महावीर प्रसाद द्विवेदी : आधुनिक हिंदी के शिल्पकार(15 मई 1864- 21 दिसंबर 1938)
हिंदी साहित्य के इतिहास में महावीर प्रसाद द्विवेदी का नाम अत्यंत आदर और गौरव के साथ लिया जाता है। वे केवल साहित्यकार ही नहीं, बल्कि आधुनिक हिंदी के ऐसे शिल्पकार थे, जिन्होंने भाषा को परिष्कृत रूप दिया, साहित्य को अनुशासन प्रदान किया और उसे सामाजिक चेतना तथा राष्ट्रीय भावना से जोड़ा। उनके नेतृत्व में हिंदी साहित्य ने एक नई दिशा प्राप्त की, जिसे साहित्येतिहास में ‘द्विवेदी युग’ के नाम से जाना जाता है।
जीवन-परिचय
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 15 मई 1864 ई. को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद स्थित दौलतपुर गाँव में हुआ। उनका पारिवारिक जीवन साधारण था और औपचारिक शिक्षा अधिक नहीं हो पाई, किंतु उन्होंने स्वाध्याय के माध्यम से संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी भाषाओं का गहन अध्ययन किया। कठिन परिश्रम, अनुशासन और आत्मविश्वास उनके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताएँ थीं। 21 दिसंबर 1938 ई. को उनका निधन हुआ।
साहित्यिक जीवन और ‘सरस्वती’ पत्रिका
1903 ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक बने। यहीं से हिंदी साहित्य में एक नए युग का आरंभ हुआ। उनके संपादन काल में ‘सरस्वती’ केवल साहित्यिक पत्रिका नहीं रही, बल्कि हिंदी नवजागरण की धुरी बन गई। द्विवेदी जी ने भाषा की शुद्धता, व्याकरणिक अनुशासन और संस्कृतनिष्ठ शब्दावली पर विशेष बल दिया। उन्होंने साहित्य में भावुकता की अतिशयता को नियंत्रित कर विचारशीलता, तर्क और सामाजिक सरोकारों को प्रमुख स्थान दिया।
द्विवेदी युग की विशेषताएँ
द्विवेदी युग की सबसे बड़ी विशेषता साहित्य का सामाजिक और राष्ट्रीय उद्देश्य था। इस काल में साहित्य केवल मनोरंजन का साधन न रहकर समाज-सुधार और राष्ट्र-जागरण का माध्यम बना। गद्य को व्यवस्थित और सुदृढ़ रूप मिला। निबंध, आलोचना, इतिहास और विचारात्मक लेखन का विकास हुआ। लेखकों को स्पष्ट, सरल और उद्देश्यपूर्ण भाषा में लिखने की प्रेरणा मिली।
प्रमुख कृतियाँ
महावीर प्रसाद द्विवेदी एक बहुमुखी रचनाकार थे। उनकी प्रमुख कृतियों में भारतवर्ष का इतिहास, रसज्ञ-रंजन, हिंदी भाषा की उत्पत्ति, कवियों की उर्मिला तथा नारी-शिक्षा और समाज-सुधार से संबंधित अनेक लेख शामिल हैं। उनकी रचनाओं में तर्क, तथ्य और नैतिक दृष्टि का समन्वय दिखाई देता है।
विचारधारा और योगदान
द्विवेदी जी नारी शिक्षा, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अंधविश्वास, रूढ़ियों और कुरीतियों का खुलकर विरोध किया। उनके अनुसार साहित्यकार का कर्तव्य केवल सौंदर्य-निर्माण नहीं, बल्कि समाज को सही दिशा देना भी है। उन्होंने हिंदी लेखकों को अनुशासन, अध्ययन और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया।
निष्कर्ष
महावीर प्रसाद द्विवेदी को आधुनिक हिंदी का शिल्पकार कहना पूर्णतः उचित है। उन्होंने हिंदी भाषा को परिष्कृत रूप दिया, साहित्य को विचारशील बनाया और उसे समाज तथा राष्ट्र के हित से जोड़ा। हिंदी साहित्य का आधुनिक स्वरूप उनके योगदान के बिना कल्पना से परे है। वे हिंदी नवजागरण के ऐसे स्तंभ हैं, जिनकी प्रेरणा आज भी साहित्य और समाज दोनों के लिए पथप्रदर्शक बनी हुई है।

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