लोक गायिका शारदा सिन्हा: बिहार की कोकिला और लोक संगीत की अमर धरोहर(1 अक्टूबर 1952- 5 नवंबर 2024)

लोक गायिका शारदा सिन्हा: बिहार की कोकिला और लोक संगीत की अमर धरोहर(1 अक्टूबर 1952- 5 नवंबर 2024)

लोक गायिका शारदा सिन्हा भारतीय संगीत जगत का एक ऐसा दैदीप्यमान नक्षत्र थीं, जिनकी मधुर और भावपूर्ण आवाज़ ने बिहार और उत्तर प्रदेश के लोक संगीत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी। उन्हें प्यार से 'बिहार की कोकिला' या 'भोजपुरी कोकिला' भी कहा जाता था। उनका जीवन लोकगीतों के प्रति समर्पण, सांस्कृतिक जड़ों के प्रति प्रेम और अपनी शास्त्रीय गायकी की शुद्धता को बनाए रखने की एक अनूठी गाथा है।

प्रारंभिक जीवन और संगीत की शुरुआत

शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गाँव में हुआ था। उन्हें बचपन से ही संगीत का माहौल मिला और अपनी प्रतिभा के दम पर उन्होंने खेतों से लेकर विश्व के बड़े मंचों तक का सफर तय किया। उन्होंने औपचारिक रूप से संगीत की शिक्षा प्राप्त की और शास्त्रीय संगीत में भी महारत हासिल की, जिसने उनके लोक गायन को एक मजबूत आधार प्रदान किया।
उनका विवाह बेगूसराय जिले के सिहमा गाँव में हुआ, जहाँ मैथिली लोकगीतों से उनका लगाव और गहरा हुआ। शुरुआती दौर में उन्हें ससुराल में कुछ विरोध का सामना भी करना पड़ा, लेकिन पति और ससुर के समर्थन ने उन्हें अपनी कला को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।

लोक संगीत को नया आयाम

शारदा सिन्हा ने मुख्य रूप से मैथिली, भोजपुरी और मगही भाषाओं में गीत गाए। 1970 के दशक में उन्होंने अपने गायन करियर की शुरुआत की, लेकिन उनकी असली पहचान बनी उनके छठ पूजा के गीतों से। 'केलवा के पात पर', 'पहिले पहिल हम कइनी छठ' और 'उग हो सुरुज देव' जैसे उनके गीत छठ महापर्व की पहचान बन गए और आज भी इस पर्व की कल्पना उनके गीतों के बिना अधूरी है। यह भी एक रोचक तथ्य है कि छठ गीतों का पर्याय होने के बावजूद, उन्होंने स्वयं कभी छठ नहीं किया और कहती थीं कि उनके गीत ही उनका अर्घ्य हैं।
उन्होंने विवाह, संस्कार और अन्य पारंपरिक अवसरों पर गाए जाने वाले लोकगीतों को अपनी शास्त्रीयता और सादगी से सजाकर नई पीढ़ी तक पहुँचाया। उनके गीतों में ग्रामीण जीवन की मिठास, संस्कृति की झलक और भावनाओं की गहराई स्पष्ट रूप से महसूस होती है। उन्होंने भोजपुरी गीतों के नए दौर में अश्लीलता और फूहड़पन को सिरे से नकारते हुए हमेशा मर्यादा और पारंपरिक शुद्धता को बनाए रखा।

बॉलीवुड में योगदान और सम्मान

लोकगीतों के अलावा, शारदा सिन्हा ने हिंदी सिनेमा में भी अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। 'मैंने प्यार किया' फिल्म का गीत 'कहे तो से सजना' और 'हम आपके हैं कौन' फिल्म के गीत बेहद लोकप्रिय हुए। इन गीतों में भी उनकी आवाज़ की सरलता और लोक संगीत का स्पर्श स्पष्ट था।
संगीत के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा:
 * पद्म श्री (1991)
 * पद्म भूषण (2018)

विरासत और प्रभाव

शारदा सिन्हा सिर्फ एक गायिका नहीं थीं, बल्कि बिहार की संस्कृति और परंपरा की एक चलती-फिरती धरोहर थीं। उन्होंने अपने गायन से न केवल लोक संगीत को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने और अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम रखने के लिए भी प्रेरित किया।
5 नवंबर 2024 को 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, जिससे भारतीय संगीत जगत में एक अपूरणीय क्षति हुई। हालांकि, उनकी आवाज़, उनके गीत और लोक संगीत के प्रति उनका समर्पण सदैव जीवंत रहेगा। शारदा सिन्हा ने अपनी कला से यह सिद्ध किया कि सादगी, शुद्धता और अपनी संस्कृति से जुड़ाव ही किसी कलाकार को अमरता प्रदान करता है।


Post a Comment

0 Comments