छठ पर्व : प्रकृति, आस्था और पर्यावरण का पावन संगम

छठ पर्व : प्रकृति, आस्था और पर्यावरण का पावन संगम


भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में छठ पर्व एक अद्भुत और अद्वितीय पर्व है, जो सूर्योपासना, जल, माटी और मानव के बीच आत्मीय संबंध का प्रतीक है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, सामूहिकता, अनुशासन और पवित्रता का भी प्रेरक उत्सव है।


 छठ पर्व का परिचय

छठ पर्व मुख्यतः बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। धीरे-धीरे यह पर्व पूरे भारत और विश्व में बसे प्रवासी भारतीयों के बीच भी लोकप्रिय हो गया है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है।
‘छठ’ शब्द संस्कृत के ‘षष्ठी’ से बना है, जिसका अर्थ होता है – छठा दिन। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।




 पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व

छठ पर्व की परंपरा अत्यंत प्राचीन है।

ऋग्वेद में सूर्योपासना का वर्णन मिलता है, जहाँ सूर्य को जीवनदायी ऊर्जा और स्वास्थ्य का स्रोत कहा गया है।

रामायण में उल्लेख है कि जब भगवान राम और सीता जी अयोध्या लौटे, तब सीता जी ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य की आराधना की थी।

महाभारत में कुंती द्वारा सूर्य देव की उपासना और कर्ण के जन्म का उल्लेख भी सूर्योपासना की इस परंपरा से जुड़ा माना जाता है।


इस प्रकार, छठ पर्व वैदिक काल से ही भारतीय जीवन में सूर्य-पूजन की अमर परंपरा का द्योतक रहा है।


पर्व की अवधि और अनुष्ठान

छठ पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है, और प्रत्येक दिन का अपना विशिष्ट धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व होता है।

 नहाय-खाय (पहला दिन)

इस दिन व्रती (उपवास करने वाला) नदियों या तालाबों में स्नान करके शुद्ध भोजन ग्रहण करता है। भोजन में केवल अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। यह दिन शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक है।

 खरना (दूसरा दिन)

सूर्यास्त के बाद व्रती उपवास तोड़ता है। गुड़ से बनी खीर, रोटी और केला का प्रसाद बनता है। खरना के बाद व्रती अगले 36 घंटे तक निर्जल उपवास रखता है — बिना जल, बिना अन्न।

 संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)

शाम के समय व्रती गंगा, तालाब या नदी के तट पर जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देता है। महिलाएँ बाँस की सूप में ठेकुआ, फल, नारियल, दीपक आदि रखकर जल में खड़ी होकर सूर्य को नमन करती हैं। यह दृश्य अत्यंत मनोहर और आध्यात्मिक होता है।

 उषा अर्घ्य (चौथा दिन)

अंतिम दिन प्रातःकाल उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य की प्रथम किरणें जब अर्घ्य जल में पड़ती हैं, तो वातावरण में एक अद्भुत पवित्रता फैल जाती है। इसके बाद व्रती उपवास खोलते हैं और प्रसाद वितरण किया जाता है।

 वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टि

छठ पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

यह पर्व सूर्य ऊर्जा के महत्त्व को दर्शाता है, जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है।

जलाशयों की सफाई, बाँस और मिट्टी के बर्तनों का उपयोग पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है।

उपवास और स्नान शरीर को डिटॉक्स करते हैं तथा स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं।



सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष

छठ पर्व में जाति, धर्म, वर्ग, और भाषा की कोई सीमा नहीं होती। गाँव, शहर, अमीर, गरीब — सभी एक साथ घाटों पर एकत्र होते हैं। यह सामूहिक एकता और सहयोग की भावना को सशक्त बनाता है।
इसके गीत — “केलवा जे फरेला घवद से...”, “पटना के घाट पर...” — लोक संस्कृति की आत्मा को स्पंदित करते हैं।

 छठ पर्व की विशिष्टता

यह पर्व निर्मलता, सादगी और अनुशासन का उदाहरण है।

बिना किसी पंडित या यज्ञ के, सीधे प्रकृति और सूर्य की उपासना इसका सार है।

छठी मैया का स्वरूप मातृत्व और कल्याण का प्रतीक है, जो संतान, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।


उपसंहार

छठ पर्व भारतीय संस्कृति की वह उज्ज्वल परंपरा है, जिसमें श्रद्धा, शुचिता और प्रकृति का अनोखा संगम है। यह पर्व हमें सिखाता है कि मनुष्य और प्रकृति का संबंध एक आस्था नहीं, बल्कि अस्तित्व की आवश्यकता है।
छठ पूजा केवल सूर्य की उपासना नहीं, बल्कि जीवन, ऊर्जा और संतुलन की उपासना है।



“छठी मैया सब पर कृपा करें,
सूर्य देव जीवन में प्रकाश भरें।”





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