प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया): वैज्ञानिक, शिक्षक और राष्ट्रभक्त(29 जनवरी 1922- 14 जुलाई 2003)

प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया): वैज्ञानिक, शिक्षक और राष्ट्रभक्त(29 जनवरी 1922- 14 जुलाई 2003)
भूमिका 

प्रोफेसर राजेंद्र सिंह, जिन्हें प्रेम और सम्मान के साथ 'रज्जू भैया' के नाम से जाना जाता है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के चौथे सरसंघचालक थे। उनका जीवन गहन बौद्धिकता, वैज्ञानिक सोच और अटूट राष्ट्रभक्ति का एक अद्भुत संगम था। वे सिर्फ एक संगठनकर्ता नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी शिक्षाविद् और विनम्र व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने अपने विचारों और कर्मों से लाखों लोगों को प्रेरित किया।

प्रारंभिक जीवन और अकादमिक यात्रा

रज्जू भैया का जन्म 29 जनवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ था। बचपन से ही मेधावी छात्र रहे राजेंद्र सिंह ने गणित और भौतिकी में उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में एम.एससी. की उपाधि हासिल की और बाद में उसी विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग के प्रोफेसर बन गए। वे सैद्धांतिक भौतिकी के विशेषज्ञ माने जाते थे और उनकी गिनती विश्वविद्यालय के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षकों में होती थी।
विदेश में काम करने और शोध के कई आकर्षक प्रस्तावों को अस्वीकार कर उन्होंने भारत में रहकर ही सेवा करने का संकल्प लिया। वे अपने छात्रों को सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं देते थे, बल्कि उन्हें एक बेहतर नागरिक बनने के लिए प्रेरित करते थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव

रज्जू भैया का परिचय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से छात्र जीवन में ही हो गया था और वे जल्द ही इसके नियमित स्वयंसेवक बन गए। उनकी संगठनात्मक क्षमता, सादगी और विचारों की स्पष्टता को देखते हुए उन्हें संघ का प्रचारक बनने का अवसर मिला। 1940 के दशक में उन्होंने संघ कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और विशेष रूप से उत्तर भारत में संगठन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका सहज व्यवहार और प्रभावी नेतृत्व उन्हें संघ के सर्वोच्च पदों तक ले गया।

सरसंघचालक के रूप में नेतृत्व (1994-2000)

1994 में, बालासाहब देवरस के बाद, रज्जू भैया ने संघ के चौथे सरसंघचालक का दायित्व संभाला। उनके नेतृत्व की सबसे बड़ी पहचान उनकी संवादप्रियता और सहिष्णु दृष्टिकोण था। उनका मानना था कि भारत की एकता का आधार जाति या भाषा नहीं, बल्कि 'हिंदुत्व' की व्यापक सांस्कृतिक पहचान है।
सरसंघचालक के रूप में उनके प्रमुख योगदान:

 समानता और सामाजिक समरसता: उन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव को खत्म करने और सभी वर्गों को एक सूत्र में पिरोने पर जोर दिया।

 वैज्ञानिक दृष्टिकोण: एक वैज्ञानिक होने के नाते उन्होंने राष्ट्रभक्ति और तर्कसंगत सोच के बीच गहरा समन्वय स्थापित किया।

 आंतरिक लोकतंत्र: उन्होंने संघ के भीतर आपसी विचार-विमर्श और सहमति के आधार पर निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया।

त्याग का अनुपम उदाहरण और विरासत

रज्जू भैया का व्यक्तित्व सादा जीवन, उच्च विचार का एक जीता-जागता उदाहरण था। वे अपनी विद्वत्ता के बावजूद अत्यंत विनम्र और सहज थे। उनके भाषण भावनाओं को भड़काने वाले नहीं, बल्कि तर्क और तथ्यों पर आधारित होते थे।
सन 2000 में, गिरते स्वास्थ्य के कारण उन्होंने स्वयं ही सरसंघचालक का पद छोड़ दिया और के.एस. सुदर्शन को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। यह एक दुर्लभ और ऐतिहासिक कदम था, जहाँ एक सर्वोच्च पदधारी ने स्वेच्छा से कार्यमुक्त होकर नई पीढ़ी को नेतृत्व सौंपा।

निधन और विरासत 

14 जुलाई 2003 को पुणे में उनका निधन हो गया, जिससे राष्ट्रवादी विचारकों और लाखों स्वयंसेवकों को गहरा दुःख हुआ। आज भी, रज्जू भैया का चिंतन और उनके द्वारा स्थापित आदर्श संघ और उससे जुड़े संगठनों के कार्यों में परिलक्षित होते हैं। उनके नाम पर कई शैक्षणिक और सामाजिक संस्थान कार्यरत हैं, जो उनकी प्रेरणादायक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।प्रोफेसर राजेंद्र सिंह का जीवन इस बात का प्रमाण है कि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति भी राष्ट्रभक्त, आध्यात्मिक और समाज सेवी हो सकता है। उनका त्याग और समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

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