सच्चिदानंद सिन्हा: भारतीय संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष और महान विधिवेत्ता
सच्चिदानंद सिन्हा (10 नवंबर 1871 – 6 मार्च 1950) भारत के प्रसिद्ध विधिवेत्ता, पत्रकार, शिक्षाविद् और संविधान विशेषज्ञ थे। वे भारतीय संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष बने और बिहार में उच्च शिक्षा तथा विधि क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
सच्चिदानंद सिन्हा का जन्म 10 नवंबर 1871 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पटना में प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। वहाँ उन्होंने कानून की पढ़ाई की और बैरिस्टर बने। शिक्षा पूरी करने के बाद वे भारत लौटे और वकालत करने लगे।
पत्रकारिता और राजनीतिक जीवन
पत्रकारिता में योगदान
सच्चिदानंद सिन्हा ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे "इंडियन नेशन" और "हिन्दुस्तान रिव्यू" जैसे पत्रों से जुड़े रहे और सामाजिक तथा राजनीतिक मुद्दों पर बेबाक राय व्यक्त की। उनके लेखों में भारतीय समाज की समस्याओं और ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना होती थी।
राजनीतिक यात्रा
- कांग्रेस से जुड़ाव:
सच्चिदानंद सिन्हा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया। - विधायी परिषद में प्रवेश:
वे 1910 में इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल (ब्रिटिश भारत की केंद्रीय विधान परिषद) के सदस्य बने। 1910 में वे बिहार से चुने जाने वाले पहले भारतीय सदस्य थे। - बिहार को अलग राज्य बनाने में भूमिका:
बिहार को बंगाल से अलग कर एक स्वतंत्र प्रांत बनाने में उनकी अहम भूमिका रही। उनके प्रयासों से 1912 में बिहार एक अलग प्रांत बना। - विधानसभा और विधि विशेषज्ञ के रूप में योगदान:
वे 1920 में केंद्रीय विधानसभा के सदस्य बने और बाद में 1936 में बिहार विधान परिषद के सदस्य भी रहे।
भारतीय संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष
जब 9 दिसंबर 1946 को भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक हुई, तो सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष (Provisional Chairman) बनाया गया। वे संविधान सभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य थे। उनके अनुभव और विधि ज्ञान को देखते हुए उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई।
हालांकि, स्थायी अध्यक्ष के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद का चुनाव हुआ, लेकिन सच्चिदानंद सिन्हा ने प्रारंभिक बैठकों में संविधान सभा का संचालन किया और विधायी प्रक्रियाओं की नींव रखी।
शिक्षा और सामाजिक सुधारों में योगदान
- पटना विश्वविद्यालय की स्थापना में भूमिका
सच्चिदानंद सिन्हा उच्च शिक्षा के महत्व को समझते थे। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय की स्थापना में योगदान दिया और विश्वविद्यालय के कुलपति (Vice-Chancellor) भी बने। - महिलाओं की शिक्षा पर जोर
उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए और इस दिशा में सुधारों का समर्थन किया। - कानूनी शिक्षा और विधिक सुधार
उन्होंने भारत में विधिक शिक्षा को मजबूत करने का प्रयास किया और युवाओं को कानून की पढ़ाई के लिए प्रेरित किया।
निधन और विरासत
सच्चिदानंद सिन्हा का निधन 6 मार्च 1950 को हुआ। उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा, विधि, पत्रकारिता और राजनीति के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बिहार में उन्हें एक महान नेता और समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है।
उनकी विरासत
- सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज (एस.एस. कॉलेज), औरंगाबाद
- पटना विश्वविद्यालय में उनकी स्मृति में विभिन्न पहल
- भारतीय संविधान के प्रारंभिक निर्माण में उनकी भूमिका को सम्मान
निष्कर्ष
सच्चिदानंद सिन्हा भारतीय राजनीति और विधि के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे। वे न केवल संविधान सभा के पहले अध्यक्ष थे, बल्कि बिहार को स्वतंत्र प्रांत बनाने, उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने और पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने में भी अग्रणी रहे। उनके विचार और योगदान आज भी प्रेरणादायक हैं।
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ReplyDeleteThank you