रामानंद सागर : भारतीय टेलीविजन के युगप्रवर्तक(29 दिसम्बर 1917- 12 दिसम्बर 2005)
भारतीय टेलीविजन और सिनेमा जगत में रामानंद सागर का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्होंने न केवल मनोरंजन जगत को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया बल्कि भारतीय समाज और संस्कृति को भी अपनी रचनाओं के माध्यम से गहराई से प्रभावित किया। विशेषकर दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण धारावाहिक ने उन्हें विश्वभर में लोकप्रिय बना दिया।
प्रारंभिक जीवन
रामानंद सागर का जन्म 29 दिसम्बर 1917 को अमरकोट (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उनका वास्तविक नाम चरणदास चिरंजीवलाल तन्ना था। बचपन में ही उन्हें कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। छोटी उम्र में माता-पिता के निधन के बाद उन्हें अपने नाना-नानी ने पाला। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ छोटे-मोटे काम भी किए।
शिक्षा और आरंभिक करियर
रामानंद सागर ने लाहौर विश्वविद्यालय से संस्कृत, फारसी और अंग्रेज़ी की पढ़ाई की। उन्होंने साहित्य और लेखन के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना शुरू किया। वे अच्छे लेखक और कवि थे और पत्रकारिता से भी जुड़े। शुरुआती दिनों में उन्होंने अखबारों में लेखन किया और फिल्मों में पटकथा लेखक तथा संवाद लेखक के रूप में कार्य किया।
फिल्मी जीवन
रामानंद सागर ने हिंदी फिल्म उद्योग में पटकथा लेखक, संवाद लेखक, निर्देशक और निर्माता के रूप में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।
उन्होंने फिल्म ‘बरसात’ (1949) में बतौर सहायक काम किया, जो राज कपूर की सुपरहिट फिल्म थी।
1950 और 1960 के दशक में उन्होंने आरजू (1965),
आंखें (1968),
गहराई (1977) जैसी फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया।
उनकी फिल्म आरजू को खूब सराहा गया और आंखें पहली भारतीय जासूसी थ्रिलर फिल्मों में गिनी जाती है।
साहित्यिक योगदान
रामानंद सागर का रुझान साहित्य की ओर भी गहरा था। उन्होंने कई उपन्यास और कहानियाँ लिखीं। उनकी रचनाएँ भावनाओं, भारतीय संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत होती थीं। उन्हें साहित्यिक लेखन के लिए भी पुरस्कार प्राप्त हुए।
टेलीविजन पर क्रांति : रामायण
रामानंद सागर का असली योगदान भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने में देखा जाता है।
वर्ष 1987 में उन्होंने दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण शुरू किया।यह धारावाहिक भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर में बसे भारतीयों के लिए आस्था और संस्कृति का प्रतीक बन गया।प्रसारण के समय सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था, लोग घरों में टीवी के सामने बैठकर पूरे श्रद्धा भाव से रामायण देखते थे।यह धारावाहिक न केवल धार्मिक ग्रंथ का चित्रण था बल्कि उसने भारतीय समाज में नैतिक मूल्यों और पारिवारिक एकता का संदेश भी दिया।
अन्य धारावाहिक
रामायण के बाद रामानंद सागर ने कई अन्य पौराणिक और ऐतिहासिक धारावाहिक बनाए—
कृष्णा (भगवान श्रीकृष्ण पर आधारित)
अलिफ लैला (अरबी लोककथाओं पर आधारित)
विक्रम और बेताल
इन धारावाहिकों ने भी दर्शकों के बीच गहरी छाप छोड़ी और मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा का माध्यम बने।
पुरस्कार और सम्मान
रामानंद सागर को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें प्रमुख हैं –
पद्मश्री (2000)
फिल्मफेयर अवार्ड (कई फिल्मों के लिए)
साहित्य और टीवी धारावाहिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान
व्यक्तिगत जीवन
रामानंद सागर का परिवार फिल्म और टेलीविजन जगत से जुड़ा रहा। उनके पुत्रों और पौत्रों ने भी फिल्म निर्माण और निर्देशन की परंपरा को आगे बढ़ाया।
निधन
रामानंद सागर का निधन 12 दिसम्बर 2005 को मुंबई में हुआ। वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो भारतीय संस्कृति और टेलीविजन इतिहास का अमिट हिस्सा है।
निष्कर्ष
रामानंद सागर केवल एक फिल्मकार या धारावाहिक निर्माता नहीं थे, बल्कि वे भारतीय संस्कृति के संवाहक और समाज को दिशा देने वाले महान कथाकार थे। उन्होंने टेलीविजन को धार्मिक और सांस्कृतिक जागरण का माध्यम बनाया। उनकी रामायण और अन्य कृतियाँ आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करती हैं।

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