पंडित दीनदयाल उपाध्याय :एकात्म मानववाद के प्रणेता (25 सितंबर 1916 - 11 फरवरी 1968)


दीनदयाल उपाध्याय: एकात्म मानववाद के प्रणेता


दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति के एक महान विचारक, राष्ट्रवादी चिंतक और समाज सुधारक थे। वे भारतीय जनसंघ के प्रमुख नेता थे और उनका विचार "एकात्म मानववाद" भारतीय राजनीतिक दर्शन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी विचारधारा आज भी भारतीय राजनीति और समाज में प्रासंगिक बनी हुई है।

प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा

दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने माता-पिता को खो दिया, जिससे उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। उन्होंने पिलानी, आगरा और प्रयागराज में शिक्षा प्राप्त की। अपनी मेधावी प्रतिभा के कारण उन्होंने छात्रवृत्ति हासिल की और उच्च शिक्षा पूरी की।

राजनीतिक यात्रा

दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े और समाज सेवा के कार्यों में संलग्न हो गए। बाद में वे भारतीय जनसंघ (BJS) के संस्थापकों में से एक बने। 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित जनसंघ में उन्होंने महासचिव के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे संगठन को मजबूत करने में जुट गए और उनकी नीतियों ने जनसंघ को नई दिशा दी।

एकात्म मानववाद

1965 में दीनदयाल उपाध्याय ने "एकात्म मानववाद" का सिद्धांत प्रस्तुत किया। यह विचारधारा भारतीय संस्कृति, परंपरा और समाज की आवश्यकताओं पर आधारित थी। इसमें पूंजीवाद और समाजवाद के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की बात की गई थी, जिसमें राष्ट्रवाद, स्वदेशी, विकेंद्रित अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक उत्थान को प्राथमिकता दी गई थी।

दर्शन और विचारधारा

1. राष्ट्रवाद – उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को राष्ट्रवाद की नींव माना।


2. स्वदेशी – आर्थिक नीति में स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देने की वकालत की।


3. विकेंद्रित अर्थव्यवस्था – उन्होंने आर्थिक विकास के लिए केंद्रीकरण के बजाय विकेंद्रीकरण पर जोर दिया।


4. सामाजिक समरसता – समाज में जाति, वर्ग और धार्मिक भेदभाव से मुक्त समरस समाज की कल्पना की।



अकस्मात निधन

दीनदयाल उपाध्याय का निधन 11 फरवरी 1968 को संदिग्ध परिस्थितियों में मुगलसराय रेलवे स्टेशन (अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन) पर हुआ। उनकी मृत्यु को एक राजनीतिक षड्यंत्र माना गया, लेकिन आज भी उनके विचार और योगदान भारतीय राजनीति में प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

उपसंहार

दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय राजनीति को न केवल एक नई विचारधारा दी, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास के लिए ठोस मार्गदर्शन भी किया। उनका "एकात्म मानववाद" आज भी सामाजिक और आर्थिक नीतियों के संदर्भ में प्रासंगिक है। वे सच्चे अर्थों में भारत माता के सपूत थे, जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।


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