कित्तूर रानी चेनम्मा: भारत की वीरांगना
कित्तूर रानी चेनम्मा (14 नवंबर 1778 - 21 फरवरी 1829) भारत की एक महान वीरांगना थीं, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया था। वह कर्नाटक राज्य के वर्तमान बेलगावी जिले के एक छोटे से गाँव काकती में जन्मी थीं। उनकी वीरता और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।
प्रारंभिक जीवन
रानी चेनम्मा का जन्म एक छोटे से देशगत राज्य में हुआ था। उनके पिता का नाम धुलप्पा देसाई और माता का नाम पद्मावती था। वह लिंगायत समुदाय से थीं और बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और धनुर्विद्या में पारंगत थीं। मात्र 15 वर्ष की आयु में उनका विवाह देसाई परिवार के राजा मल्लासर्जा से हुआ। विवाह के बाद भी उन्होंने सैन्य शिक्षा जारी रखी और राज्य के प्रशासन में रूचि ली।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध संघर्ष
1816 में पति की मृत्यु के बाद, चेनम्मा को अपने राज्य की सुरक्षा करनी पड़ी। 1824 में जब उनके पुत्र की भी मृत्यु हो गई, तो उन्होंने शिवलिंगप्पा को गोद लिया और उसे उत्तराधिकारी घोषित किया। लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों ने इस उत्तराधिकार को अस्वीकार कर दिया और राज्य को अपने नियंत्रण में लेने का प्रयास किया। यह अंग्रेजों की "डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स" नीति का पूर्ववर्ती उदाहरण था, जिसे बाद में लॉर्ड डलहौज़ी ने लागू किया।
रानी चेनम्मा ने कंपनी के इस आदेश को चुनौती दी और ब्रिटिश सेना से लोहा लिया। 1824 में हुए पहले युद्ध में उन्होंने ब्रिटिश सेना को पराजित किया और कंपनी के कलेक्टर सेंट जॉन थैकरय की हत्या कर दी गई। उनके सेनापति संगोली रायन्ना ने भी गुरिल्ला युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। परंतु, कुछ समय बाद ब्रिटिश सेना ने पुनः आक्रमण किया और अधिक शक्ति के साथ हमला किया। इस युद्ध में रानी चेनम्मा को पराजय का सामना करना पड़ा और उन्हें कैद कर लिया गया। 21 फरवरी 1829 को बैलहोंगल किले में उन्होंने अंतिम सांस ली।
विरासत
रानी चेनम्मा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली महिला योद्धाओं में से एक थीं। उनकी वीरता को सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने 1977 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। 2007 में भारतीय संसद परिसर में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई। कर्नाटक के किट्टूर में हर साल 22-24 अक्टूबर के बीच किट्टूर उत्सव का आयोजन किया जाता है। उनका बलिदान भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
लोकप्रिय संस्कृति में योगदान
- 1961 में बनी कन्नड़ फिल्म "किट्टूर चेनम्मा" में बी. सारोजा देवी ने उनकी भूमिका निभाई।
- भारतीय रेलवे की 'रानी चेनम्मा एक्सप्रेस' ट्रेन उनके नाम पर है।
- बेलगावी स्थित 'रानी चेनम्मा विश्वविद्यालय' उनके सम्मान में स्थापित किया गया।
- टीवी सीरीज "द एक्सपैंस" में एक अंतरिक्ष यान का नाम "किट्टूर चेनम्मा" रखा गया।
- फिल्म "RRR" के गीत "एत्तारा जेंडा" में उन्हें याद किया गया।
- कई कन्नड़ लोकगीतों और कविताओं में उनकी वीरता को स्थान दिया गया है।
रानी चेनम्मा का संघर्ष और बलिदान भारतीय इतिहास में एक प्रेरणास्रोत बना रहेगा। उनका जीवन हमें साहस, संघर्ष और स्वतंत्रता के लिए आत्मबलिदान का संदेश देता है। उनकी कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उत्साह और जागरूकता को बढ़ाती रहेगी।
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