके द्वारा किए गए संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और महिला सशक्तिकरण के इतिहास में अमर हैं।
वर्तमान समय में प्रासंगिकता
सरोजिनी नायडू का जीवन संघर्ष, समर्पण और साहस की मिसाल है। उन्होंने दिखाया कि एक महिला न केवल समाज में बदलाव ला सकती है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्त्व भी कर सकती है।
उनकी कविताएँ आज भी साहित्य प्रेमियों को मंत्रमुग्ध करती हैं और उनके विचार महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
निष्कर्ष
सरोजिनी नायडू का जीवन एक महान संदेश देता है – "कविता की कोमलता और क्रांति की शक्ति" का अद्वितीय संगम। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी जयंती को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाकर हम उनके आदर्शों को जीवित रखते हैं और समाज में समानता, स्वतंत्रता और सशक्तिकरण के उनके सपने को साकार करने की दिशा में एक कदम और बढ़ाते हैं।
उनकी यह पंक्तियाँ उनके व्यक्तित्व को बखूबी अभिव्यक्त करती हैं:
"हम पंछी उनमुक्त गगन के, पिंजरबद्ध न गा पाएँगे।"
सरोजिनी नायडू की विरासत सदियों तक गूंजती रहेगी, प्रेरणा देती रहेगी, और उनके सपनों का भारत आकार लेता रहेगा।
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