यशस्वी कहानीकार कृष्ण चंदर: जीवन और साहित्य( 23 नवंबर 1914- 8 मार्च 1977)

यशस्वी कहानीकार कृष्ण चंदर: जीवन और साहित्य


कृष्ण चंदर हिंदी और उर्दू साहित्य के एक प्रमुख कथाकार थे, जिन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से समाज की सजीव तस्वीर प्रस्तुत की। उनका लेखन मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक विडंबनाओं और राजनीतिक परिस्थितियों को गहराई से उकेरता है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

कृष्ण चंदर का जन्म 23 नवंबर 1914 को पाकिस्तान के वजीराबाद (तत्कालीन ब्रिटिश भारत) में हुआ था। उनका पूरा नाम कृष्ण चंदर शर्मा था। उनके पिता डॉक्टर थे, जिससे उनका बचपन एक शिक्षित और साहित्यिक वातावरण में बीता। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब में प्राप्त की और बाद में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई की।

साहित्यिक यात्रा

कृष्ण चंदर ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत उर्दू में लेखन से की, लेकिन बाद में वे हिंदी में भी सक्रिय रूप से लिखने लगे। उनकी पहली प्रसिद्ध रचना "एक गधे की आत्मकथा" (1949) थी, जिसमें उन्होंने समाज की विसंगतियों पर व्यंग्य किया।

उनकी कहानियाँ मानवीय मूल्यों, प्रेम, सामाजिक अन्याय और राजनीति की जटिलताओं को दर्शाती हैं। उन्होंने भारत के विभाजन, गरीबी, किसान जीवन और मजदूर वर्ग की पीड़ा को अपनी कहानियों में सशक्त रूप से चित्रित किया।

उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:

उपन्यास: एक गधे की आत्मकथा, जब खेत जागे, शिकस्त, तूफान की किश्ती

कहानी संग्रह: हम वहशी हैं, नंगी आवाज़ें, महकते चाकू, अन्नदाता


शैली और योगदान

कृष्ण चंदर की लेखनी बेहद सहज और प्रभावशाली थी। उनकी भाषा में व्यंग्य, करुणा और विद्रोह का अनोखा मिश्रण था। उन्होंने प्रगतिशील साहित्य आंदोलन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और सामाजिक बदलाव के लिए लेखन को एक सशक्त माध्यम बनाया।

मृत्यु और विरासत

कृष्ण चंदर का निधन 8 मार्च 1977 को मुंबई में हुआ। उनकी कहानियाँ आज भी समाज को दर्पण दिखाने का कार्य करती हैं और पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं। वे अपने समय के सबसे प्रभावशाली और यथार्थवादी कहानीकारों में गिने जाते हैं।

कृष्ण चंदर की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं। उनके शब्दों में वही जीवंतता और ताकत है, जो किसी भी समाज की चेतना को झकझोर सकती है।


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