के. कामराज: भारतीय राजनीति के एक कर्मयोगी नेता( 15 जुलाई 1903- 2 अक्टूबर 1975)
के. कामराज, जिनका पूरा नाम कुमारसामी कामराज था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक निडर योद्धा, तमिलनाडु के एक अत्यंत लोकप्रिय मुख्यमंत्री और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक कुशल संगठनकर्ता थे. उन्हें भारतीय राजनीति में 'किंग मेकर' (राजा निर्माता) और 'लोकनायक' जैसे सम्मानजनक नामों से पुकारा गया. वे राजनीति को जनसेवा का माध्यम मानते थे और सादगी, ईमानदारी तथा जनता के कल्याण को सबसे ऊपर रखते थे.
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा का संघर्ष
के. कामराज का जन्म 15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के विरुधुनगर में कुमारस्वामी नादर और शिवकामी अम्मल के घर हुआ था. उनका बचपन संघर्षों से भरा था. परिवार की आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें आठवीं कक्षा के बाद ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. कम उम्र में ही, उनके भीतर देश प्रेम की भावना जागृत हुई और वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े.
स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य योगदान
कामराज महात्मा गांधी, वल्लभभाई पटेल और राजाजी (सी. राजगोपालाचारी) से बहुत प्रभावित थे. उन्होंने कई महत्वपूर्ण आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया:
1921: असहयोग आंदोलन में भाग लिया और पहली बार गिरफ्तार हुए.
1930: नमक सत्याग्रह में भाग लिया और जेल गए.
1942: भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और इस दौरान तीन साल जेल में बिताए.
अपने जीवनकाल में, वे कुल 6 बार गिरफ्तार हुए और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लगभग 9 साल जेल में बिताए.
मुख्यमंत्री के रूप में क्रांतिकारी कार्यकाल (1954-1963)
13 अप्रैल 1954 को कामराज ने मद्रास राज्य (जो अब तमिलनाडु है) के मुख्यमंत्री का पद संभाला. उनका नौ साल का कार्यकाल शिक्षा, सिंचाई, ग्रामीण विकास और औद्योगिकीकरण के क्षेत्र में ऐतिहासिक माना जाता है.
मुख्य उपलब्धियाँ:
शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति:
उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और निःशुल्क बनाया, जिससे समाज के गरीब से गरीब तबके तक शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित हुई.
मिड-डे मील योजना' (दोपहर का भोजन योजना) की शुरुआत की, जिसे बाद में पूरे देश में अपनाया गया.
स्कूल भवनों और अध्यापकों की संख्या में भारी वृद्धि की, जिससे शिक्षा का बुनियादी ढाँचा मजबूत हुआ.
सिंचाई और कृषि विकास:
उन्होंने पेरियार परियोजना और वैगई डैम जैसी कई बड़ी सिंचाई परियोजनाएं शुरू कीं, जिससे कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई.
किसानों के लिए सहकारी योजनाएं शुरू कीं, जिससे उन्हें बेहतर सहायता मिल सकी.
औद्योगिक विकास:
उनके नेतृत्व में मद्रास फर्टिलाइजर प्लांट और नेवेली लिग्नाइट प्लांट जैसी नई औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित हुईं, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े और राज्य का औद्योगिक विकास हुआ.
राजनीतिक सादगी और प्रशासनिक दक्षता:
उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कदम उठाए और स्वयं एक अत्यंत सादा जीवन जिया. उनके पास कोई निजी संपत्ति नहीं थी, जो उनकी ईमानदारी का प्रतीक था.
कांग्रेस संगठन के अध्यक्ष और 'किंग मेकर' की भूमिका (1963-1967)
1963 में, कामराज ने 'कामराज योजना' के तहत मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया ताकि कांग्रेस संगठन को पुनर्जीवित किया जा सके. उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
कामराज योजना:
इस योजना का सुझाव कामराज ने दिया था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता (मुख्यमंत्री और मंत्री) अपने सरकारी पद छोड़कर पार्टी संगठन को मजबूत करने पर ध्यान दें. पंडित नेहरू ने इस योजना का समर्थन किया और कई बड़े नेताओं ने इसका पालन करते हुए अपने पदों से इस्तीफा दे दिया.
'किंग मेकर' की भूमिका:
पंडित नेहरू के निधन के बाद, कामराज ने दो प्रधानमंत्रियों के चयन में निर्णायक भूमिका निभाई:
* लाल बहादुर शास्त्री (1964)
* इंदिरा गांधी (1966)
इसी कारण उन्हें भारतीय राजनीति में 'किंग मेकर' की उपाधि से नवाजा गया.
निजी जीवन और सादगी का अद्वितीय उदाहरण
कामराज ने कभी शादी नहीं की और अपना पूरा जीवन देश और समाज की सेवा में समर्पित कर दिया. वे हमेशा एक साधारण धोती और कुर्ता पहनते थे और उनके पास कोई निजी संपत्ति या बैंक खाता नहीं था. उनका जीवन गांधीवादी सादगी और निःस्वार्थ सेवा भावना का एक आदर्श उदाहरण था.
सम्मान और पुरस्कार
कामराज को मरणोपरांत 1976 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया. तमिलनाडु में कई शिक्षण संस्थान और सार्वजनिक स्थान उनके नाम पर रखे गए हैं. उनकी स्मृति में डाक टिकट और स्मारक सिक्के भी जारी किए गए हैं, जो राष्ट्र के लिए उनके योगदान को याद दिलाते हैं.
निधन
के. कामराज का निधन 2 अक्टूबर 1975 को चेन्नई में हुआ. यह संयोग ही था कि उन्होंने महात्मा गांधी की जयंती पर इस संसार को अलविदा कहा, मानो उनका जीवन गांधीजी के विचारों का ही प्रतिरूप रहा हो.
उपसंहार
के. कामराज भारतीय राजनीति में ईमानदारी, सेवा और जनकल्याण के प्रतीक थे. वे ऐसे नेता थे जिनकी सोच में सत्ता का नहीं, बल्कि सेवा का भाव निहित था. उनके अथक प्रयासों से तमिलनाडु शिक्षा, सिंचाई और औद्योगीकरण के क्षेत्र में अग्रणी बना. वे उन बिरले राजनेताओं में से थे जिन्होंने न तो सत्ता का मोह रखा और न ही किसी निजी लाभ की चिंता की.
उनकी विरासत आज भी हमें यह प्रेरणा देती है कि सच्चा नेतृत्व वही होता है जो निस्वार्थ हो, जनसेवा को सर्वोच्च माने और देश को आगे बढ़ाने के लिए सादगी व समर्पण के साथ काम करे.
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