एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी : भारतीय संगीत की स्वर-सम्राज्ञी(16 सितंबर 1916- 11 दिसंबर 2004)
परिचय
मदुरै शण्मुखवदिवु सुब्बुलक्ष्मी (एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी) भारतीय शास्त्रीय संगीत की वह महान विभूति थीं, जिन्होंने अपने मधुर स्वर और भक्ति-रसपूर्ण प्रस्तुति से संगीत को भक्ति का रूप प्रदान किया। उन्हें "कर्नाटक संगीत की रानी" और "भारत की रात्रिगंधा" कहा जाता है। उनके गाए हुए भजन, स्तोत्र और कर्नाटक रचनाएँ आज भी संगीत प्रेमियों और भक्तों के हृदय को आलोकित करती हैं।
जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी का जन्म 16 सितंबर 1916 को तमिलनाडु के मदुरै नगर में एक संगीत-प्रेमी परिवार में हुआ।
- पिता: शण्मुखवदिवु थे, जो एक संगीतज्ञ थे।
- माता: शण्मुखवदिवु अम्माल, जो वीणा वादन में निपुण थीं।
संगीत का वातावरण उनके घर-आंगन में ही था। इसलिए, बाल्यकाल से ही उन्होंने स्वर-साधना आरंभ कर दी।
शिक्षा और संगीत प्रशिक्षण
सुब्बुलक्ष्मी ने औपचारिक शिक्षा बहुत अधिक नहीं पाई, परंतु संगीत के क्षेत्र में उन्होंने असाधारण दक्षता अर्जित की।
- उनके पहले गुरु उनकी माता थीं।
- तत्पश्चात उन्होंने प्रसिद्ध कर्नाटक संगीतज्ञ सेम्मनगुडी श्रीनिवास अय्यर और पंडित नारायणराव वायस से प्रशिक्षण लिया।
- उन्होंने केवल कर्नाटक संगीत तक सीमित न रहकर हिंदुस्तानी संगीत में भी दक्षता प्राप्त की, जिसके लिए उन्होंने पंडित नारायण राव वायस से मार्गदर्शन लिया।
संगीत यात्रा की शुरुआत
- मात्र 10 वर्ष की आयु में उन्होंने मदुरै के एक छोटे से मंच पर पहली प्रस्तुति दी।
- 1932 में, जब वह केवल 16 वर्ष की थीं, उन्होंने मद्रास म्यूजिक अकादमी में प्रस्तुति दी और सबका ध्यान आकर्षित किया।
- उनकी आवाज़ में पवित्रता, करुणा और भक्ति का समन्वय था, जो उन्हें अन्य गायिकाओं से अलग बनाता था।
फिल्मों में योगदान
हालाँकि सुब्बुलक्ष्मी का मूल क्षेत्र शास्त्रीय संगीत ही था, परंतु उन्होंने कुछ फिल्मों में भी काम किया।
- पहली फिल्म: सावित्री (तमिल भाषा, 1933)
- सबसे प्रसिद्ध फिल्म: मीरा (1945, तमिल; बाद में हिंदी में भी बनी)
- इस फिल्म में उन्होंने संत मीरा का किरदार निभाया।
- "मेरे तो गिरधर गोपाल", "हरि तुम हरो", "वैष्णव जन तो" जैसे भजन अमर हो गए।
- उनकी फिल्मों ने उनके भक्ति-संगीत को घर-घर पहुँचाया।
भक्ति संगीत और अंतरराष्ट्रीय ख्याति
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी का गायन केवल कला नहीं था, बल्कि भक्ति और साधना का स्वरूप था।
- उन्होंने संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, हिंदी और संस्कृत में अनेकों भजनों, स्तोत्रों और श्लोकों का गायन किया।
- उनके गाए हुए विष्णु सहस्रनामम्, ललिता सहस्रनामम्, हनुमान चालीसा, भीष्म स्तुति आज भी विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।
- उनकी आवाज़ को सुनकर महात्मा गांधी ने कहा था – "मुझे तुम्हारी आवाज़ में वैष्णव जन तो सुनना है।"
- उन्होंने 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्तुति देकर भारत का गौरव बढ़ाया।
प्रमुख सम्मान और पुरस्कार
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी को भारत और विश्वभर में अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया—
- भारत रत्न (1998) – भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
- पद्म विभूषण (1975)
- पद्म भूषण (1954)
- संगीत काला निधि (1968) – कर्नाटक संगीत के क्षेत्र का सबसे बड़ा पुरस्कार।
- रामोन मैग्सेसे पुरस्कार (1974) – उन्हें एशिया की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दिलाई।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा से सम्मानित होने वाली वह पहली भारतीय संगीतज्ञ बनीं।
व्यक्तिगत जीवन
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी ने टी. सदाशिवम से विवाह किया, जो एक स्वतंत्रता सेनानी और थिएटर कलाकार थे।
उनके पति ने ही उन्हें फिल्मों से दूर कर पूरी तरह से शास्त्रीय और भक्ति संगीत में समर्पित कर दिया।
मृत्यु
यह महान स्वर-साधिका 11 दिसंबर 2004 को 88 वर्ष की आयु में परलोकवासी हो गईं।
विरासत
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी केवल एक गायिका नहीं थीं, बल्कि वह आध्यात्मिक संगीत की मूर्ति थीं।
- उन्होंने संगीत को केवल कला नहीं, बल्कि साधना और सेवा का माध्यम माना।
- उनके गाए भजन आज भी मंदिरों, पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक आयोजनों में गूँजते हैं।
- उन्हें भारतीय संगीत की मीरा कहा जाता है।
निष्कर्ष
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी का जीवन संगीत, साधना और भक्ति का प्रतीक था। उन्होंने अपने स्वर के माध्यम से भारत की संस्कृति और अध्यात्म को वैश्विक स्तर पर पहुँचाया। उनकी गायकी से भारत का गौरव बढ़ा और आज भी वह भारतीय संगीत की अमर विभूति मानी जाती हैं।

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