जीमूतवाहन त्यौहार : धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
परिचय
भारतीय संस्कृति में त्यौहार केवल आनंद और उल्लास का प्रतीक नहीं होते, बल्कि उनमें गहरी धार्मिक और नैतिक शिक्षाएँ छिपी होती हैं। जीमूतवाहन त्यौहार ऐसा ही एक पर्व है, जो त्याग, करुणा और परोपकार की प्रेरणा देता है। यह व्रत विशेषकर भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।
पौराणिक कथा
इस व्रत और त्यौहार के पीछे जीमूतवाहन नामक महापुरुष की कथा जुड़ी है।
- जीमूतवाहन एक धर्मपरायण और दयालु राजा थे।
- उन्होंने नागकन्या के पति को बचाने हेतु स्वयं को गरुड़ के सामने अर्पित कर दिया।
- उनके इस त्याग से प्रसन्न होकर गरुड़ ने वचन दिया कि अब कभी किसी नाग को नहीं खाएगा।
- इस प्रकार जीमूतवाहन ने एक परिवार ही नहीं, बल्कि पूरे नागवंश को मृत्यु से मुक्त कर दिया।
धार्मिक अनुष्ठान
- इस पर्व पर भक्तजन व्रत और उपवास रखते हैं।
- मंदिरों में विशेष पूजन, कथा-पाठ और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।
- नागदेवता की पूजा कर उन्हें दूध, पुष्प और जल अर्पित किया जाता है।
- महिलाएँ परिवार की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं।
सांस्कृतिक महत्व
- यह त्यौहार करुणा और निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक है।
- इसका संदेश है कि अपने प्राणों का त्याग कर भी दूसरों की रक्षा करना ही सच्चा धर्म है।
- बंगाल, उड़ीसा और असम में इस पर्व का विशेष आयोजन होता है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- प्राचीन भारत में नागपूजा की परंपरा अत्यंत प्रचलित रही है। नागवंश और सूर्यवंश जैसे वंशों की कथाएँ पुराणों और महाकाव्यों में मिलती हैं।
- माना जाता है कि जीमूतवाहन की कथा महायान बौद्ध और पुराणकालीन परंपराओं से भी प्रभावित है, जहाँ त्याग और करुणा को सर्वोच्च मूल्य माना गया।
- ऐतिहासिक दृष्टि से यह पर्व पूर्वी भारत में नागवंशीय राजाओं की स्मृति और उनकी परंपराओं से जुड़ा है।
- मध्यकालीन ग्रंथों जैसे बृहत्कथा और कथासरित्सागर में जीमूतवाहन की कथा का वर्णन मिलता है।
- लोकजीवन में यह पर्व सामाजिक समरसता का प्रतीक बन गया। नागों और गरुड़ जैसी पौराणिक शक्तियों को जोड़ने वाली यह कथा, विभिन्न समुदायों में सामंजस्य और शांति का संदेश देती है।
- ब्रिटिश काल में जब बंगाल और उड़ीसा में लोकपर्वों का संकलन हुआ, तब जीमूतवाहन व्रत को वहाँ की स्त्रियों द्वारा प्रमुख रूप से मनाए जाने वाला पर्व बताया गया। इससे पता चलता है कि यह परंपरा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से भी गहराई तक जमी हुई थी।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य
आज जब समाज में स्वार्थ और अहंकार बढ़ता जा रहा है, तो जीमूतवाहन त्यौहार हमें यह याद दिलाता है कि –
- करुणा, परोपकार और त्याग ही जीवन के वास्तविक आभूषण हैं।
- धर्म केवल पूजा या अनुष्ठान तक सीमित नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन की रक्षा और उनकी भलाई करना ही सच्चा धर्म है।
निष्कर्ष
जीमूतवाहन त्यौहार धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व हमें महापुरुषों के आदर्श जीवन की याद दिलाता है और यह सिखाता है कि –
- जीवन का परम उद्देश्य केवल स्वयं का कल्याण नहीं, बल्कि दूसरों की रक्षा और समाज की भलाई करना है।
- यह पर्व नागपूजा, करुणा और त्याग की प्राचीन परंपरा को जीवित रखते हुए आज भी भारतीय समाज को एक गहन नैतिक शिक्षा प्रदान करता है।

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