मिथिला में होली: परंपरा, उल्लास और रंगों का उत्सव
होली, जिसे रंगों का त्योहार कहा जाता है, भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी अनूठी परंपराओं के साथ मनाई जाती है। बिहार और झारखंड के मिथिला क्षेत्र में होली का विशेष महत्व है। यहाँ की होली केवल रंगों और उल्लास तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसमें लोकगीत, नृत्य, भक्ति और सांस्कृतिक परंपराओं की गहरी छाप देखने को मिलती है।
मिथिला में होली का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
मिथिला की धरती विद्वानों, कलाकारों और भक्तों की भूमि रही है। यह क्षेत्र माता सीता की जन्मभूमि और विद्वान राजा जनक की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ होली न केवल सामाजिक समरसता का प्रतीक है, बल्कि यह धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत से भी जुड़ी हुई है।
मिथिला में होली मनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। मान्यता है कि इस दिन भक्त प्रहलाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप की दुष्टता के खिलाफ ईश्वर की भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया था। इसी कारण होलिका दहन की परंपरा यहाँ भी निभाई जाती है, जिसे ‘समैदाहा’ कहा जाता है।
होली के पूर्व की तैयारियाँ
मिथिला में होली की तैयारियाँ फाल्गुन माह के प्रारंभ से ही शुरू हो जाती हैं। यहाँ होली का प्रमुख आकर्षण पारंपरिक गीत और फाग गाने की परंपरा है। गाँव-गाँव में लोग ढोलक, झाल, मंजीरा और करताल की संगत में होली गीत गाते हैं।
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होलिका दहन (समैदाहा) – होली से एक दिन पहले गाँवों और शहरों में होलिका दहन किया जाता है, जिसे यहाँ ‘समैदाहा’ कहा जाता है। इसमें लकड़ियाँ, उपले (गोबर के कंडे) और सूखे पेड़-पत्ते जलाए जाते हैं। इसके चारों ओर लोग एकत्र होकर पारंपरिक भजन गाते हैं और बुराई पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाते हैं।
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गृह सज्जा और व्यंजन निर्माण – इस अवसर पर घरों की सफाई की जाती है और पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। मिथिला में होली के दौरान ठेकुआ, पिरुकिया, खजूर, दही-बड़ा, गुजिया, मालपुआ और भांग ठंडाई विशेष रूप से तैयार किए जाते हैं।
मिथिला की होली: रस, रंग और संगीत का संगम
मिथिला में होली का मुख्य आकर्षण पारंपरिक फाग गीत और समूह गायन है। यहाँ की होली में प्रेम और भक्ति का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
1. फाग और होली गीत
मिथिला में होली के दौरान फाग गाने की परंपरा अत्यंत लोकप्रिय है। पुरुषों और महिलाओं के अलग-अलग समूह बनते हैं और वे विभिन्न रागों में फाग गाते हैं।
प्रसिद्ध फाग गीतों के कुछ उदाहरण:
- "कुहू कुहू बोले कोयलिया फागुन में…"
- "अखियाँ होरी खेले रे रसिया…"
- "रंग बरसे भीगे चुनर वाली…"
2. नाच-गाना और ढोल-मंजीरा की धुन
मिथिला की होली में संगीत का विशेष स्थान है। गाँवों और शहरों में जगह-जगह ढोलक, मंजीरा, झाल और करताल बजाए जाते हैं और लोग पारंपरिक लोकगीतों पर नृत्य करते हैं।
3. अबीर-गुलाल और हंसी-ठिठोली
रंगों का खेल होली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यहाँ प्राकृतिक रंगों (टेसू के फूलों से बने रंग, अबीर और गुलाल) का विशेष महत्व होता है।
होली के दौरान विशेष रस्में और परंपराएँ
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पुरुषों और महिलाओं की होली: मिथिला में कई जगहों पर महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग टोली बनती हैं। महिलाएँ पारंपरिक गीत गाकर पुरुषों को छेड़ती हैं, और पुरुष हास्य-व्यंग्य के गीतों से उत्तर देते हैं।
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राजा जनक की होली: मिथिला में यह मान्यता है कि प्राचीन काल में राजा जनक भी अपने दरबार में होली मनाते थे। उस समय विद्वान ब्राह्मणों, कलाकारों और साधुओं के साथ होली खेली जाती थी।
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भक्ति और कीर्तन की होली: मिथिला में कई स्थानों पर होली के अवसर पर भगवान कृष्ण, राम और शिव की भक्ति में कीर्तन और भजन गाए जाते हैं।
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ससुराल और मायके की होली: मिथिला में विवाहिता महिलाओं के लिए मायके की होली खास होती है। वे इस दौरान अपने मायके जाती हैं और वहाँ धूमधाम से होली मनाती हैं।
मिथिला की होली और आधुनिकता
आज के दौर में मिथिला की होली में कई बदलाव आए हैं, लेकिन इसकी पारंपरिकता अभी भी बरकरार है। अबीर-गुलाल के साथ-साथ पक्के रंगों का भी उपयोग बढ़ गया है। साथ ही, सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के कारण लोग होली की शुभकामनाएँ ऑनलाइन भेजने लगे हैं।
हालाँकि, गाँवों में अब भी पुरानी परंपराएँ जीवित हैं। वहाँ लोग सामूहिक रूप से होली खेलते हैं, पारंपरिक व्यंजन खाते हैं और फाग-गीत गाकर इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
निष्कर्ष
मिथिला की होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि आपसी प्रेम, भक्ति, भाईचारे और उल्लास का प्रतीक है। यहाँ की होली में नाच-गाना, फाग-गीत, भजन-कीर्तन, हंसी-ठिठोली और स्नेह का अनूठा संगम देखने को मिलता है। चाहे समैदाहा हो, फाग गाने की परंपरा हो या ससुराल-मायके की होली, मिथिला की होली अपने रंग में पूरी तरह अनोखी और यादगार होती है।
"रंग बरसे, गुलाल उड़े, बाजे ढोल मृदंग,
मिथिला की होली में, झूमे मन के संग!"
*मैं आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ।💐💐*
डॉ o संतोष आनन्द मिश्रा
डी o ए o वी o पब्लिक स्कूल
मानपुर, गया , बिहार
1 Comments
Shabdon ki uchit madhurata or Kalam k jaadu ke upyog se hamaare parv ki bhtt sunder vyakhya ki nipun kala ko pranaam krti hu A very HAPPY HOLI to you and your family Sir 🙏🙏🙏
ReplyDeleteThank you