जोगेशचंद्र चटर्जी : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विचारक क्रांतिकारी
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध और बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में जब पूरा भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, तब बंगाल क्रांति का केंद्र बन चुका था। यहीं से कई युवाओं ने क्रांति की मशाल उठाई, जिनमें से एक प्रमुख नाम था — जोगेशचंद्र चटर्जी। उन्होंने क्रांति को केवल हथियारों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे संगठन, विचार और दीर्घकालीन लक्ष्य से जोड़ा।
जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
- जन्म तिथि : 20 अप्रैल 1895
- जन्म स्थान : कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी (अब कोलकाता, पश्चिम बंगाल)
- उनका जन्म एक शिक्षित, मध्यमवर्गीय, राष्ट्रभक्त ब्राह्मण परिवार में हुआ।
- बचपन से ही वे अनुशासित, जिज्ञासु और देश की दुर्दशा को लेकर चिंतित रहते थे।
शिक्षा और वैचारिक विकास
- कोलकाता विश्वविद्यालय से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की।
- छात्र जीवन के दौरान उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद, विदेशी शासन की शोषणकारी नीतियाँ और स्वदेशी आंदोलन को नज़दीक से देखा।
- इस समय बंगाल में अनुशीलन समिति और जुगांतर दल का प्रभाव युवाओं पर गहरा था।
- वे इन क्रांतिकारी संगठनों से प्रभावित होकर उनमें शामिल हो गए।
- बिपिन चंद्र पाल, अरविंद घोष और भगिनी निवेदिता जैसे विचारकों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
अनुशीलन और जुगांतर से HRA तक की यात्रा
- अनुशीलन समिति ने उन्हें संगठन, अनुशासन और सामूहिकता का पाठ पढ़ाया।
- जुगांतर के माध्यम से उन्हें शस्त्र-प्रशिक्षण और गुप्तचरी की शिक्षा मिली।
- धीरे-धीरे उन्होंने अनुभव किया कि बंगाल तक सीमित आंदोलन से पूरे भारत को आज़ादी नहीं दिलाई जा सकती।
- इसके बाद वे उत्तर भारत गए और रामप्रसाद बिस्मिल, सच्चिंद्रनाथ सान्याल और चंद्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आए।
- 1924 में इन सबने मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (HRA) की स्थापना की — जो एक अखिल भारतीय क्रांतिकारी संगठन था।
HRA : क्रांति का नवसंविधान
- HRA का मुख्य उद्देश्य था — “ब्रिटिश साम्राज्यवाद का सशस्त्र उन्मूलन और एक गणराज्य भारत की स्थापना”।
- जोगेशचंद्र इसके मुख्य विचारक और सांगठनिक द्रष्टा थे।
- उन्होंने "The Revolutionary" नामक घोषणापत्र की रचना में अहम भूमिका निभाई जिसमें ब्रिटिश शासन को समाप्त कर एक समाजवादी व्यवस्था की स्थापना का विचार प्रस्तुत किया गया।
काकोरी कांड : साहस और रणनीति की मिसाल
- 9 अगस्त 1925 को HRA के सदस्यों ने लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर ब्रिटिश खजाने वाली ट्रेन को लूटने का साहसिक कार्य किया।
- यद्यपि जोगेशचंद्र घटना स्थल पर नहीं थे, लेकिन वे योजना, संगठन और समन्वय के प्रमुख सूत्रधार थे।
- इस कांड ने भारत की जनता और ब्रिटिश सरकार — दोनों को झकझोर दिया।
- ब्रिटिश हुकूमत ने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी शुरू की और लखनऊ षड्यंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया गया।
मुकदमा और कारावास
- जोगेशचंद्र चटर्जी को षड्यंत्रकारी घोषित कर दिया गया और उन्हें कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
- जेल में उन्होंने गहन अध्ययन किया, विचारों को परिपक्व किया और आत्मनिरीक्षण के रास्ते से गुजरे।
- उनका मानना था कि क्रांति केवल बंदूक से नहीं, विचारों की स्पष्टता और समाज की समझ से भी होती है।
समाजवाद की ओर झुकाव
- जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने गांधीजी की अहिंसा की राह नहीं अपनाई, बल्कि समाजवादी विचारधारा को चुना।
- उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और बाद में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना में भागीदारी की।
- उनका विश्वास था कि स्वतंत्रता के बाद भारत को सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और राजनीतिक पारदर्शिता की आवश्यकता होगी।
- वे कुछ समय के लिए राज्यसभा सदस्य भी रहे और संसद में जनहित के मुद्दों को मजबूती से उठाया।
- लेखक, चिंतक और समाज-सुधारक
- उनकी विचारधारा सुस्पष्ट, तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली थी।
- उन्होंने "Indian Freedom Struggle and the Revolutionaries" जैसी प्रसिद्ध पुस्तक लिखी, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की भूमिका को गहराई से बताया गया है।
- उनके लेखन में राष्ट्रभक्ति, लोकतंत्र, नैतिकता और सामाजिक न्याय का स्पष्ट संदेश मिलता है।
निधन और विरासत
- 2 अप्रैल 1969 को यह महान क्रांतिकारी विचारक इस संसार को अलविदा कह गया।
- आज उनका नाम उस धरोहर में शामिल है, जिसे भारत कभी नहीं भूल सकता — वह धरोहर जिसमें बलिदान, सोच और राष्ट्रसेवा का संगम होता है।
प्रेरणा का स्रोत
- जोगेशचंद्र चटर्जी न केवल इतिहास की एक शख्सियत हैं, बल्कि आज के युवाओं के लिए एक जीवंत आदर्श हैं।
- वे हमें सिखाते हैं कि क्रांति केवल तोड़ना नहीं, बल्कि नव-निर्माण भी है।
- उनका जीवन उन सभी के लिए प्रेरणा है जो साहस, विचार, और कर्तव्य को एक साथ जीना चाहते हैं।

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