भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं जिन्हें भले ही मुख्यधारा में कम याद किया जाता है, लेकिन उनका बलिदान और योगदान अतुलनीय है। अनाथ बंधु पांजा और मृगेंद्र दत्त ऐसे ही दो महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपनी युवावस्था में ही मातृभूमि की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। ये दोनों बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े थे और इन्होंने अपने अदम्य साहस से ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कड़ी चुनौती दी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में बंगाल ब्रिटिश राज के विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों का गढ़ बन चुका था। अनुशीलन समिति और युगांतर दल जैसे गुप्त क्रांतिकारी संगठन युवाओं को सशस्त्र संघर्ष के लिए प्रेरित कर रहे थे। इन्हीं संगठनों में अनाथ बंधु पांजा और मृगेंद्र दत्त भी शामिल थे। उनका मानना था कि केवल संवैधानिक साधनों से नहीं, बल्कि बलिदान और संघर्ष से ही आज़ादी मिलेगी।
अनाथ बंधु पांजा: जीवन और बलिदान
अनाथ बंधु पांजा का जन्म 29 अक्टूबर, 1911 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में हुआ था। बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वे बंगाल वॉलेंटियर्स नामक क्रांतिकारी संगठन के सक्रिय सदस्य बने। उनका प्रमुख कार्य युवाओं को शारीरिक और सैन्य प्रशिक्षण देकर उन्हें देश की सेवा के लिए तैयार करना था। उन्होंने कई गुप्त अभियानों में हिस्सा लिया और हथियार जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनका बलिदान 2 सितंबर, 1933 को हुआ, जब उन्होंने मिदनापुर के अत्याचारी जिला मजिस्ट्रेट बी.ई.जे. बर्ज को उनके ही पुलिस ग्राउंड में एक फुटबॉल मैच के दौरान मार गिराया। इस साहसिक कार्रवाई के दौरान, वे बर्ज के अंगरक्षक की गोली से मौके पर ही शहीद हो गए।
मृगेंद्र दत्त: जीवन और योगदान
मृगेंद्र दत्त का जन्म 27 अक्टूबर, 1915 को हुआ था। वे भी मिदनापुर के ही रहने वाले थे। छात्र जीवन से ही वे क्रांतिकारी साहित्य से प्रभावित थे और उन्होंने युगांतर दल का दामन थामा। मृगेंद्र दत्त का मुख्य उद्देश्य युवाओं में राष्ट्रीय चेतना जगाना और उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित करना था। वे मानते थे कि लोगों को मानसिक रूप से जागृत किए बिना सशस्त्र संघर्ष सफल नहीं हो सकता।
वे भी 2 सितंबर, 1933 को बर्ज के विरुद्ध चलाए गए अभियान में अनाथ बंधु पांजा के साथ थे। इस हमले में वे गंभीर रूप से घायल हो गए और अगले दिन, 3 सितंबर, 1933 को अस्पताल में उनकी शहादत हुई।
साझा आदर्श और विरासत
अनाथ बंधु और मृगेंद्र दत्त की कहानियाँ कई मायनों में समान हैं। दोनों ने अपनी युवावस्था में ही कांग्रेस की नरमपंथी नीतियों की जगह क्रांतिकारी मार्ग चुना। दोनों ने गुप्त संगठनों में रहकर काम किया, युवाओं को प्रशिक्षित किया और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष किया। बर्ज की हत्या में उनका साझा बलिदान उनके अटूट राष्ट्रप्रेम और साहस का प्रतीक बन गया।
इन दोनों क्रांतिकारियों का जीवन और शहादत हमें यह सिखाती है कि राष्ट्र के लिए किया गया बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता। भले ही इतिहास के पन्नों में उनके नाम उतने उजागर न हों, लेकिन उनकी वीरता ने आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित किया है और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।

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