सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' (7 मार्च 1911 - 4 अप्रैल 1987)

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' : व्यक्तित्व और कृतित्व


परिचय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' (7 मार्च 1911 - 4 अप्रैल 1987) हिंदी साहित्य के उन महान रचनाकारों में से हैं, जिन्होंने हिंदी कविता, उपन्यास, कहानी, निबंध और पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया। वे आधुनिक हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद और नई कविता आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में गिने जाते हैं। उनका साहित्य आत्मसंघर्ष, स्वतंत्रता, व्यक्तिवाद और अस्तित्ववाद की गहरी छवियाँ प्रस्तुत करता है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में हुआ था। उनके पिता हीरानंद शास्त्री एक प्रतिष्ठित पुरातत्वविद् थे, जिनकी सरकारी नौकरी के कारण अज्ञेय का बचपन विभिन्न स्थानों पर बीता। इसका प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर भी पड़ा, जिससे वे एक व्यापक दृष्टिकोण वाले संवेदनशील रचनाकार बने।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा कई स्थानों पर हुई, जिसमें पंजाब और कश्मीर प्रमुख हैं। उन्होंने विज्ञान और अंग्रेज़ी साहित्य की पढ़ाई की, लेकिन उनका मन साहित्य और लेखन की ओर अधिक झुका।

स्वतंत्रता संग्राम और क्रांतिकारी जीवन

अज्ञेय न केवल एक रचनाकार थे, बल्कि वे एक क्रांतिकारी भी थे। किशोरावस्था में ही वे भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित हुए। वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) से जुड़े और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गतिविधियों में हिस्सा लिया। 1930 में उन्हें बम बनाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और चार साल जेल में बिताने पड़े। जेल में रहते हुए उन्होंने लेखन की शुरुआत की, जो आगे चलकर उनकी साहित्यिक यात्रा का आधार बना।

साहित्यिक यात्रा और योगदान

अज्ञेय बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने कविता, उपन्यास, कहानी, निबंध और पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी रचनाओं में आधुनिक चेतना, मनोवैज्ञानिक दृष्टि और दार्शनिक गहराई का अद्भुत संयोजन देखने को मिलता है।

1. काव्य साहित्य

अज्ञेय को हिंदी में प्रयोगवादी कविता का जनक माना जाता है। उन्होंने भाषा और शिल्प के स्तर पर नए प्रयोग किए और कविता को बौद्धिक और दार्शनिक चिंतन से जोड़ा। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं:

भग्नदूत (1933)

इत्यलम (1946)

हरी घास पर क्षणभर (1949)

बावरा अहेरी (1954)

आँगन के पार द्वार (1961)

सदानीरा (1970)


अज्ञेय की कविताओं में जीवन, प्रेम, आत्मसंघर्ष और प्रकृति के प्रति गहरी संवेदनशीलता देखने को मिलती है। वे शब्दों में चित्र उकेरने की अद्भुत क्षमता रखते थे।

2. उपन्यास साहित्य

अज्ञेय के उपन्यास हिंदी साहित्य में मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद और प्रयोगधर्मिता के अनूठे उदाहरण हैं। उनके उपन्यासों में व्यक्ति के अंतर्द्वंद्व, अस्तित्ववादी सोच और आधुनिकता की गहरी समझ देखने को मिलती है।

शेखर: एक जीवनी (1941-1944) – यह उनका सबसे प्रसिद्ध आत्मकथात्मक उपन्यास है, जिसमें एक क्रांतिकारी युवक के विचार, संघर्ष और अनुभवों को दर्शाया गया है।

नदी के द्वीप (1951) – इसमें प्रेम, आत्मविश्लेषण और आधुनिक जीवन की जटिलताओं का चित्रण है।

अपने अपने अजनबी (1961) – यह अस्तित्ववाद और आधुनिक समाज की जटिलताओं को उजागर करने वाला उपन्यास है।


3. कहानी साहित्य

अज्ञेय की कहानियों में यथार्थवाद और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रभाव देखने को मिलता है। उनकी कहानियों में जीवन के गहरे पहलुओं और मानवीय संवेदनाओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

प्रमुख कहानियाँ:

कोठरी की बात

शरणदाता

पहलवान की ढोलक

नया खून


प्रमुख कहानी संग्रह:

विपथगा (1946)

परंपरा (1950)

कितनी नावों में कितनी बार (1967)


4. निबंध और पत्रकारिता

अज्ञेय ने न केवल रचनात्मक साहित्य लिखा, बल्कि वे एक सफल पत्रकार और संपादक भी थे। उन्होंने 'प्रतीक', 'दिनमान', 'नया प्रतीक' जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया, जो हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुईं। उनके निबंधों में गहरी दार्शनिकता और बौद्धिकता दिखाई देती है।

प्रमुख निबंध कृतियाँ:

संचयिता

असाध्य वीणा


5. यात्रा साहित्य और अनुवाद

अज्ञेय ने कई विदेशी कृतियों का हिंदी में अनुवाद किया और यात्रा वृत्तांत भी लिखे। उनका यात्रा साहित्य उनके यायावर स्वभाव और गहरी पर्यवेक्षण क्षमता को दर्शाता है।

प्रमुख यात्रा वृत्तांत:

अरे यायावर रहेगा याद


भाषा और शैली

अज्ञेय की भाषा में बौद्धिकता, काव्यात्मकता और प्रतीकों का अद्भुत प्रयोग मिलता है। वे गूढ़ विचारों को भी सरलता से प्रस्तुत करने में माहिर थे। उनकी शैली में प्रयोगवाद, मुक्तछंद और गहराई का अनूठा संयोजन देखने को मिलता है।

पुरस्कार और सम्मान

अज्ञेय को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले:

साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964) – ‘आँगन के पार द्वार’ के लिए

ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978) – ‘कितनी नावों में कितनी बार’ के लिए

पद्म भूषण (1968)


मृत्यु और विरासत

4 अप्रैल 1987 को इस महान साहित्यकार का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के साथ हिंदी साहित्य में एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनकी कृतियाँ आज भी पाठकों को नई दृष्टि और गहरी अनुभूति प्रदान करती हैं।

निष्कर्ष

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' हिंदी साहित्य के उन विशिष्ट रचनाकारों में से हैं, जिन्होंने हिंदी को आधुनिक चेतना, प्रयोगवाद और बौद्धिकता से समृद्ध किया। उनका साहित्य जीवन, आत्मसंघर्ष और अस्तित्ववाद की गहरी पड़ताल करता है। वे केवल एक साहित्यकार नहीं, बल्कि एक विचारक, पत्रकार, संपादक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। उनकी कृतियाँ आज भी हमें नई दृष्टि और संवेदनशीलता प्रदान करती हैं।


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