क्रांतिकारी बाबा सोहन सिंह भकना(1870- 21 दिसंबर 1968 )


क्रांतिकारी बाबा सोहन सिंह भकना(1870- 21 दिसंबर 1968 )
(गदर आंदोलन के संस्थापक, त्याग और बलिदान के प्रतीक)
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अनेक ऐसे क्रांतिकारी हुए हैं, जिनका योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हुए भी अपेक्षाकृत कम चर्चित रहा। ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी थे बाबा सोहन सिंह भकना, जिन्हें गदर आंदोलन का संस्थापक और प्रवासी भारतीय क्रांति चेतना का प्रणेता माना जाता है। उन्होंने विदेशों में रहकर भी भारत की आज़ादी के लिए आजीवन संघर्ष किया और असंख्य भारतीयों में राष्ट्रप्रेम की ज्वाला प्रज्वलित की।

 प्रारंभिक जीवन

बाबा सोहन सिंह भकना का जन्म 1870 ईस्वी में पंजाब के अमृतसर ज़िले के भकना गाँव में एक सिख कृषक परिवार में हुआ। उनका वास्तविक नाम सोहन सिंह था, जबकि “भकना” उनके गाँव के नाम से जुड़ा उपनाम था। बचपन से ही वे साहसी, स्वाभिमानी और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले व्यक्ति थे।

 विदेश गमन और क्रांतिकारी चेतना

आजीविका की खोज में बाबा सोहन सिंह भकना 1909 में अमेरिका (कैलिफ़ोर्निया) पहुँचे। वहाँ उन्होंने भारतीय मज़दूरों की दुर्दशा और अंग्रेज़ सरकार की शोषणकारी नीतियों को निकट से देखा। यही अनुभव उनके भीतर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध गहरी घृणा और विद्रोह की भावना को जन्म देने लगा।

गदर आंदोलन की स्थापना

1913 ईस्वी में अमेरिका में रह रहे भारतीय प्रवासियों के सहयोग से बाबा सोहन सिंह भकना ने ऐतिहासिक गदर पार्टी (Ghadar Party) की स्थापना की।
पार्टी का उद्देश्य था — सशस्त्र क्रांति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराना।
गदर आंदोलन का मुखपत्र “गदर” नामक अख़बार था, जिसमें ब्रिटिश शासन के विरुद्ध तीखे लेख और कविताएँ प्रकाशित होती थीं।
इस आंदोलन में लाला हरदयाल, करतार सिंह सराभा, विष्णु गणेश पिंगले जैसे क्रांतिकारी शामिल थे।
बाबा सोहन सिंह भकना को गदर पार्टी का प्रथम अध्यक्ष चुना गया।

भारत वापसी और संघर्ष

प्रथम विश्व युद्ध (1914) को क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह का उचित अवसर माना।
1915 में बाबा सोहन सिंह भकना भारत लौटे, ताकि सैनिक विद्रोह के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंका जा सके। किंतु योजना भेद दिए जाने के कारण आंदोलन असफल हो गया।

 गिरफ़्तारी और कठोर दंड

ब्रिटिश सरकार ने बाबा सोहन सिंह भकना को गिरफ्तार कर लाहौर षड्यंत्र केस के अंतर्गत मुकदमा चलाया।
उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई।
उन्होंने सेल्युलर जेल और अन्य कारागारों में वर्षों तक अमानवीय यातनाएँ सहीं।
फिर भी वे अपने विचारों और राष्ट्रभक्ति से कभी विचलित नहीं हुए।

रिहाई और सामाजिक जीवन

लगभग 16 वर्षों के कारावास के बाद बाबा सोहन सिंह भकना को 1930 में रिहा किया गया।
रिहाई के बाद उन्होंने:
किसान आंदोलनों में भाग लिया
समाजवादी और प्रगतिशील विचारधाराओं का समर्थन किया
जीवन के अंतिम समय तक देशसेवा और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करते रहे।

निधन

21 दिसंबर 1968 को इस महान क्रांतिकारी का निधन हुआ। उन्होंने लगभग 98 वर्षों का दीर्घ और संघर्षपूर्ण जीवन जिया।

ऐतिहासिक महत्व और विरासत

बाबा सोहन सिंह भकना:
प्रवासी भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने वाले पहले क्रांतिकारियों में थे
गदर आंदोलन के वैचारिक स्तंभ और संगठनकर्ता थे
त्याग, दृढ़ता और राष्ट्रभक्ति के अद्वितीय उदाहरण बने
उनका जीवन यह सिद्ध करता है कि देशप्रेम की कोई सीमा नहीं होती—न ज़मीन की, न समुद्र की।

उपसंहार

बाबा सोहन सिंह भकना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वे तेजस्वी नायक हैं, जिनका योगदान आने वाली पीढ़ियों को संघर्ष, बलिदान और अडिग संकल्प की प्रेरणा देता रहेगा। इतिहास के पन्नों में उनका नाम क्रांति, स्वाभिमान और राष्ट्रभक्ति का पर्याय बनकर सदैव अंकित रहेगा।

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