एनी बेसेंट : भारत की स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधारों की प्रेरक(1 अक्टूबर 1847- 20 सितंबर 1933)
परिचय
एनी बेसेंट (Annie Besant) आधुनिक भारत के स्वतंत्रता आंदोलन, शिक्षा और सामाजिक सुधार की प्रेरणादायी हस्तियों में गिनी जाती हैं। वे मूल रूप से आयरलैंड (ब्रिटेन) की निवासी थीं, परंतु भारत आकर उन्होंने अपना जीवन भारतीय स्वतंत्रता, शिक्षा, महिला उत्थान और धर्म व संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। वे थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष, भारतीय होमरूल आंदोलन की संस्थापक और कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष भी रहीं।
प्रारंभिक जीवन
एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 को लंदन (इंग्लैंड) में हुआ था। उनके पिता डॉ. विलियम वुड और माता एमिली रूथ वुड थीं। पिता की मृत्यु के बाद एनी का पालन-पोषण आर्थिक कठिनाइयों में हुआ। वे प्रारंभ से ही अत्यंत बुद्धिमान और विद्रोही स्वभाव की थीं।
उन्होंने बचपन से ही ईसाई धर्म और चर्च की परंपराओं पर प्रश्न उठाना शुरू कर दिया। आगे चलकर वे स्वतंत्र चिंतन और मानवतावाद की ओर अग्रसर हुईं।
सामाजिक और धार्मिक जीवन
एनी बेसेंट ने इंग्लैंड में महिला अधिकारों, मजदूरों की दशा और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया। उन्होंने धर्म और समाज की रूढ़ियों पर कठोर प्रहार किया। बाद में वे थियोसोफिकल सोसायटी (Theosophical Society) से जुड़ीं और 1893 में भारत आ गईं।
भारत में आकर उन्होंने भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और धर्म का गहन अध्ययन किया। मद्रास (आज का चेन्नई) में उन्होंने अपना मुख्यालय स्थापित किया और भारतीय समाज के उत्थान के लिए काम करना शुरू किया।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
एनी बेसेंट ने भारत की दासता को गहराई से अनुभव किया और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आंदोलन छेड़ा।
- होमरूल आंदोलन (1916) – एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने मिलकर भारत में स्वराज की मांग को आगे बढ़ाया। इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संघर्ष को नई गति दी।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस – 1917 में एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। यह पहली बार था जब किसी महिला ने कांग्रेस का नेतृत्व किया।
- उन्होंने ब्रिटिश सरकार से भारत को "डोमिनियन स्टेटस" देने की मांग की और स्वशासन के लिए जनता को जागरूक किया।
शिक्षा और सामाजिक सुधार कार्य
- एनी बेसेंट शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का सबसे बड़ा साधन मानती थीं।
- उन्होंने बनारस में सेंट्रल हिन्दू कॉलेज (Central Hindu College) की स्थापना की, जो आगे चलकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) का हिस्सा बना।
- महिलाओं की शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, जातिगत भेदभाव और समाज सुधार में उनका योगदान अद्वितीय रहा।
- उन्होंने भारतीय युवाओं को विज्ञान और आधुनिक ज्ञान के साथ-साथ भारतीय संस्कृति की शिक्षा देने पर जोर दिया।
साहित्य और पत्रकारिता
एनी बेसेंट एक कुशल लेखिका और पत्रकार भी थीं।
- उन्होंने "New India" नामक पत्र निकाला जिसमें अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ तीखे लेख लिखे।
- उनके लेखन ने भारतीय युवाओं और नेताओं में नई चेतना जगाई।
अंतिम जीवन और निधन
एनी बेसेंट ने अपना पूरा जीवन भारत और भारतीय संस्कृति के लिए समर्पित कर दिया।
20 सितंबर 1933 को मद्रास (चेन्नई) में उनका निधन हुआ।
निष्कर्ष
एनी बेसेंट विदेशी होकर भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख प्रेरक बनीं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि राष्ट्रभक्ति किसी एक देश की सीमा में बंधी नहीं रहती, बल्कि यह सार्वभौमिक होती है। वे भारत की आज़ादी की लड़ाई की एक महान सहयोगी, शिक्षा की संवाहक और समाज सुधार की प्रेरणा बनीं।
इस प्रकार एनी बेसेंट का नाम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

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