ऋषिकेश मुखर्जी : सरलता और मानवीय भावनाओं के फिल्मकार(30 सितम्बर 1922-27 अगस्त 2006 )
भारतीय सिनेमा का इतिहास उन रचनात्मक फिल्मकारों से भरा हुआ है जिन्होंने फिल्मों को केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज का दर्पण और मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। ऐसे ही महान फिल्मकारों में एक नाम है ऋषिकेश मुखर्जी। वे हिंदी सिनेमा के उन चुनिंदा निर्देशकों में गिने जाते हैं जिन्होंने हल्की-फुल्की हास्य-व्यंग्यात्मक कहानियों से लेकर गंभीर सामाजिक संदेश देने वाली फिल्मों तक अपनी अलग छाप छोड़ी। उन्हें अक्सर “कॉमन मैन का फिल्मकार” कहा जाता है, क्योंकि उनकी फिल्मों में मध्यमवर्गीय भारतीय समाज की समस्याएँ, खुशियाँ, रिश्तों की जटिलताएँ और मानवीय संवेदनाएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं।
जीवन परिचय
ऋषिकेश मुखर्जी का जन्म 30 सितम्बर 1922 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। बचपन से ही उन्हें साहित्य, संगीत और कला से गहरा लगाव था। स्नातक स्तर पर उन्होंने विज्ञान और गणित का अध्ययन किया, लेकिन फिल्म निर्माण की ओर उनका झुकाव अधिक रहा। वे सर्वप्रथम संगीत और कैमरे की तकनीक को समझते हुए फिल्म इंडस्ट्री में प्रविष्ट हुए।
शुरुआती दौर में उन्होंने बिमल रॉय जैसे महान फिल्मकार के सहायक के रूप में काम किया। बिमल रॉय की फिल्मों के यथार्थवादी दृष्टिकोण और सामाजिक मुद्दों को उठाने की शैली ने ऋषिकेश मुखर्जी को गहराई से प्रभावित किया। यही कारण था कि आगे चलकर उनकी फिल्मों में भी जीवन के यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का सुंदर संगम दिखाई देता है।
फिल्मी करियर की शुरुआत
ऋषिकेश मुखर्जी ने बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म “मुसाफिर” (1957) बनाई। यह फिल्म भले ही बहुत बड़ी व्यावसायिक सफलता न रही हो, लेकिन इसने फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें एक गंभीर और सशक्त निर्देशक के रूप में स्थापित किया।
इसके बाद उन्होंने कई फिल्में निर्देशित कीं, जिनमें अनाड़ी (1959), आशीर्वाद (1968), आनंद (1971), गुड्डी (1971), बावर्ची (1972), अभिमान (1973), चुपके-चुपके (1975), मिली (1975), खूब्सूरत (1980), नमक हराम (1973) और गोल माल (1979) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
उनकी फिल्मों की विशेषताएँ
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मध्यमवर्गीय जीवन का चित्रण – उनकी फिल्मों में आम आदमी की जीवन-शैली, पारिवारिक उलझनें और भावनाएँ बड़े ही सादगीपूर्ण ढंग से प्रस्तुत होती थीं।
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हास्य और व्यंग्य – ऋषिकेश मुखर्जी की कॉमेडी फिल्में जैसे गोल माल और चुपके-चुपके आज भी दर्शकों को गुदगुदाती हैं। उनका हास्य स्वस्थ और जीवन से जुड़ा हुआ होता था।
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संवेदनशील मानवीय रिश्ते – उनकी फिल्मों में रिश्तों की गहराई, भावनाओं की सच्चाई और करुणा का अनूठा चित्रण देखने को मिलता है। आनंद और मिली इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
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संगीत का सुंदर प्रयोग – ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों का संगीत हमेशा कथानक के अनुरूप और हृदयस्पर्शी होता था। शंकर-जयकिशन, एस. डी. बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकारों ने उनकी फिल्मों को अविस्मरणीय धुनें दीं।
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बड़े सितारे, सरल कहानियाँ – उन्होंने अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, जया भादुरी, शर्मिला टैगोर जैसे दिग्गज कलाकारों को सरल लेकिन प्रभावशाली किरदारों में प्रस्तुत किया।
प्रमुख फिल्में और उनकी विरासत
- आनंद (1971) – राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन अभिनीत यह फिल्म जीवन, मृत्यु और आशावाद का अद्भुत संदेश देती है।
- गोल माल (1979) – भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी फिल्मों में गिनी जाती है।
- चुपके-चुपके (1975) – सरल हास्य और पारिवारिक रिश्तों की अनूठी प्रस्तुति।
- बावर्ची (1972) – परिवार में प्रेम और आपसी सहयोग का संदेश।
- आशीर्वाद (1968) – अशोक कुमार की अभिनय प्रतिभा और समाज को गहरा संदेश देने वाली फिल्म।
पुरस्कार और सम्मान
ऋषिकेश मुखर्जी को उनके योगदान के लिए अनेक पुरस्कार और सम्मानों से नवाजा गया।
- दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (1999) – भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान।
- पद्म विभूषण (2001) – देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
- आठ बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित।
- उनकी फिल्म आशीर्वाद के लिए अशोक कुमार को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।
निधन
यह महान फिल्मकार भारतीय सिनेमा को अनगिनत यादगार फिल्में देकर 27 अगस्त 2006 को इस दुनिया से विदा हो गया। उनकी मृत्यु के बाद पूरा फिल्म जगत शोक में डूब गया।
निष्कर्ष
ऋषिकेश मुखर्जी भारतीय सिनेमा के ऐसे निर्देशक थे जिन्होंने बड़े बजट और भव्य सेटों से दूर रहकर आम इंसान की जिंदगी, उसकी खुशियाँ, ग़म, रिश्ते और मानवीय मूल्यों को अपनी फिल्मों के माध्यम से अमर कर दिया। उनकी फिल्में आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी अपने समय में थीं। इसलिए उन्हें भारतीय सिनेमा का "हरदिलअज़ीज़ फिल्मकार" कहना बिल्कुल उचित होगा।

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