भीष्म साहनी: एक जीवन परिचय( 8 अगस्त 1915- 11 जुलाई 2003)
हिंदी साहित्य के महान लेखक, भीष्म साहनी, अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की सच्चाई, मानवीय भावनाओं और ऐतिहासिक घटनाओं को जिस गहराई से प्रस्तुत करते थे, वह आज भी पाठकों को प्रभावित करती है। उनका जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। वह सिर्फ एक लेखक ही नहीं थे, बल्कि एक बेहतरीन अभिनेता, निर्देशक, अनुवादक और सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उनकी सबसे मशहूर रचना, उपन्यास 'तमस', ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई, जिसमें उन्होंने भारत-पाकिस्तान के विभाजन की दर्दनाक कहानी को बहुत ही मार्मिक और वास्तविक ढंग से चित्रित किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
भीष्म साहनी का बचपन एक समृद्ध और शिक्षित परिवार में बीता। उनके बड़े भाई, बलराज साहनी, भी रंगमंच और फिल्मों के जाने-माने कलाकार थे। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई रावलपिंडी में पूरी की और बाद में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की डिग्री ली। इसके बाद, उन्होंने 1958 में इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी भी की।
स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक कार्य
भीष्म साहनी युवावस्था से ही सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों से जुड़े थे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। 1947 में जब देश का विभाजन हुआ, तब उन्होंने शरणार्थियों की मदद के लिए राहत कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बाद में, वे कम्युनिस्ट पार्टी के सांस्कृतिक संगठन 'इप्टा' (Indian People’s Theatre Association) से जुड़ गए, जिसने उनकी सोच और लेखन पर गहरा प्रभाव डाला।
साहित्यिक सफर
भीष्म साहनी ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कहानियों से की थी, लेकिन जल्द ही वे हिंदी के बड़े उपन्यासकारों और नाटककारों में गिने जाने लगे। उनकी लेखन शैली बहुत सरल और सहज थी, पर उनके शब्दों में गहरी भावनाओं को व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता थी।
उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ:
उपन्यास
* तमस (1974): यह उपन्यास भारत-पाकिस्तान के विभाजन और उससे उपजे सांप्रदायिक दंगों की भयानक सच्चाई को दिखाता है।
* बसंती (1979): एक गरीब महिला के जीवन संघर्ष की कहानी।
* मय्यादास की माँ (1985): विभाजन और पंजाब के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का चित्रण।
कहानी संग्रह
* भाग्यरेखा
* वाङ्चू
* पाली
नाटक
* हानूश: कला और कलाकार के बीच के संबंधों पर आधारित।
* कबिरा खड़ा बाजार में: संत कबीर के जीवन और विचारों पर।
* माधवी: महाभारत के एक प्रसंग पर आधारित, जिसमें एक स्त्री के दुख को दर्शाया गया है।
आत्मकथा
* आज के अतीत: इसमें उन्होंने अपने जीवन और साहित्यिक सफर के बारे में विस्तार से लिखा है।
भाषा और शैली
भीष्म साहनी की भाषा बेहद सीधी और संवादपरक थी। उनकी कहानियों और उपन्यासों के पात्र हमारे-आपके जैसे साधारण लोग होते थे, जिनके सुख-दुख और संघर्ष की कहानियाँ हर पाठक को अपनी लगती थीं। उन्होंने बड़ी से बड़ी बात को भी बहुत ही सरल शब्दों में कह दिया।
अभिनय और सम्मान
साहित्य के अलावा, उन्होंने रंगमंच और फिल्मों में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। वे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से लंबे समय तक जुड़े रहे और उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने कई नाटकों का मंचन किया और 'मोहन जोशी हाजिर हो!', 'तमस' और 'लिटिल बुद्धा' जैसी फिल्मों में अभिनय भी किया।
उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
* साहित्य अकादमी पुरस्कार (1975): उपन्यास 'तमस' के लिए।
* पद्म भूषण (1998): साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए।
* सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
निधन और विरासत
11 जुलाई 2003 को नई दिल्ली में भीष्म साहनी का निधन हो गया। उनकी मृत्यु से हिंदी साहित्य को एक बड़ी क्षति हुई। उनका साहित्य आज भी हमें सिखाता है कि लेखक का कर्तव्य केवल कहानियाँ लिखना नहीं, बल्कि समाज को उसकी सच्चाइयों से रूबरू कराना और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना भी है। भीष्म साहनी की रचनाएँ, खास तौर पर 'तमस', आज भी हमें यह याद दिलाती हैं कि नफरत और हिंसा से ऊपर उठकर ही हम प्रेम और सहिष्णुता के रास्ते पर चल सकते हैं। उनकी विरासत हिंदी साहित्य के इतिहास में हमेशा जीवित रहेगी।
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