तारापुर शहीद दिवस
तारापुर शहीद दिवस प्रतिवर्ष 15 फरवरी को "तारापुर झंडा सत्याग्रह" के शहीदों की स्मृति में मनाया जाता है। 15 फरवरी 1932 को बिहार राज्य के मुंगेर जिले के तारापुर में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराने के प्रयास में 34 क्रांतिकारी शहीद हुए थे। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के दमन और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
तारापुर झंडा सत्याग्रह का इतिहास
गांधी-इरविन समझौता टूटने के बाद युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर के नेतृत्व में बिहार के क्रांतिकारियों ने तारापुर थाना भवन पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया।
- 15 फरवरी 1932 को मदन गोपाल सिंह, त्रिपुरारी सिंह, महावीर सिंह, कार्तिक मंडल, और परमानन्द झा के नेतृत्व में धावक दल ने ब्रिटिश थाना पर धावा बोला और तिरंगा फहराया।
- ब्रिटिश पुलिस पहले से ही सतर्क थी। झंडा फहराने के बाद पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें ब्रिटिश कलेक्टर ई. ओ. ली घायल हुए।
- इसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें 34 क्रांतिकारी शहीद हुए और सैंकड़ों घायल हुए।
शहीदों की पहचान
गोलीबारी में शहीद हुए 34 में से केवल 13 शहीदों की पहचान हो पाई, जबकि अन्य 21 अज्ञात ही रह गए। अंग्रेजी पुलिस ने शवों को गंगा में बहा दिया था।
पहचान किए गए शहीदों में शामिल हैं:
- विश्वनाथ सिंह (छतिहार)
- महिपाल सिंह (रामचुआ)
- शीतल चमार (असरगंज)
- सुकुल सोनार (तारापुर)
- संता पासी (तारापुर)
- झोंटी झा (सतखरिया)
- सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा)
- बदरी मंडल (धनपुरा)
- वसंत धानुक (लौढिया)
- रामेश्वर मंडल (पढवारा)
- गैबी सिंह (महेशपुर)
- अशर्फी मंडल (कष्टीकरी)
- चंडी महतो (चोरगाँव)
तारापुर कांड की ऐतिहासिकता
यह घटना अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड की याद दिलाती है, जिसमें निर्दोष लोगों पर ब्रिटिश हुकूमत ने निर्ममता से गोलीबारी की थी।
प्रधानमंत्री द्वारा श्रद्धांजलि
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "मन की बात" कार्यक्रम में तारापुर शहीद दिवस का उल्लेख कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और कम चर्चित अध्याय बताया।
महत्व और स्मरण
- यह दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों के साहस और बलिदान को स्मरण करने का अवसर है।
- तारापुर शहीद दिवस को राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
तारापुर का यह बलिदान हमें स्वतंत्रता की कीमत और हमारे पूर्वजों के अटल साहस की याद दिलाता है।
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