सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया: एक दूरदर्शी वैज्ञानिक, प्रखर योजनाकार और कुशल प्रशासक (15 सितंबर 1861- 14 अप्रैल 1962)


सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया: एक  दूरदर्शी वैज्ञानिक, प्रखर योजनाकार और कुशल प्रशासक (15 सितंबर 1861- 14 अप्रैल 1962)

भूमिका 

भारत के औद्योगिक और तकनीकी इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा और दूरदर्शिता से देश की प्रगति की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया। ऐसे ही एक असाधारण व्यक्तित्व थे सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया—एक नाम जो केवल एक महान इंजीनियर का नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी वैज्ञानिक, प्रखर योजनाकार और कुशल प्रशासक का भी है। उनका जीवन आधुनिक भारत के तकनीकी और औद्योगिक जागरण की एक प्रेरक गाथा है।
15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के मुद्देनहल्ली में जन्मे, विश्वेश्वरैया का बचपन संघर्षों से भरा था। उनके पिता की असमय मृत्यु के बाद भी, उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी। अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता और लगन के बल पर उन्होंने पुणे इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की और आगे चलकर देश के सबसे सम्मानित इंजीनियरों में से एक बने।

इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान

विश्वेश्वरैया का सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारत में जल प्रबंधन और सिंचाई प्रणालियों को आधुनिक बनाना था। उन्होंने बांधों और जलाशयों के निर्माण में ऐसी तकनीकें विकसित कीं जो उस समय के लिए क्रांतिकारी थीं। ग्वालियर के टिगरा डैम और पुणे के खडकवासला डैम में उनका काम आज भी इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। उन्होंने "ब्लॉक सिस्टम" जैसी अभिनव तकनीक विकसित की, जिसने बांधों से पानी के कुशल वितरण को संभव बनाया।
मैसूर में कृष्णराज सागर (KRS) बांध का निर्माण उनकी देखरेख में हुआ। यह परियोजना उनकी इंजीनियरिंग प्रतिभा का एक जीवित प्रमाण है, जो आज भी कर्नाटक के लाखों किसानों के लिए जीवनदायिनी है। उन्होंने हैदराबाद और सेकुंदराबाद जैसे शहरों के लिए भी उत्कृष्ट जल आपूर्ति और निकासी प्रणाली तैयार की, जिससे शहरी जीवन में एक नया बदलाव आया।

प्रशासनिक दक्षता और राष्ट्र निर्माण

विश्वेश्वरैया का कौशल केवल इंजीनियरिंग तक सीमित नहीं था। वे एक कुशल प्रशासक भी थे। 1912 से 1918 तक उन्होंने मैसूर के दीवान (प्रधानमंत्री) के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने शिक्षा, उद्योग, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे में महत्वपूर्ण सुधार किए। उनके नेतृत्व में मैसूर "मॉडल स्टेट" के रूप में उभरा, जहाँ उद्योगों की नींव रखी गई। मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स (भद्रावती), मैसूर सिल्क फैक्ट्री, और मैसूर सैंडल ऑयल फैक्ट्री जैसे प्रतिष्ठानों की स्थापना उनके औद्योगिक दूरदर्शिता का परिणाम थी। वे सही मायने में आधुनिक भारतीय उद्योगों के अग्रदूत थे।
सम्मान और विरासत

राष्ट्र निर्माण में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए। 1915 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 'नाइटहुड' की उपाधि दी, जिसके बाद वे 'सर एम. विश्वेश्वरैया' कहलाए। स्वतंत्र भारत में, 1955 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा।
उनके जन्मदिन, 15 सितंबर, को पूरे भारत में "अभियंता दिवस" (Engineers' Day) के रूप में मनाया जाता है, जो उनकी विरासत और देश के विकास में इंजीनियरों के योगदान का सम्मान करता है।
सर एम. विश्वेश्वरैया की मृत्यु 14 अप्रैल 1962 को 101 वर्ष की आयु में हुआ और जीवन के अंतिम क्षणों तक सक्रिय रहे। वे अनुशासन, परिश्रम और ईमानदारी के प्रतीक थे। उनका यह विश्वास था कि "देश की प्रगति विज्ञान, तकनीक और आत्मनिर्भरता से ही संभव है।" उनका जीवन आज भी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो अपने ज्ञान और कर्म से राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहता है।

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