स्वामी अग्निवेश: समाज सुधारक और मानवाधिकारों के अग्रदूत(21 सितंबर 1939- 11 सितंबर 2020 )
भूमिका
स्वामी अग्निवेश, एक ऐसा नाम जो गेरुआ वस्त्र में लिपटी सादगी और अन्याय के विरुद्ध एक निडर आवाज़ का पर्याय बन गया। 21 सितंबर 1939 को जन्मे और 11 सितंबर 2020 को हमें अलविदा कहने वाले स्वामी अग्निवेश सिर्फ एक संत नहीं, बल्कि एक समाज सुधारक, शिक्षाविद और मानवाधिकारों के सजग प्रहरी थे। उनका जीवन सेवा, संघर्ष और साहस की एक अद्भुत मिसाल है, जिसने आधुनिक भारत में सामाजिक न्याय की परिभाषा को नए सिरे से गढ़ा।
एक संत जिसने राजनीति में प्रवेश किया
छत्तीसगढ़ में वेंकटेश्वरन के रूप में जन्में, स्वामी अग्निवेश का बचपन भले ही मुश्किलों से भरा रहा हो, लेकिन उनकी शिक्षा ने उन्हें एक मजबूत आधार दिया। कोलकाता से वाणिज्य और कानून की पढ़ाई के बाद उन्होंने व्यापार प्रबंधन में भी उच्च शिक्षा हासिल की। यहाँ तक कि उन्होंने सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में पढ़ाया भी। यह एक ऐसा दौर था जब वे एक सामान्य जीवन जी रहे थे, लेकिन आर्य समाज के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और अपना नाम स्वामी अग्निवेश रख लिया।
सच्चाई की तलाश और समाज सेवा के जुनून ने उन्हें राजनीति में भी कदम रखने को प्रेरित किया। उन्होंने हरियाणा में आर्यसभा की स्थापना की और राज्य विधानसभा के सदस्य भी बने। एक समय ऐसा भी आया जब वे हरियाणा सरकार में शिक्षा मंत्री भी रहे, लेकिन जल्द ही वे राजनीतिक भ्रष्टाचार और जातिवाद से निराश हो गए। उन्होंने महसूस किया कि सच्चा बदलाव सत्ता में रहकर नहीं, बल्कि सड़कों पर उतरकर और लोगों के बीच रहकर लाया जा सकता है।
बंधुआ मज़दूरों के मसीहा
स्वामी अग्निवेश का सबसे बड़ा योगदान बंधुआ मज़दूरी के खिलाफ़ उनका अविस्मरणीय संघर्ष है। 1981 में उन्होंने बंधुआ मुक्ति मोर्चा (Bonded Labour Liberation Front) की स्थापना की। इस संगठन के ज़रिए उन्होंने हज़ारों ग़ुलामों को आज़ादी दिलाई, जिन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी कर्ज़ के जाल में फँसाकर बंधुआ बनाकर रखा गया था। उनका काम केवल मज़दूरों को आज़ाद कराना नहीं था, बल्कि उन्हें सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन देना भी था। वे बाल मज़दूरी और अन्य प्रकार के श्रम शोषण के विरुद्ध भी लगातार आवाज़ उठाते रहे। उनके इसी काम के लिए उन्हें 2004 में प्रतिष्ठित राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, जिसे 'वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार' भी कहा जाता है।
धार्मिक सौहार्द और मानवाधिकारों के पक्षधर
स्वामी अग्निवेश धार्मिक कट्टरता के सख्त विरोधी थे। वे मानते थे कि धर्म का असली उद्देश्य मानवता की सेवा है। वे विभिन्न धर्मों के बीच संवाद को बढ़ावा देते थे और हमेशा धर्मनिरपेक्षता और समानता के पक्ष में खड़े रहे। अपनी निडरता के कारण उन्हें कई बार धार्मिक और राजनीतिक विरोध का सामना भी करना पड़ा, लेकिन वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उन्होंने मानवाधिकारों और शांति के लिए आवाज़ उठाई।
2011 में जब अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में जनलोकपाल आंदोलन शुरू हुआ, तो स्वामी अग्निवेश भी इसके प्रमुख चेहरों में से एक थे। वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस लड़ाई में शामिल हुए और करोड़ों लोगों को इस मुहिम से जोड़ा, हालाँकि बाद में कुछ मतभेदों के चलते वे इस आंदोलन से अलग हो गए।
एक विचारक का निधन
स्वामी अग्निवेश एक गहरे विचारक भी थे। उन्होंने सामाजिक न्याय, समानता और शोषण उन्मूलन पर कई किताबें और लेख लिखे। उनकी सोच हमेशा मानवता को सर्वोपरि रखने वाली रही। 11 सितंबर 2020 को 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, लेकिन उनका संघर्ष और उनके विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। स्वामी अग्निवेश का जीवन हमें सिखाता है कि धर्म का वास्तविक अर्थ केवल पूजा-पाठ करना नहीं, बल्कि मानवता की सेवा है। उन्होंने यह साबित किया कि जब भी अन्याय हो, तो एक सच्चे साधु को अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए। वे सदा एक निडर समाज सुधारक, मानवाधिकारों के प्रहरी और बंधुआ मज़दूरों के मसीहा के रूप में याद किए जाएँगे।

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